Hindi Newsदेश न्यूज़Delhi High Court Justice Yashwant Varma cash row was named in CBI case in Simbhaoli Sugars Limited

97 करोड़ के घोटाले में भी आया था जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम, CBI ने दर्ज किया था केस

  • CBI ने इस मामले में 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें यशवंत वर्मा 10वें आरोपी के रूप में सूचीबद्ध थे। तब वह कंपनी के नॉन-एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में कार्यरत थे।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 22 March 2025 10:42 AM
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97 करोड़ के घोटाले में भी आया था जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम, CBI ने दर्ज किया था केस

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में उनके आधिकारिक आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में कैश बरामद किया गया। यह खुलासा तब हुआ जब उनके घर में आग लगने की सूचना के बाद दमकल विभाग ने मौके पर पहुंचकर जांच की। बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने से एक पुराने आर्थिक घोटाले की परतें फिर से खुलने लगी हैं। यह घोटाला सिम्भौली शुगर मिल फ्रॉड केस से जुड़ा हुआ है, जिसमें जस्टिस वर्मा भी एक आरोपी के रूप में नामित थे।

2018 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने सिम्भौली शुगर मिल्स लिमिटेड के खिलाफ एक जांच शुरू की थी, जिसमें कंपनी पर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से लिए गए करोड़ों रुपये के ऋण को गलत तरीके से इस्तेमाल करने का आरोप था। बैंक ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने किसानों के लिए जारी किए गए 97.85 करोड़ रुपये के ऋण का दुरुपयोग किया और इन धनराशियों को अन्य उद्देश्यों के लिए मोड़ दिया। मई 2015 तक इस घोटाले को "संभावित धोखाधड़ी" मानते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को रिपोर्ट कर दिया गया था। CBI ने इस मामले में 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें यशवंत वर्मा 10वें आरोपी के रूप में सूचीबद्ध थे। उस समय, वह कंपनी के नॉन-एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में कार्यरत थे। हालांकि, जांच धीमी होती चली गई और किसी बड़े कदम की घोषणा नहीं की गई।

कैसे रुकी CBI की जांच?

फरवरी 2024 में एक अदालत ने सीबीआई को बंद पड़ी इस जांच को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया, जिससे CBI की प्रारंभिक जांच को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया। इस फैसले के बाद, सिम्भौली शुगर मिल घोटाले से जुड़े वित्तीय अनियमितताओं की किसी भी जांच की संभावना खत्म हो गई।

जस्टिस वर्मा के घर से बरामद नकदी पर उठे सवाल

रिपोर्टों के मुताबिक, आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों को संदिग्ध परिस्थितियों में भारी मात्रा में नकदी मिली, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम तक पहुंचा। कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरू की है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह ट्रांसफर नकदी बरामदगी की जांच से संबंधित नहीं है। हालांकि भारी मात्रा में नकदी मिलने से उनकी पुरानी वित्तीय गतिविधियों पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इससे न केवल उनकी 22 वर्षों की बेदाग न्यायिक छवि प्रभावित हुई है, बल्कि सिम्भौली शुगर घोटाले में उनकी भूमिका पर भी नए सिरे से बहस छिड़ गई है।

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कांग्रेस ने साधा निशाना

कांग्रेस पार्टी ने इस मामले पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, "यह बेहद गंभीर मामला है। जस्टिस वर्मा उन्नाव बलात्कार जैसे संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर रहे थे। जनता के न्यायपालिका में भरोसे को बनाए रखने के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि यह पैसा किसका था और इसे जज को क्यों दिया गया।" उन्होंने यह भी तंज कसा कि "दमकल विभाग ईडी और सीबीआई से बेहतर काम कर रहा है।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले की आंतरिक जांच शुरू कर दी है और उनकी रिपोर्ट आज भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंपी जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। इस बीच, जस्टिस वर्मा के 22 साल के अब तक के बेदाग करियर पर सवाल उठ रहे हैं, और यह घटना न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर बहस छेड़ रही है।

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