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असम सरकार ने बताया- 1985 से अब तक इतने बांग्लादेशियों को भेजा गया राज्य से वापस

  • असम एकॉर्ड पर 1985 में केंद्र, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। इसके बाद राज्य में बाहरियों के खिलाफ छह साल से चल रहा आंदोलन भी खत्म हुआ था।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तान, गुवाहाटीWed, 28 Aug 2024 12:52 PM
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असम सरकार ने बुधवार को विधानसभा में बताया है कि असम एकॉर्ड यानी असम समझौते पर दस्तख़त के बाद से पिछले 39 सालों में अवैध रूप से भारत में घुसपैठ करने वाले कुल 30,113 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया है। 1985 में अवैध रूप से असम में रहने वाले बांग्लादेशी लोगों के खिलाफ छह साल के आंदोलन के बाद असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे और इसमें यह तय किया गया था कि ऐसे सभी लोगों का पता लगाया जाएगा और उन्हें उनके देश वापस भेजा जाएगा। साथ ही इसमें यह भी कहा गया था कि इसके तहत पड़ोसी देश के साथ सीमा को सील करने के सभी प्रयास किए जाएंगे।

असम समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद से अब तक कुल 30,113 बांग्लादेशियों को वापस भेजा जा चुका है। इस समझौते के कार्यान्वयन पर कांग्रेस विधायक रेकीबुद्दीन अहमद द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए सीमा क्षेत्र संरक्षण एवं विकास मंत्री अतुल बोरा ने यह जानकारी विधानसभा में दी।

केंद्रीय गृह मंत्रालय को जल्द सौंपी जाएगी रिपोर्ट

फरवरी 2020 में असम समझौते के क्लॉज 6 को लागू करने के लिए सिफारिशें करने वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट पर बात करते हुए मंत्री ने कहा कि इसे जल्द ही केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपने की कोशिश की जाएगी। बोरा ने विधानसभा को बताया, “रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद असम सरकार ने कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर विचार करने के लिए तीन मंत्रियों और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के नेताओं की एक उप-समिति का गठन किया गया था। इसकी बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी और जल्द से जल्द केंद्र को रिपोर्ट सौंपने की कोशिश भी की जाएगी।”

1985 में केंद्र, AASU और AAGSP के बीच हुआ था समझौता

असम एकॉर्ड पर 1985 में केंद्र, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। इसके बाद राज्य में बाहरियों के खिलाफ छह साल से चल रहा आंदोलन भी खत्म हुआ था। समझौते के क्लॉज 6 में कहा गया है, “असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए संवैधानिक, कानूनी और प्रशासनिक उपाय किए जाएंगे।” हालांकि तीन दशकों तक यह क्लॉज ठंडे बस्ते में रहा। 2019 में केंद्र सरकार ने जनवरी में एक समिति का गठन किया था। जस्टिस (रिटायर्ड) बिप्लब कुमार सरमा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यीय समिति ने अब तक केंद्र को रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

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