ब्रिक्स में बज रहा भारत का डंका, डॉलर की बादशाहत को चुनौती देने की तैयारी; चीन को भी चौंकाया
- चीन ब्रिक्स मंच का उपयोग अमेरिका के खिलाफ अपनी ताकत बढ़ाने के लिए करना चाहता है, वहीं भारत संतुलन बनाए रखने में विश्वास रखता है।
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दुनिया में अपनी आर्थिक ताकत और कूटनीति के दम पर भारत अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के बीच वित्तीय सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत की पहल ने वैश्विक स्तर पर नई चर्चा छेड़ दी है।
डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश
2022 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रुपये में भुगतान की अनुमति दी। यह फैसला रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद लिया गया। इस कदम का उद्देश्य केवल भारत के व्यापार को सुरक्षित करना था, न कि डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देना।
हालांकि, 2024 के कजान ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और सीमापार भुगतान को आसान बनाना ब्रिक्स देशों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगा।"
भारत की सतर्क रणनीति
जहां एक ओर चीन ब्रिक्स मंच का उपयोग अमेरिका के खिलाफ अपनी ताकत बढ़ाने के लिए करना चाहता है, वहीं भारत संतुलन बनाए रखने में विश्वास रखता है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अक्टूबर 2024 में स्पष्ट किया था कि भारत डॉलर के खिलाफ सक्रिय रूप से कदम नहीं उठा रहा है, बल्कि अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था खोज रहा है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिसंबर 2024 में कहा, "यह कदम डॉलर को हटाने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय व्यापार को जोखिम से बचाने के लिए है।"
चीन की बढ़ती ताकत पर भारत का नजरिया
भारत इस बात से वाकिफ है कि ब्रिक्स में चीनी युआन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। रूस में युआन के बढ़ते उपयोग के बावजूद, भारत ने रूसी तेल आयात में युआन को अपनाने से परहेज किया है। इसके बजाय, भारत ने स्वर्ण भंडार बढ़ाने और अपने व्यापार को सुरक्षित रखने की रणनीति अपनाई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को ब्रिक्स के माध्यम से डॉलर पर निर्भरता कम करने की पहल करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह कदम किसी एक देश के पक्ष में न झुके। विशेष रूप से चीन के वरचस्व को बैलेंस करने के लिए भारत की यह रणनिती जरूरी है। भारत की यह रणनीति न केवल ब्रिक्स में उसकी स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर वित्तीय स्थिरता और बहुध्रुवीयता को भी बढ़ावा देगी। अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखते हुए भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर अपनी धमक बनाए रखने के लिए पूरी तरह तैयार है।