पाकिस्तान में खोया पासपोर्ट, 39 साल बाद फिर कोर्ट पहुंचा मामला; अब भारत से विदाई का डर
- मोहम्मद रुसतम मीर का कहना है कि वह पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे, लेकिन वहां उनका पासपोर्ट खो गया था। उनका दावा है कि वह कश्मीर के मूल निवासी हैं।
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जम्मू-कश्मीर के 72 साल के मोहम्मद रुसतम मीर को फिलहाल देश छोड़ने की मजबूरी से राहत मिल गई है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने उनके देशनिकाला पर रोक लगाते हुए आदेश दिया है कि अगली सुनवाई तक मीर को जबरन बाहर नहीं निकाला जाएगा। मीर का कहना है कि वह पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे, लेकिन वहां उनका पासपोर्ट खो गया था।
क्या है मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मोहम्मद रुसतम मीर को पहले मोहम्मद यूसुफ के नाम से जाना जाता था। मीर का दावा है कि 1986 में वह कानूनी दस्तावेजों के साथ पाकिस्तान गए थे। वहां वह अपनी बहन और बहनोई से मिलने पहुंचे, जो 1965 में पाकिस्तान जा बसे थे और अब रावलपिंडी में रहते हैं। इसी दौरान मीर का पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज गुम हो गए। किसी तरह उन्होंने नया वीजा हासिल किया और कश्मीर लौट आए। वापसी के बाद से ही सरकारी एजेंसियां उन्हें लगातार परेशान करने लगीं।
मीर ने 1988 में इस मामले को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद कोर्ट ने 9 जून 1988 को आदेश दिया था कि उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर न किया जाए। लेकिन अब, इतने सालों बाद फिर से यह मामला कोर्ट में है।
मीर ने कोर्ट में नई याचिका दाखिल कर कहा कि अब वह 72 साल के हो चुके हैं और अपने पैतृक गांव में शांति से जीवन बिता रहे हैं। उनके पांच बच्चे हैं, जो कश्मीर में पढ़ाई कर रहे हैं। अगर उन्हें जबरन निकाला गया तो उनके बच्चों की पढ़ाई और पूरे परिवार का भविष्य अंधेरे में चला जाएगा। मीर के वकील सलीम गुल ने दलील दी कि 1988 में कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया था, फिर भी उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा है।
कोर्ट ने क्या दिया आदेश
कोर्ट ने मीर की याचिका पर विचार करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर न किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी को होगी, जिसमें मीर के भविष्य पर फैसला लिया जा सकता है।