कैसे महाराष्ट्र और कर्नाटक में सुनाई दे रही थप्पड़ों की गूंज, बसें तक चलना बंद; सड़कों पर लड़ाई
- सोमवार को कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने सीमा विवाद के फिर से उभरने के बाद संयम की अपील की। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया जो ऐसी घटनाओं में शामिल हैं।

बेलगावी में तनाव उस समय बढ़ गया जब एक समूह ने कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC) की बस के कंडक्टर और ड्राइवर को कथित रूप से पीट दिया। उनका आरोप था कि कंडक्टर यात्री से मराठी में बात नहीं कर रहा था। इस घटना के बाद कंडक्टर के खिलाफ कथित रूप से बदतमीजी करने की शिकायत भी दर्ज कराई गई है। यह भाषाई विवाद गहराता ही जा रहा है। सीमा क्षेत्र में कन्नड़-मराठी भाषा विवाद के कारण कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच बस सेवाओं को मंगलवार के लिए भी निलंबित कर दिया गया।
आपको बता दें कि दोनों राज्यों के कर्मचारियों ने अपनी-अपनी भाषाओं को लेकर आपसी हमले और झगड़े शुरू कर दिए। कर्नाटक के सीमा क्षेत्रों में भाषाई तनाव का इतिहास काफी लंबा है। मराठी और कन्नड़ बोलने वालों की बड़ी आबादी अक्सर भाषा अधिकारों को लेकर टकराती रहती है।
नॉर्थ वेस्ट कर्नाटक रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (NWKRTC) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, "हमने कल से महाराष्ट्र के लिए बस सेवाओं को निलंबित कर दिया है। महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) ने भी कर्नाटक के लिए बसों की आवाजाही रोक दी है।" इस सबके बीच नारायण गौड़ा के नेतृत्व में कर्नाटक रक्षा वेदिके (KRV) ने मंगलवार को 'बेलगावी चलो' का आह्वान किया, जिसमें प्रदर्शन और जनसभा आयोजित करने की योजना है।
कर्नाटक के मंत्रियों की अपील
कर्नाटक के मंत्रियों ने भी तनावपूर्ण स्थिति के बीच शांति और सौहार्द की अपील की है। हालांकि, राज्य के परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाया कि वे KSRTC की बसों पर हमले करने वाले अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। रेड्डी ने बेलगावी में मराठी न बोलने के कारण हमले का शिकार हुए बस कंडक्टर महादेप्पा हुकरि से भी मुलाकात की।
महाराष्ट्र सरकार से कार्रवाई की आपील
सोमवार को कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने सीमा विवाद के फिर से उभरने के बाद संयम की अपील की। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया जो ऐसी घटनाओं में शामिल हैं। उन्होंने कहा, "बेलगावी में अक्सर भाषाई विवाद होते हैं। हमें सावधानी से कदम उठाने होंगे। यह महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों के लिए जरूरी है, क्योंकि हमें इसे और बढ़ने नहीं देना चाहिए।"
कुमारस्वामी ने की कर्नाटक सरकार की आलोचना
केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी राज्य सरकार की आलोचना करते हुए बेलगावी में कन्नड़ भाषियों पर हमले की निंदा की। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के शासन में इस क्षेत्र की स्थिति अराजक हो गई है। उन्होंने कहा, "2006-07 में जब मैं मुख्यमंत्री था तो एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने के बाद महाराष्ट्र के बेलगावी पर कब्जे की कोशिशों को रोका था। मैंने इसे सुनिश्चित किया। मैंने बेलगावी को राज्य की दूसरी राजधानी बनाया और सुवर्ण विधान सौध का शिलान्यास किया। इस सरकार में बेलगावी की स्थिति अराजक हो गई है।"
क्या है बेलगावी विवाद?
यह विवाद 1956 में भारतीय राज्यों के भाषाई पुनर्गठन से शुरू हुआ था और आज तक इसका समाधान नहीं हो पाया है। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद बहुभाषी आबादी वाला क्षेत्र बेलगाम (अब बेलगावी) जिला तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। यह भाषाई और क्षेत्रीय विवादों का केंद्र बिंदु बन गया। 1948 में बेलगाम नगरपालिका ने अनुरोध किया कि इस क्षेत्र को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए, क्योंकि उनका दावा था कि यहां मुख्य रूप से मराठी आबादी है।
सीमा विवादों को हल करने के लिए 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया, जिसने भाषाई जनसांख्यिकी के आधार पर राज्य की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया। इस अधिनियम के तहत बेलगाम को कर्नाटक (तत्कालीन मैसूर राज्य) में मिला दिया गया। इस अधिनियम में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता वाले राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) की सिफारिशें शामिल थीं, जिसकी स्थापना 1953 में की गई थी। पैनल ने सिफारिश की कि बेलगाम जिला जिसमें बेलगाम शहर और आसपास के क्षेत्र शामिल हैं, तत्कालीन मैसूर राज्य का हिस्सा बने रहें।
पैनल ने सीमावर्ती क्षेत्रों में मराठी और कन्नड़ दोनों भाषी आबादी की मौजूदगी को स्वीकार किया। हालांकि, महाराष्ट्र ने लंबे समय से इस क्षेत्र पर दावा किया है। महाराष्ट्र का यह तर्क है कि बेलगाम और आसपास के गांवों सहित मराठी भाषी क्षेत्रों को सही मायने में उसके क्षेत्र का हिस्सा होना चाहिए। इस विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने 1966 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन के नेतृत्व में महाजन आयोग की स्थापना की।
इस आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम शहर और उसके आसपास के 247 गांव कर्नाटक के भीतर ही रहें। इसने प्रस्ताव दिया कि निप्पनी, खानपुर और नंदगढ़ जैसे क्षेत्रों सहित 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया जाए। महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को पक्षपाती और अतार्किक बताते हुए खारिज कर दिया, जबकि कर्नाटक ने इसका स्वागत किया।
इस विवाद ने 2004 में कानूनी मोड़ ले लिया जब महाराष्ट्र ने इस क्षेत्र पर कर्नाटक के नियंत्रण को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। यह मामला आज भी लंबित है। महाराष्ट्र विधानसभा ने 2022 में बेलगावी और कर्नाटक के अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों पर अपना दावा जताते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया। महाराष्ट्र ने महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) जैसे समूहों को भी समर्थन दिया है।
इस बीच कर्नाटक ने बेलगावी में विधानमंडल सत्र आयोजित करके बार-बार अपना दावा पेश किया है। राज्य ने बेलगावी के महाराष्ट्र में विलय के पक्ष में प्रस्ताव पारित करने के लिए कई बार बेलगावी नगर निगम को भी भंग कर दिया है। 2022 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बेलगावी और कर्नाटक के अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करके विवाद को हवा दी। जवाब में तत्कालीन कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र में कन्नड़ स्कूलों के लिए अनुदान की घोषणा की।