Hindi Newsदेश न्यूज़Every Person has Right to Criticize Decisions of Court But Supreme Court Judge Big Statement

हर शख्स को कोर्ट के फैसलों की आलोचना का अधिकार, लेकिन... SC के जज ने कह दी बड़ी बात

  • उन्होंने कहा कि यदि आप निर्णय की आलोचना करना चाहते हैं, तो आपको ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन कृपया निर्णय की सावधानीपूर्वक जांच करें और फिर बताएं कि निर्णय गलत क्यों हुआ।

Madan Tiwari लाइव हिन्दुस्तानSun, 16 Feb 2025 10:03 PM
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हर शख्स को कोर्ट के फैसलों की आलोचना का अधिकार, लेकिन... SC के जज ने कह दी बड़ी बात

सुप्रीम कोर्ट के जज अभय एस ओका ने रविवार को बड़ी बात बोलते हुए कहा कि प्रत्येक शख्स को अदालती फैसलों की आलोचना करने का अधिकार है लेकिन यह रचनात्मक, गरिमा को ध्यान में रखते हुए और जिम्मेदारी की भावना के साथ किया जाना चाहिए। गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में व्याख्यान देते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर न्यायपालिका के बारे में आलोचनात्मक सामग्री से निपटने में संयम बरतने का आह्वान किया और कहा कि तथाकथित विशेषज्ञों को फैसला दिए जाने के कुछ घंटों बाद बहस करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां न्यायाधीशों और बार के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र बनी रहे, वहीं प्रत्येक शिक्षित और सही सोच वाले व्यक्ति को भी न्यायपालिका के साथ खड़ा होना चाहिए, जब उसकी स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करने का प्रयास किया जाए। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ''एक न्यायाधीश के तौर पर मैं हमेशा मानता हूं कि हम आम आदमी के प्रति जवाबदेह हैं। जब भी मैंने छात्रों या वकीलों को संबोधित किया है, मैंने कहा है कि भारत के हर नागरिक को अदालतों के फैसलों की आलोचना करने का अधिकार है। लेकिन यह आलोचना रचनात्मक होनी चाहिए।''

न्यायमूर्ति ओका ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए समकालीन चुनौतियां विषय पर अपने व्याख्यान में कहा, ''यदि आप किसी निर्णय की आलोचना करना चाहते हैं, तो आपको यह कहकर आलोचना करनी चाहिए कि ये वे आधार हैं जिन पर न्यायाधीश गलत हो गए, या न्यायाधीश द्वारा दर्ज किया गया यह निष्कर्ष सुस्थापित कानून के विपरीत है। यह एक सोची-समझी आलोचना होनी चाहिए।'' न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि तथाकथित विशेषज्ञों को न्यायालय के फैसले के कुछ घंटों बाद ही इस बात पर बहस नहीं करने लगना चाहिए कि फैसला सही है या गलत।

उन्होंने कहा, ''यदि आप निर्णय की आलोचना करना चाहते हैं, तो आपको ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन कृपया निर्णय की सावधानीपूर्वक जांच करें और फिर बताएं कि निर्णय गलत क्यों हुआ।'' न्यायमूर्ति ओका ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की आलोचना न्यायपालिका की आलोचना करने के समान है, क्योंकि न्यायाधीश आत्मसंयम का पालन करते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास का एकमात्र उत्तर एक स्वतंत्र बार है। न्यायमूर्ति ओका के अनुसार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का मूल ढांचा है, जिसकी पूरी लगन से रक्षा की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि यह दिखाने के लिए ऐतिहासिक उदाहरण हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कैसे प्रभावित हो सकती है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 1973 के केशवानंद भारती फैसले का हवाला दिया, जिसने मूल संरचना सिद्धांत को स्थापित किया। इस फैसले में कहा गया है कि संसद संविधान की कुछ आधारभूत विशेषताओं को नहीं बदल सकती है। उन्होंने कहा, ''यह एक ऐसा निर्णय है जिसने भारत में न्यायपालिका और लोकतंत्र की स्वतंत्रता को बचाया है।'' विधि छात्रों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि राष्ट्रीय विधि विद्यालय का उद्देश्य अच्छे सरकारी वकील, अभियोजक, न्यायिक अधिकारी, न्यायाधीश तथा गुणवत्तापूर्ण विधि शिक्षक तैयार करना होना चाहिए।

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