15 दिन में दूसरी बार केंद्र सरकार ने पीछे खींचे कदम, विपक्ष या सहयोगी दल किस दबाव से रुकी लेटरल एंट्री
पिछले 15 दिनों के अंदर ऐसा दूसरी बार हुआ है जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं। इससे पहले 8 अगस्त को सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लोकसभा से वापस ले लिया था और उसे जेपीसी के पास भेज दिया था। अब सरकार ने भारी विरोध को देखते हुए लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी है।
केंद्र सरकार ने विवादों के बीच लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी है। मंगलवार को केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर लेटरल एंट्री का विज्ञापन रद्द करने को कहा ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। आयोग ने 17 अगस्त को ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए विभिन्न विभागों में 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की सीधी भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। पिछले 15 दिनों के अंदर ऐसा दूसरी बार हुआ है जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं। इससे पहले 8 अगस्त को सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लोकसभा से वापस ले लिया था और उसे जेपीसी के पास भेज दिया था। अब सरकार ने भारी विरोध को देखते हुए लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी है।
विपक्षी दलों का रार
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार के लेटरल एंट्री के फैसले की कड़ी आलोचना की थी और इसका विरोध किया था। उनका आरोप था कि लेटरल एंट्री के जरिए उच्च पदों पर सीधी बहाली कर सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण अधिकारों का हनन कर रही है। जब विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा तो केंद्रीय कानून मंत्री ने तर्क दिया कि यह कांग्रेस के शासन काल में ही शुरू हुआ है और पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी की सरकार तक ने इसके जरिए सीधी नियुक्तियां की हैं।
NDA में भी फूट
ऐसा नहीं है कि सिर्फ विपक्षी दलों ने ही केंद्र सरकार की इस स्कीम की आलोचना की हो और अपना विरोध जताया हो। एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए सरकारी पदों पर नियुक्तियों के किसी भी कदम की आलोचना करते हुए कहा कि वह केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाएंगे। चिराग ने कहा था, "किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है और अगर सरकारी पदों पर भी इसे लागू नहीं किया जाता है... तो यह चिंता की बात होगी।"
जेडीयू का भी इशारा- वापस हो लेटरल एंट्री
चिराग के अलावा बिहार से ही दूसरी सहयोगी पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू ने भी लेटरल एंट्री का विरोध किया था। जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने हालांकि सधे शब्दों में कहा, "वे लेटरल एंट्री के विज्ञापन का दुरुपयोग करेंगे, इससे राहुल गांधी पिछड़ों के चैंपियन बन जाएंगे।" केसी त्यागी ने कहा कि सरकार ऐसे फैसलों के जरिए विपक्ष को मुद्दा दे रही है, इसलिए इसे वापस ले लेना चाहिए।
बता दें कि सरकारी विभागों में (निजी क्षेत्रों के विशेषज्ञों सहित) विभिन्न विशेषज्ञों की नियुक्ति को ‘लेटरल एंट्री’ कहा जाता है। यूपीएससी ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए सीधे उन पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति करता है, जिन पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अनुभवी अधिकारियों की तैनाती होती है। इस व्यवस्था के तहत निजी क्षेत्रों के अलग-अलग पेशे के विशेषज्ञों को विभिन्न मंत्रालयों व विभागों में सीधे संयुक्त सचिव और निदेशक व उप सचिव के पद पर नियुक्त किया जाता है।
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री सिंह ने अपने पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण "हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।" सिंह ने कहा, "चूंकि इन पदों को विशिष्ट मानते हुए एकल-कैडर पद के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस कदम की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है।" उन्होंने कहा कि इसके अलावा, प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि ‘लेटरल एंट्री’ की प्रक्रिया को संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। (भाषा इनपुट्स के साथ)