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मुस्लिमों के लिए हुई थी AMU की स्थापना, इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते; बीच सुनवाई बोले CJI

Aligarh Muslim University Case: CJI की अध्यक्षता में सात जजों की संविधान पीठ इस मामले की कानूनी जांच कर रही है कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत क्या AMU अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा कर सकता है?

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 1 Feb 2024 07:54 AM
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। सुनवाई के सातवें दिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक अहम टिप्पणी की है। इसमें कहा गया है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना मुस्लिमों के लिए की गई थी, इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की संविधान पीठ इस मामले में इस तथ्य की कानूनी छानबीन और जांच कर रही है कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत क्या एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा कर सकता है या नहीं? खंडपीठ में CJI चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना,जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश सी शर्मा शामिल हैं।

AMU बनाम नरेश अग्रवाल और अन्य के मामले में संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि एक अल्पसंख्यक संस्थान भी  संसद से राष्ट्रीय महत्व की संस्था (इन्स्टीट्यूट ऑफ नेशनल इम्पोर्टेन्स) का दर्जा पा सकता है। बुधवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, जो प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित हुए थे, ने कहा कि यह तर्क देना "पूरी तरह से गलत" है कि मुसलमानों के अल्पसंख्यक अधिकार खतरे में हैं।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, नीरज किशन कौल ने कहा, "आरक्षण या अल्पसंख्यकों का कौन सा अधिकार छीना जा रहा है? ऐसा क्या किया जा रहा है कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान पहुंचाने की बात हो रही है? ऐसा कुछ भी नहीं है। सभी नागरिक समान हैं।"

इसके जवाब में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा,"हमें यह भी समझना होगा कि एक अल्पसंख्यक संस्था भी राष्ट्रीय महत्व की संस्था हो सकती है और संसद एक अल्पसंख्यक संस्था को भी राष्ट्रीय महत्व की संस्था के रूप में नामित कर सकती है। हम इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना मुसलमानों के लिए हुई थी, और जब इसे बनाया गया था तो यह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय [बीएचयू] की तर्ज पर था और यह एक मिसाल थी।"

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