एक्सप्लेनर: नीला रंग कैसे बन गया दलित राजनीति और आंदोलन की पहचान, रोचक है किस्सा और सफर
डॉ. आंबेडकर द्वारा 1942 में बनाए गए शिड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया के झंडे का रंग भी नीला था, जिसके बीच में सफेद अशोक चक्र बना हुआ था। बाद में जब रिपबल्किन पार्टी बनी तो उसका भी झंडा नीला रखा गया था।
संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के कथित अपमान के मुद्दे पर जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का विरोध करने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी समेत इंडिया गठबंधन के कई नेता नीले रंग की ड्रेस में गुरुवार (19 दिसंबर) को संसद पहुंचे तो अचानक यह रंग सुर्खियों में आ गया। राहुल गांधी ने अपनी खास सफेद टी-शर्ट की जगह नीली टी-शर्ट पहन रखी थी, जबकि उनकी बहन प्रियंका गांधी ने नीली साड़ी पहन रखी थी। उनकी ड्रेस के रंग में यह बदलाव दलित अस्मिता, दलित राजनीति और दलित आंदोलन को समर्थन देने के लिए किया गया था। इन सबके बीच एक सवाल कौंधता रहा कि आखिर नीला रंग दलित राजनीति की पहचान कब और कैसे बन गया।
हालांकि, इस संबंध में कई मान्यताएं, सिद्धांत और कहानियां हैं लेकिन इसकी शुरुआत संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर के समय से ही जुड़ी है। रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और दलित समाजसेवी एस आर दारापुरी के हवाले से इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भीमराव आंबेडकर द्वारा 1942 में बनाए गए शिड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया के झंडे का रंग नीला था, जिसके बीच में सफेद अशोक चक्र बना हुआ था। बाद में 1956 में जब इस पार्टी को भंग कर रिपबल्किन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की गई तो उसका भी झंडा नीला रखा गया था।
बाद में जब रामदास आठवले ने रिपबल्किन पार्टी ऑफ इंडिया से अलग होकर रिपबल्किन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) बनाया तो वैसा ही झंडा (नीले झंडे पर सफेद अशोक चक्र) रखा। अभी भी आठवले की पार्टी का झंडा वैसा ही, जैसा आंबेडकर ने रखा था। दारापुरी का तर्क था कि चूंकि आंबेडकर खुले विचारों वाले शख्सियत थे और समानता और बंधुत्व के समर्थक थे। इसलिए आकाश की तरह स्वच्छ और विशालता का प्रदर्शन करने के लिए बाबासाहेब ने अपने झंडे का रंग नीला रखा था, जो उनके विशाल दृष्टिकोण का परिचायक था।
एक और तर्क दिया जाता है कि नीला आकाश का रंग है, जो गैर भेदभाव का प्रतीक है। चूंकि नीले गगन के नीचे सभी एक समान हैं, इसलिए इस रंग को समानता के प्रतीक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि, इस बात के लिए कोई स्थापित तथ्य नहीं है कि दलित आंदोलन की पहचान नीला रंग कैसे बन गया लेकिन दलित चिंतक और लेखक कांचा इलैया कहते हैं कि नीला रंग का दलित पहचान का रंग बनने के पीछे बंधुत्व, समानता और संघर्ष का तर्क ही रहा होगा।
2016 में जब दलित छात्र रोहित वेमुला की हत्या के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन हुआ तो बड़ी संख्या में दलित समाज के लोगों ने नीले झंडे और नीले रंग के पोस्टर-बैनर के साथ विरोध-प्रदर्शन किया। 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम 1989 को कमजोर करने वाला फैसला आया, तब भी दलितों ने देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन और बंद का आह्वान किया। उस दौरान भी नीले रंग के झंडे, बैनर-पोस्टर आंदोलनाकिरयों के हाथों में दिखे।
इसके अलावा, आज से 40 साल पहले जब कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की तब भी उनके झंडे का रंग नीला था। आज भी बसपा के झंडे का रंग नीला है, जिस पर सफेद हाथी है। अभी हाल ही में यूपी के नगीना से लोकसभा सांसद चुने गए चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी का झंडा भी नीला है, जिसके बीच में सफेद पट्टी है। चंद्रशेखर गले में हमेशा नीले रंग का गमछा भी पहने रहते हैं। उनकी भीम आर्मी जब भी आंदोलन करती, उनके हाथों में नीले रंग का झंडा और पोस्टर-बैनर रहता। यानी डॉ. आंबेडकर ने जिस नीले रंग का झंडा उठाया था, वही धीरे-धीरे भूली-बिसरी यादों के सहारे और कई बड़ी शख्सियतों की बदौलत और मार्फत दलित राजनीति का प्रतीक और रंग बन चुका है।