Hindi Newsदेश न्यूज़Due to lack of economic and social mobility citizens trap within brackets where born Dalit Judge Justice Gavai warns

आप जहां जन्मे, वहीं क्यों फंसे रह जाते हैं? सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी पर दलित जज की पीड़ा और चेतावनी

जस्टिस गवई ने समाज में फैलेे आर्थिक-सामाजिक गतिशीलता की कमी को दूर करने की जरूरतों पर जोर डालते हुए कहा कि सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी नागरिकों को उन्हीं सीमाओं और परिधि के अंदर फंसाकर रहने को मजबूर कर देती है जहां उसका जन्म होता है। दलित जज ने लोगों से ऐसी बंदिशों से बाहर निकलने का आह्वान किया है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 16 Aug 2024 10:41 PM
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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस बी आर गवई ने शुक्रवार को इस बात पर अफसोस जताया कि देश की अधिकांश संपत्ति पर चंद लोगों का कब्जा है, जबकि अधिकांश आबादी दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ कर पाने में लाचार है। संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा नवंबर 1949 में संविधान सभा में अंतिम बहस में दिए गए तर्कों और शब्दों को दोहराते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि सभी को वयस्क मताधिकार द्वारा दी गई राजनीतिक समानता की ताकत हमें अन्य क्षेत्रों में गैर बराबरी का सामना करने के लिए अंधा और मजबूर नहीं बना सकती।

जस्टिस गवई ने समाज में फैलेे आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता की कमी को दूर करने की जरूरतों पर जोर डालते हुए कहा कि सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी नागरिकों को उन्हीं सीमाओं और परिधि के अंदर फंसाकर रहने को मजबूर कर देती है जहां उसका जन्म होता है। दलित जज जस्टिस गवई ने लोगों से ऐसी बंदिशों और बंधनों से बाहर निकलने का आह्वान किया है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गवई ने कहा, "डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि राजनीतिक स्तर पर हमने एक व्यक्ति, एक वोट का प्रावधान करके समानता और न्याय हासिल तो कर लिया है लेकिन आर्थिक और सामाजिक न्याय और उस असमानता के बारे में क्या? हमारा समाज तंग श्रेणियों में बंटा हुआ है, जहां व्यक्ति एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में सफर नहीं कर सकता। आर्थिक स्तर पर हमारे पास एक ऐसा समाज है जहां देश की पूरी संपत्ति कुछ हाथों में केंद्रित है, जबकि विशाल आबादी के लिए दिन में दो बार भोजन करना भी मुश्किल है। इसलिए, उन्होंने (डॉ. अम्बेडकर) हमें चेतावनी दी कि हमें इन असमानताओं को मिटाने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो लोकतंत्र की जो इमारत इतनी मेहनत से बनी है, वह ढह जायेगी।”

दरअसल, जस्टिस गवई केरल हाई कोर्ट के उस कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, जिसमें हाई कोर्ट कई नई पहलों की शुरुआत की है। केरल हाई कोर्ट ने आज चेक डिजॉनर के मामलों से निबटने के लिए भारत की पहली विशेष डिजिटल अदालत और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामलों के निबटान के लिए केरल की छठी विशेष अदालत की शुरुआत की है।

इस मौके पर केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन भी मौजूद थे। विजयन ने अपने संबोधन में संविधान निर्माताओं के उस विजन को दोहराया जिसमें संविधान में अनुच्छेद 17 देश में अस्पृश्यता को समाप्त करने का कानूनी प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री ने समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए केरल सरकार की प्रतिबद्धता भी जताई।

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