जनता को बताएं कि राज्य की हालत क्या है, कितना कर्ज बढ़ेगा; ‘मुफ्त-मुफ्त’ पर ECI
राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनावी प्रक्रिया को लेकर कई बड़ी बातें कहीं। वोटर लिस्ट, ईवीएम से लेकर वोटिंग पर्सेंटेज तक पर उठाए जा रहे सवालों पर उन्होंने विस्तार से जवाब दिया।
राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनावी प्रक्रिया को लेकर कई बड़ी बातें कहीं। वोटर लिस्ट, ईवीएम से लेकर वोटिंग पर्सेंटेज तक पर उठाए जा रहे सवालों पर उन्होंने विस्तार से जवाब दिया और यह भरोसा दिया कि देश में चुनाव पूरी निष्पक्षता के साथ कराए जा रहे हैं। इस दौरान उन्होंने चुनाव में 'फ्रीबीज' (मुफ्त वाली स्कीमों) के बढ़ते चलन पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह मामला अदालत में विचाराधीन होने की वजह से उनके हाथ बंधे हुए हैं। हालांकि, राजीव कुमार ने मुफ्त की घोषणाओं की वजह से कई राज्यों की आर्थिक हालत बिगड़ने का जिक्र करते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को गिरवी नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को बताना चाहिए कि घोषणा पत्र में किए गए उनके वादों का राज्य की आर्थिक हालत पर क्या असर होगा।
मुफ्त वाले वादों से जुड़े एक सवाल के जवाब में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, 'फ्रीबीज का मामला अदालत में विचारधीन है इसलिए हम इस पर नहीं बोल रहे हैं लेकिन चूंकि आपने रिफॉर्म को लेकर पूछा है तो मैं आपको बता सकता हूं कि क्या मौजूदा प्रावधान हैं, क्या किया जा सकता है और क्या करना चाहिए। ‘सुब्रमण्यम बालाजी बनामा तमिलनाडु राज्य’ के केस में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि फ्रीबीज पर रोक नहीं लगा सकते हैं। हमारे हाथ बंधे हुए हैं, मामला कोर्ट में है।'
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि यह अर्थव्यवस्था का सवाल है कि जो मेरे लिए फ्रीबीज है वह किसी के लिए हक है। फ्रीबीज और हक के बीच एक पतली रेखा है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को घोषणा पत्र के साथ यह भी बताना चाहिए कि राज्य की आर्थिक हालत क्या है और जो वादे वह कर रहे हैं उसका क्या असर होगा। राजीव कुमार ने कहा, 'हमने राजनीतिक दलों को परफॉर्मा दिया है, इसका तुरंत इस्तेमाल होना चाहिए और जनता को बताना चाहिए कि जो भी घोषणापत्र का वादा है, हम फ्रीबीज शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इसे परिभाषित करना मुश्किल है, जरूरी है कि राज्य के आर्थिक हालात की तस्वीर जनता को पता होनी चाहिए। जीडीपी/जीएसडीपी और कर्ज का अनुपात क्या है, आप कितना कर्ज लेंगे, कितना ब्याज चुकाएंगे, आप कितना कर्ज ले सकते हैं, आपने जो वादा किया है उसकी कीमत क्या है?'
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि बहुत से राज्य हैं, मैं नाम नहीं ले सकता है, उन्होंने इतने वादे कर दिए हैं कि उनके लिए सैलरी देना मुश्किल है। यदि आप आरबीआई का रिपोर्ट पढ़ें... हम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य गिरवी नहीं रख सकते हैं। यह गंभीर मुद्दा है। हमने परफॉर्मा वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। समय आ चुका है कि इसे स्वीकार किया जाए, कानूनी जवाब तलाशना चाहिए लेकिन इस समय हमारे हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि मामला अदालत में है।