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मनमोहन सिंह इकलौते PM, जिनके नाम पर चलता था रुपया; जानें इसके कारण

  • मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्र में गहरी पकड़ और 1991 में भारत में किए गए ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों के लिए उन्हें याद किया जाता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वे भारत के वित्तमंत्री रह चुके थे। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी थी।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तानFri, 27 Dec 2024 12:47 PM
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Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधान हो गया। उन्होंने देश के वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर की जिम्मेदारी संभाली थी। उन्हें एक विशेष सम्मान भी प्राप्त है। वे देश के इकलौते प्रधानमंत्री हैं जिनके हस्ताक्षर भारतीय नोटों पर पाए जाते हैं। 2005 में भी जब वे प्रधानमंत्री के पद पर थे तब भारत सरकार ने 10 रुपये का नया नोट जारी किया था। उस पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर थे। हालांकि उस दौरान नोटों पर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते थे। लेकिन 10 रुपये के नोट पर यह विशेष बदलाव हुआ था।

इसके अलावा, मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके हैं। वह 16 सितंबर 1982 से लेकर 14 जनवरी 1985 इस पद पर थे। इस दौरान छपने वाले नोटों पर उनके हस्ताक्षर हुआ करते थे। भारत में यह व्यवस्था आज भी बनी हुई है कि करेंसी पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की नहीं, बल्कि आरबीआई गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं।

मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्र में गहरी पकड़ और 1991 में भारत में किए गए ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों के लिए उन्हें याद किया जाता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वे भारत के वित्तमंत्री रह चुके थे। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी थी।

मनमोहन सिंह ने जब 1991 में पी वी नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली थी, तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 8.5 प्रतिशत के करीब था, भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के आसपास था। इसके अलावा देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी केवल दो सप्ताह लायक विदेशी मुद्रा ही मौजूद थी। इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बहुत गहरे संकट में थी।

ऐसी परिस्थिति में डॉ मनमोहन सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत कर दी। यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार, लाइसेंस राज का खात्मा और कई क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जैसे कदम शामिल थे। इन सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का था।

भारत को नई आर्थिक नीति की राह पर लाने का श्रेय डॉ मनमोहन सिंह को दिया जाता है। उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), रुपये के अवमूल्यन, करों में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देकर एक नई शुरुआत की। आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति की शुरुआत में उनकी भूमिका को दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है। उनकी नीतियों ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की दिशा में ले जाने का काम किया। वह 1996 तक वित्त मंत्री के तौर पर आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाते रहे।

मनमोहन सिंह को मई 2004 में देश की सेवा करने का एक और मौका मिला और इस बार वह देश के प्रधानमंत्री बने। अगले 10 वर्षों तक उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों और सुधारों को मार्गदर्शन देने का काम किया। उनके कार्यकाल में ही 2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंची और दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया। वह 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) लेकर आए और बिक्री कर की जगह मूल्य वर्धित कर (वैट) लागू हुआ। इसके अलावा उन्होंने देश भर में 76,000 करोड़ रुपये की कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना लागू कर करोड़ों किसानों को लाभ पहुंचाने का काम किया।

उन्होंने 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के समय भी देश का नेतृत्व किया और मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए एक विशाल प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की। उनके कार्यकाल में ही भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के माध्यम से 'आधार' की शुरुआत हुई।

इसके अलावा उन्होंने वित्तीय समावेशन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया और प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान देश भर में बैंक शाखाएं खोली गईं। भोजन का अधिकार और बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे अन्य सुधार भी उनके कार्यकाल में हुए।

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