परीक्षा में AI कंटेट का आरोप लगा यूनिवर्सिटी ने कर दिया फेल, हाई कोर्ट पहुंच गया छात्र
- पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक मामले की सुनवाई की। छात्र का आरोप है कि परीक्षा में उसके द्वारा दिए गए उत्तरों को विवि ने एआई जेनरेटेड घोषित किया और फेल कर दिया।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक मामले की सुनवाई की। याचिका यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे एलएलएम के एक छात्र द्वारा दायर की गई है। छात्र का आरोप है कि परीक्षा में उसके द्वारा दिए गए उत्तरों को विवि ने एआई जेनरेटेड घोषित किया और उसे परीक्षा में फेल कर दिया। छात्र ने अपनी याचिका में दलील दी है कि जब उसने विवि से इसका प्रूफ मांगा तो विवि ने उसे इसका कोई सबूत भी नहीं दिया।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी से छात्र की याचिका पर जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति जसगुरपीत सिंह पुरी ने मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को तय की है। यह याचिका कौस्तुभ शक्करवार द्वारा दायर की गई है। वह वर्तमान में जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में मास्टर्स ऑफ लॉ (एलएलएम) की पढ़ाई कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि याचिकाकर्ता ने इससे पहले देश के मुख्य न्यायाधीश के साथ कानून शोधकर्ता के रूप में काम किया है। इसके अलावा वह मुकदमेबाजी से संबंधित एक एआई प्लेटफॉर्म चलाते हैं। वह इंटेलेक्चुअल लॉ में भी प्रैक्टिस कर रहे हैं।
बार एंड बेंच डॉट कॉम के मुताबिक, याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने 18 मई को 'वैश्वीकरण की दुनिया में कानून और न्याय ' विषय पर परीक्षा दी थी। परीक्षा जांचने वाली कमेटी ने उन पर उत्तर पुस्तिका में “88% एआई-जनरेटेड” आंसर देने का आरोप लगाया। इसके बाद 25 जून को उन्हें इस विषय में फेल कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने इस फैसले के खिलाफ परीक्षा नियंत्रक में दोबारा अपील की, लेकिन इस बार फैसला उनके खिलाफ ही आया। अब शक्करवार ने हाई कोर्ट का रुख किया है।
अधिवक्ता प्रभनीर स्वानी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "परीक्षा में दिए गए उत्तर उनकी ही रचना थी और उन्होंने एआई की मदद नहीं ली, लेकिन विवि ने उनकी बात नहीं सुनी। विवि यह बताने में भी असमर्थ है कि वह विशिष्ट नियम प्रदान करे, जो AI के उपयोग को प्रतिबंधित करता है। इस लिहाज से याचिकाकर्ता को परीक्षा में फेल नहीं किया जा सकता जो प्रतिबंधित ही नहीं है।"
याचिका में कहा गया है कि विश्वविद्यालय ने आरोपों को साबित करने के लिए एक भी सबूत पेश नहीं किया है। उन्होंने हाई कोर्ट से यह घोषणा करने की मांग की कि एआई के पास कोई कॉपीराइट नहीं है और एआई का उपयोग करने वाला व्यक्ति ही उत्पन्न कार्य का लेखक है। इस संबंध में, यह तर्क दिया गया कि एआई केवल एक उपकरण और अपनी बात रखने का एक साधन मात्र है।
शक्करवार ने याचिका में तर्क दिया" कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 2 (डी) (vi) स्पष्ट करती है कि यदि याचिकाकर्ता ने एआई का उपयोग भी किया है, तो कलात्मक कार्य का कॉपीराइट याचिकाकर्ता के पास होगा और इस प्रकार कॉपीराइट के उल्लंघन का आरोप विफल हो जाता है। "