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एक देश एक चुनाव पर तेजी, JPC करेगी चुनाव आयोग से मुलाकात, सभी दलों से भी लेगी राय

  • एक देश एक चुनाव को अमल में लाने के लिए जेपीसी ने बड़ा कदम उठाते हुए चुनाव आयोग के अधिकारियों और सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों को बुलाने का फैसला किया है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानFri, 31 Jan 2025 06:27 PM
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एक देश एक चुनाव पर तेजी, JPC करेगी चुनाव आयोग से मुलाकात, सभी दलों से भी लेगी राय

देश में एक देश एक चुनाव को अमली जामा पहनाने की तैयारी तेज हो गई है। इस मसले पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने बड़ा कदम उठाते हुए चुनाव आयोग के अधिकारियों और सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों को बुलाने का फैसला किया है। इनसे संविधान संशोधन विधेयक पर राय ली जाएगी, ताकि इसे लागू करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।

क्षेत्रीय दलों से भी होगी चर्चा

इन कवायदों से यह साफ हो गया है कि जेपीसी केवल कागजी बैठकें करने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि देशभर के राज्यों का दौरा करके क्षेत्रीय दलों से भी उनकी राय लेगी। माना जा रहा है कि कई क्षेत्रीय पार्टियों को एक देश एक चुनाव पर आपत्तियां हैं, जिन्हें दूर करने की कोशिश की जाएगी। इसके अलावा, जेपीसी पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जजों और विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी चर्चा में शामिल करने की योजना बना रही है।

देश में एक देश एक चुनाव पर शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सरकार इन अहम सुधारों को तेजी से आगे बढ़ा रही है। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा, "एक देश एक चुनाव की दिशा में सरकार तेजी से काम कर रही है। बीते एक दशक में हमारी सरकार ने विकसित भारत की यात्रा को नई ऊर्जा दी है।" इससे पहले गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में भी उन्होंने एक देश एक चुनाव को एक क्रांतिकारी सुधार बताया था। उन्होंने इसे गुड गवर्नेंस को नई परिभाषा देने वाला कदम कहा था।

एक देश एक चुनाव पर क्या बोलीं राष्ट्रपति मुर्मू

राष्ट्रपति ने कहा कि एक देश एक चुनाव से शासन में निरंतरता बनी रहेगी और संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। उन्होंने यह भी जोर दिया कि लगातार चुनावी चक्र से प्रशासन और विकास कार्यों में आने वाले व्यवधान को रोका जा सकता है। गौरतलब है कि मोदी सरकार लंबे समय से देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत कर रही है। सरकार का मानना है कि अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों से प्रशासनिक, आर्थिक और लॉजिस्टिक बोझ बढ़ता है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी एक देश एक चुनाव को संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप बताया था। उन्होंने कहा था कि 1952 से 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, जिससे यह साफ है कि यह व्यवस्था असंवैधानिक नहीं है।

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