मेरी भी अर्जी खारिज कर दी, SC जज की विदाई पर कपिल सिब्बल ने याद दिलाया पुराना केस
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की विदाई के मौके पर कपिल सिब्बल ने पुराने केस को याद करते हुए कहा कि उन्होंने उनकी याचिका भी खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी का शुक्रवार को ऑफिस में आखिरी दिन था। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके लिए विदाई पार्टी का भी आयोजन नहीं किया। इसको लेकर सीजेआई बीआर गवाई ने SCBA की आलोचना भी की। वहीं उनकी विदाई के मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के हेड कपिल सिब्बल और उपाध्यक्ष रचना श्रीवास्तव मौजूद थीं। कपिल सिब्बल ने एक पुराने केस को याद करते हुए जस्टिस त्रिवेदी की तारीफ की।
सिब्बल ने कहा, यह कोर्ट सितारों से भरा रहा है और उनमें से एकआप भी हैं। उन्होंने कहा, आप इस कोर्ट की 11वीं महिला जज हैं। बीते 75 साल में हर सात साल में एक महिला की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में हुई है। आपके लिए यहां तक पहुंचान बहुत बड़ी उपलब्धि है। सिब्बल ने एक केस को याद करते हुए कहा, UAPA के एक मामले में मैंने एक शख्स के ट्रांसफर के लिए याचिका फाइल की थी। मैं उसका ट्रांसफर कर्नाटक से केरल करवाना चाहता था। जस्टिस त्रिवेदी ने उस समय मेरी अर्जी खारिज कर दी थी।
उन्होंने कहा, मुझे आपसे सहानुभूति कि उम्मीद थी। तब आप मुझे जानती भी नहीं थीं। आपके यहां आने से पहले आपसे परिचय हुआ था। आपने जो कुछ भी किया है उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। इस कोर्ट में कोई भी जज आम भावनाओं के आगे झुकता नहीं है।
परंपरा के अनुसार, एससीबीए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए विदाई समारोह आयोजित करता है और न्यायमूर्ति त्रिवेदी के मामले में एक असाधारण निर्णय लिया गया, जो संभवतः बार निकाय से संबद्ध वकीलों के विरुद्ध गए कुछ निर्णयों के कारण हुआ। नियमों के पालन में कठोर न्यायाधीश मानी जाने वाली न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने जाली वकालतनामा का इस्तेमाल कर शीर्ष अदालत में कथित तौर पर फर्जी याचिका दायर करने के संबंध में कुछ वकीलों के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
उन्होंने वकीलों के प्रति दया दिखाए जाने के बार के पदाधिकारियों के कई अनुरोध को खारिज कर दिया था। हाल ही में न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने एक याचिका दायर करने में कथित कदाचार के लिए कुछ वकीलों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने का आह्वान किया था और बाद में उनकी माफी स्वीकार करने से मना कर दिया था। सुनवाई के दौरान उन्होंने इस बात पर दुख जताया था कि कुछ बार पदाधिकारी उन पर साथी वकीलों के खिलाफ कठोर आदेश पारित न करने का दबाव बना रहे थे।