बलात्कार जैसे मामले में देर से आए फैसला तो उठता है लोगों का भरोसा, पेंडिंग केस पर क्या बोलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
- राष्ट्रपति ने कहा, 'यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ घूमते रहते हैं। जो लोग इन अपराधों के शिकार होते हैं, वे इस डर में जीते हैं।'
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने त्वरित न्याय सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। उन्होंने रविवार को कहा कि इसके लिए अदालतों में स्थगन की संस्कृति को बदलने के प्रयास किए जाने की जरूरत है। जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं। मुर्मू ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों का होना हम सभी के लिए एक बड़ी चुनौती है। राष्ट्रपति ने कहा, ‘कोर्ट में स्थगन की संस्कृति को बदलने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि जब बलात्कार जैसे मामलों में कोर्ट का फैसला एक पीढ़ी गुजर जाने के बाद आता है, तो आम आदमी को लगता है कि न्याय की प्रक्रिया में संवेदनशीलता नहीं बची।
द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि गांव के लोग तो न्यायपालिका को दैवीय मानते हैं, क्योंकि उन्हें वहीं न्याय मिलता है। एक कहावत भी है- भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। मगर, सवाल है कि आखिर कितनी देर? हमें इस बारे में सोचना होगा। उन्होंने जोर देते हुए कहा, 'जब तक किसी पीड़ित को न्याय मिलता है, तब तक तो उसके चेहरे से मुस्कान गायब हो चुकी होती है। कई मामलों में उनकी जिंदगी तक खत्म हो जाती है। इसलिए हमें इस बारे में गहराई से विचार करने की जरूरत है।'
'न्याय की रक्षा करना न्यायाधीशों की जिम्मेदारी'
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि न्याय की रक्षा करना देश के सभी न्यायाधीशों की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अदालती माहौल में आम लोगों का तनाव का स्तर बढ़ जाता है। उन्होंने इस विषय पर अध्ययन का भी सुझाव दिया। उन्होंने महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। मालूम हो कि इस कार्यक्रम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और केंद्रीय कानून व न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए। राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत मंडपम में आयोजित कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट का ध्वज और प्रतीक चिह्न भी जारी किया।
'अभी तो बहुत कुछ किया जाना बाकी'
द्रौपदी मुर्मू ने कहा, 'मुझे बताया गया है कि हाल के वर्षों में जनपद स्तर पर न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, प्रशिक्षण और जनशक्ति की उपलब्धता में सुधार हुआ है। लेकिन इन सभी क्षेत्रों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मेरा विश्वास है कि सुधार के सभी आयामों में तेजी से प्रगति होनी चाहिए। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि हाल के वर्षों में चयन समितियों में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के कारण कई राज्यों में चयन समितियों में महिलाओं की संख्या में 50% की वृद्धि हुई है।'
'संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ'
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी न्यायपालिका के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनके लिए सभी हितधारकों को मिलकर प्रयास करने होंगे। उदाहरण के लिए साक्ष्य और गवाहों से संबंधित मुद्दों को न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन की ओर से मिलकर सुलझाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ घूमते रहते हैं। जो लोग इन अपराधों के शिकार होते हैं, वे इस डर में जीते हैं जैसे कि उनके अपने विचारों ने कई अपराध किए हों। महिला पीड़ितों की स्थिति और भी बदतर है क्योंकि समाज के लोग भी उनका साथ नहीं देते।'
(एजेंसी इनपुट के साथ)