डर के मारे मालदा में शरण लिए बैठे 250 परिवार, ममता के मंत्री बोले- बंगाल से बाहर तो नहीं भागे
- मजूमदार ने कहा कि इन लोगों के घरों को तबाह कर दिया गया। संपत्ति को नुकसान हुआ और जान से मारने की धमकियां दी गईं। एक महिला तो अपने 4 दिन के बच्चे को लेकर यहां शरण लिए हुए हैं। शुक्रवार को भड़की इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि कई घायल हुए हैं।

बंगाल भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने सोमवार को मालदा के एक स्कूल में रिलीफ कैंप का दौर किया। इस राहत शिविर में बड़ी संख्या में हिंदू परिवारों ने शरण ले रखी है, जो मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा से बचकर आए हैं। हिंदू परिवारों का कहना है कि उन पर जानलेवा हमले वक्फ ऐक्ट के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुए। उन हमलों से बचने के लिए ही वे यहां भागकर आए हैं। मजूमदार ने इन परिवारों से मुलाकात के बाद स्पेशल कंट्रोल रूम का भी दौरा किया, जिसे इन लोगों की मदद के लिए बनाया गया है। मजूमदार से बातचीत के दौरान कई महिलाएं अपनी पीड़ा सुनाते हुए रो पड़ीं। मजूमदार ने कहा कि इन लोगों के घरों को तबाह कर दिया गया। संपत्ति को नुकसान हुआ और जान से मारने की धमकियां दी गईं। एक महिला तो अपने 4 दिन के बच्चे को लेकर यहां शरण लिए हुए हैं।
शुक्रवार को भड़की इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि कई घायल हुए हैं। मजूमदार ने कहा कि कट्टरपंथी तत्वों ने ये जानलेवा हमले प्रदर्शन के नाम पर किए हैं। उन्होंने कहा कि यहां 200 से 250 परिवारों ने शरण ली है। अब पुलिस के दबाव के चलते यहां सिर्फ 70 से 75 परिवार ही बचे हैं। ये अब भी यहां डर के मारे बने हुए हैं और जाना नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि राज्य की पुलिस भेदभाव कर रही है। ऐसे में केंद्रीय बलों से ही निष्पक्ष होकर काम करने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हम अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और मांग करेंगे कि सुरक्षा एवं राहत कार्य की जिम्मेदारी केंद्रीय बलों को सौंप दी जाए।
वहीं भाजपा के ही सीनियर लीडर शुभेंदु अधिकारी ने मांग की कि प्रदेश में 2026 में होने वाला विधानसभा चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत करवाया जाना चाहिए। अधिकारी ने कहा कि सुती, धुलियान, जंगीपुर और शमशेरगंज सहित मुर्शिदाबाद के कुछ हिस्सों में जारी अशांति ने नागरिकों की सुरक्षा और शांति बनाए रखने में राज्य सरकार की अक्षमता को उजागर किया है। उन्होंने दावा किया कि जब भीड़ उत्पात मचा रही थी, तब सरकार मूकदर्शक बनी रही। विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा, ‘जहां भी हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें मतदान करने से रोका जाता है। पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं की तरह काम करती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए विधानसभा चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत होने चाहिए।’
हाल ही में हुई हिंसा के पीछे ‘जिहादी तत्वों’ का हाथ होने का आरोप लगाते हुए अधिकारी ने कहा, ‘इन समूहों को बेलगाम होने की परमिशन मिली है। हम उनसे निपटने के लिए तैयार हैं, लेकिन सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। निर्वाचन आयोग को चुनाव से पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने पर विचार करना चाहिए।’ अधिकारियों ने बताया कि हिंसा से प्रभावित सैकड़ों लोगों ने कथित तौर पर भागीरथी नदी पार कर पड़ोसी मालदा जिले में शरण ली है। स्थानीय प्रशासन ने विस्थापित परिवारों को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराया है, उन्हें स्कूलों में ठहराया है और नावों से आने वालों की सहायता के लिए स्वयंसेवी दल गठित किए हैं। अशांति की शुरुआत वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन से हुई, जो जल्द ही झड़पों में बदल गई, जिसमें कम से कम तीन लोग मारे गए और कई घायल हो गए।
भाजपा के आरोपों पर जवाब देते हुए टीएमसी नेता और मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा, ‘लोग बंगाल के भीतर ही बस रहे हैं, राज्य से भाग नहीं रहे हैं। प्रशासन सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है और पुलिस जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के लिए काम कर रही है।’ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को घोषणा की कि उनकी सरकार राज्य में संशोधित वक्फ अधिनियम लागू नहीं करेगी। इस बीच, अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर कार्रवाई करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शनिवार को हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की तैनाती का निर्देश दिया। अगले साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं।