मध्य प्रदेश में चंबल ने बढ़ा दी BJP की चिंता, सिंधिया के बाद कृषि मंत्री तोमर के गढ़ में भी हार; कौन जिम्मेदार?
पहले चरण में जहां बीजेपी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में हार का सामना करना पड़ा तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना में भी पार्टी की हार हुई।
मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना दबदबा कायम रखा है। पार्टी ने 16 में से 9 नगर निगम में मेयर का पद हासिल किया है। हालांकि, 2015 के मुकाबले पार्टी को नुकसान झेलना पड़ा है, तब सभी 16 नगर निगम में भगवा परचम लहराया था। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सेमीफाइनल कहे जा रहे इस चुनाव में चंबल क्षेत्र ने भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है। पहले चरण में जहां बीजेपी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में हार का सामना करना पड़ा तो अब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना में भी पार्टी को पराजय मिली है।
कांग्रेस महापौर प्रत्याशी शारदा राजेंद्र सोलंकी ने 14 हजार 600 वोट से जीत हासिल की है। उन्होंने भाजपा की मीना जाटव को हराया। मुरैना नगर निगम में बीजेपी की मेयर प्रत्याशी मीना जाटव ने लगातार पिछड़ी रहीं और कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष अशोक सिंह की पत्नी शारदा सोलंकी ने उन्हें बड़े अंतर से हराया। कांग्रेस को मुरैना के अलावा रीवा में भी मेयर पद पर जीत मिली है। वहीं, देवास और रतलाम में एक बार फिर कमल खिला है।
मुरैना में मिली हार को पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इससे पहले सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में हार के बाद पार्टी असहज थी। अब एक और केंद्रीय मंत्री के गढ़ में हार के बाद सवाल और उठेंगे। खास बात यह है कि संघ और तोमर की पसंद से ही बीजेपी ने यहां प्रत्याशी का चुनाव किया था। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए भी परिणाम सदमे जैसे क्योंकि मुरैना उनका गृह जिला है।
2023 से 24 तक के लिए बढ़ गई चिंता
वैसे तो नगरीय निकाय चुनाव में हार या जीत से विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजे तय नहीं होते लेकिन नैरेटिव से लेकर कार्यकर्ताओं के मनोबल तक पर इसका असर होता है। चंबल क्षेत्र में हार के बाद भाजपा के लिए अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक टेंशन बढ़ गई है। पार्टी को जल्द ही यहां खामियों की तलाश करके उन्हें दुरुस्त करना होगा। पार्टी के रणनीतिकारों के लिए भी चंबल का फैसला चौंकाने वाला है।
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