Hindi Newsदेश न्यूज़75 percent problems in Ladakh has been resolved Jaishankar spoke on the deteriorating relations between India and China

लद्दाख में 75% तक सुलझ गया विवाद; भारत-चीन के बिगड़े संबंध पर बोले जयशंकर, सबसे बड़ी समस्या का भी जिक्र

  • जयशंकर ने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्षों ने भारत-चीन संबंधों को समग्र तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि कोई भी सीमा पर हिंसा के बाद यह नहीं कह सकता कि बाकी संबंध इससे अछूते हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तानFri, 13 Sep 2024 12:10 AM
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लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद खराब हुए भारत-चीन के रिश्ते पर पटरी पर लौटने के आसार बनते दिख रहे हैं। भारत की तरफ से इसकी हर कोशिश की जा रही है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर गुरुवार को कहा कि सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याएं लगभग 75 प्रतिशत तक सुलझ गई हैं लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण का है। उन्होंने स्विट्जरलैंड में थिंकटैंक ‘जिनेवा सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी’ के साथ संवाद सत्र में यह बात कही है।

जयशंकर ने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्षों ने भारत-चीन संबंधों को समग्र तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि कोई भी सीमा पर हिंसा के बाद यह नहीं कह सकता कि बाकी संबंध इससे अछूते हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘बातचीत चल रही है। हमने कुछ प्रगति की है। आप मोटे तौर पर कह सकते हैं कि सैनिकों की वापसी संबंधी करीब 75 प्रतिशत समस्याओं का हल निकाल लिया गया है। हमें अब भी कुछ चीजें करनी हैं।’’ उन्होंने कहा कि लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि हम दोनों ने अपनी सेनाओं को एक दूसरे के करीब ला दिया है और इस लिहाज से सीमा का सैन्यीकरण हो रहा है।

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इससे कैसे निपटा जाए? मुझे लगता है कि हमें इससे निपटना होगा। झड़प के बाद इसने पूरे रिश्ते को प्रभावित किया है क्योंकि आप सीमा पर हिंसा के बाद यह नहीं कह सकते हैं कि बाकी रिश्ते इससे अछूते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि सैनिकों की वापसी के मुद्दे का कोई हल निकले और अमन चैन लौटे तो हम अन्य संभावनाओं पर विचार कर सकते हैं।’’

भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ टकराव वाले बिंदुओं पर गतिरोध बना हुआ है, जबकि दोनों पक्षों ने व्यापक कूटनीतिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी पूरी कर ली है। भारत लगातार कहता रहा है कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते।

भारत-चीन संबंधों को ‘जटिल’ करार देते हुए जयशंकर ने कहा कि 1980 के दशक के अंत में दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य तरह के थे और इसका आधार यह था कि सीमा पर शांति थी। उन्होंने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से अच्छे संबंधों, यहां तक ​​कि सामान्य संबंधों का आधार यह है कि सीमा पर शांति और सौहार्द बना रहे। 1988 में जब हालात बेहतर होने लगे, तो हमने कई समझौते किए, जिससे सीमा पर स्थिरता आई।’’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘2020 में जो कुछ हुआ वह कुछ कारणों से कई समझौतों का उल्लंघन था जो अभी भी हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं; हम इस पर अटकलें लगा सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘चीन ने वास्तव में सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और स्वाभाविक रूप से जवाबी तौर पर हमने भी अपने सैनिकों को भेजा। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि हम उस समय कोविड लॉकडाउन के दौर में थे।’’ जयशंकर ने घटनाक्रम को बहुत खतरनाक बताया।

उन्होंने गलवान घाटी के संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ हम सीधे तौर पर देख सकते थे कि यह एक बहुत ही खतरनाक घटनाक्रम था क्योंकि अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में और अत्यधिक ठंड में बड़ी संख्या में सैनिकों की मौजूदगी दुर्घटना का कारण बन सकती थी। और जून 2022 में ठीक यही हुआ।’’

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत के लिए मुद्दा यह था कि चीन ने अमन चैन को बिगाड़ा क्यों और उन सैनिकों को क्यों भेजा और इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। उन्होंने कहा, ‘‘हम करीब चार साल से बातचीत कर रहे हैं और इसका पहला कदम वह है जिसे हमने सैनिकों की वापसी (डिसइंगेजमेंट) कहा, जिसके तहत उनके सैनिक अपने सामान्य परिचालन ठिकानों पर वापस चले जाएं और हमारे सैनिक अपने सामान्य परिचालन केंद्रों पर लौट जाएं और जहां आवश्यक हो, वहां हमारे पास गश्त को लेकर व्यवस्था हो क्योंकि हम दोनों उस सीमा पर नियमित रूप से गश्त करते हैं। जैसा कि मैंने कहा कि यह कानूनी रूप से चित्रित सीमा नहीं है।’’

जयशंकर अपनी तीन दिन की यात्रा के अंतिम चरण में यहां आए। वह सऊदी अरब और जर्मनी भी गए थे।

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