भारत के लिए क्यों खतरनाक है चीन का सुपर डैम, नॉर्थ ईस्ट में मच सकती है तबाही
- प्रस्तावित बांध पर तीन जनवरी को अपनी पहली प्रतिक्रिया में, भारत ने चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले निचले इलाकों के हितों को ऊपरी इलाकों में होने वाली गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे।
चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी कर रहा है। अब इस बांध को लेकर जानकारों का कहना है कि इससे भारत को बाढ़ और सूखा समेत कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, चीन का कहना है कि इससे भारत और बांग्लादेश पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। नदी को तिब्बत में यारलुंग जांगपो भी कहा जाता है।
पिछले महीने, चीन ने तिब्बत में भारतीय सीमा के करीब ब्रह्मपुत्र नदी पर यारलुंग जांगबो नामक एक बांध बनाने की योजना को मंजूरी दी थी। योजना के अनुसार, विशाल बांध हिमालय की पहुंच में एक विशाल घाटी पर बनाया जाएगा, जहां से ब्रह्मपुत्र अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश में पहुंचती है।
एक्सपर्ट की राय
धर्मशाला में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट में शोधकर्ता और डिप्टी डायरेक्टर तेम्पा ग्यालस्टन ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में बताया कि इसका भारत पर बहुत गंभीर असर होगा। उन्होंने कहा, 'साल 2020 में जब इस बांध का विचार आया, तब मैंने एक आर्टिकल लिखा था, जिसका नाम 'China's super dam in Tiber and its implications for India' और अब इसे आधिकारिक मंजूरी मिल गई है, जिसका मतलब है कि निर्माण तेजी से होगा।'
उन्होंने पूर्वोत्तर भारत का खासतौर से जिक्र किया और कहा, 'मैं कुछ उदाहरण देता हूं। गर्मियों में जब क्षेत्र में पानी का अत्याधिक बहाव होगा, तो पानी स्टोर करने वाला बांध भी अतिरिक्त पानी छोड़ेगा, जिसका मतलब है कि क्षेत्र में बाढ़ आने की आशंका बढ़ जाएगी। सर्दी में जब मौसम शुष्क होता है, तो बांध क्षेत्र में बह रही किसी भी नदी का पानी स्टोर कर लेगा, जिसका मतलब है कि क्षेत्र में पानी की कमी आएगी। ऐसे में किसी भी तरह से पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारतीय समुदाय के लिए यह बहुत बड़ा नुकसान है।'
ग्यालस्टन ने बताया, 'हम जानते हैं कि हिमालयी क्षेत्र भूकंप गतिविधियों को लेकर काफी संवेदनशील है और यह साबित हो चुका है कि मेगा डैम की वजह से भूकंप की गतिविधियां बढ़ती हैं। ऐसे में जिसे हम तिब्बत में यारलुंग जांगबो कहते हैं और भारत में प्रवेश करते ही ब्रह्मपुत्र कहा जाता है, वहां पर चीन ने जिस बड़े डैम का प्रस्ताव रखा है, उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।'
अगर युद्ध हुआ तो
उन्होंने कहा, 'तीसरा असर राजनीतिक हो सकता है, क्योंकि चीन इस बांध का इस्तेमाल कई तरह से कर सकता है। अगर चीन के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं तो इसका अच्छा उपयोग कर सकता है, लेकिन अगर रिश्तों में उतार-चढ़ाव आता है... और अगर किसी मोड़ पर भारत और चीन के रिश्ते बिगड़ते हैं, तो चीन की सरकार किसी और ढंग से डैम का इस्तेमाल कर सकती है।'
उन्होंने कहा, 'अगर भारत और चीन में युद्ध होता है, तो वे निश्चित रूप से बांध से पानी छोड़ सकते हैं, जिसका नतीजा यह होगा कि क्षेत्र में बाढ़ आ जाएगी या पानी रोक सकते हैं जिसके चलते सूखा पड़ सकता है। ये मुद्दे हैं। मुझे लगता है कि भारत सरकार इन्हें समझेगी।'
भारत जता चुका है चिंता
प्रस्तावित बांध पर तीन जनवरी को अपनी पहली प्रतिक्रिया में, भारत ने चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले निचले इलाकों के हितों को ऊपरी इलाकों में होने वाली गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने दिल्ली में मीडिया से कहा, 'हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी जारी रखेंगे और आवश्यक कदम उठाएंगे।'
जायसवाल ने कहा, 'नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल के उपयोग का अधिकार रखने वाले देश के रूप में, हमने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से, चीनी पक्ष के समक्ष उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और चिंताएं लगातार व्यक्त की हैं।' उन्होंने कहा, 'हालिया रिपोर्ट के बाद, इन बातों को दोहराया गया है। साथ ही, नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों के साथ पारदर्शिता बरतने और परामर्श की जरूरत बताई गई है।'
उन्होंने कहा, 'चीनी पक्ष से आग्रह किया गया है कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों के हितों को नदी के प्रवाह के ऊपरी क्षेत्र में गतिविधियों से नुकसान नहीं पहुंचे।' भारत की यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुलिवन के साथ भारतीय अधिकारियों की वार्ता में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी।