Hindi Newsमध्य प्रदेश न्यूज़Kuno cheetahs death experts tells ministry young cheetahs should have been taken not more than expected rate of death while rehabilitation

इतनी मौत तो होनी ही थी, दूसरी जगह हो चीतों की शिफ्टिंग; कूनो में संकट पर विदेशी एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट

कूनो में चीतों की मौत पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने वाली एक्सपर्ट टीम ने सरकार को सलाह दी है कि प्रोजेक्ट चीता के तहत कम उम्र के चीतों को लाया जाए। अबतक हुई मौतें रिहैबिलिटेशन के दौरान संभावित थीं।

Abhishek Mishra भाषा, श्योपुरThu, 3 Aug 2023 01:28 PM
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मध्य प्रदेश के कूनो में चीतों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अबतक 9 चीतों की मौत हो चुकी है। पिछले साल नामीबिया से लाए गए चीतों को अबतक एक साल भी नहीं हुआ है। वन विभाग की एक्सपर्ट टीम के अलावा विदेशी टीम भी अब चीतों की मौत की वजहों की जानकारी जुटाने में लगी हुई है। कूनो से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है। 'प्रोजेक्ट चीता' में शामिल अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शुरुआती अनुभव के आधार पर वन मंत्रालय को सलाह दी है। एक्सपर्ट्स की टीम का मानना है कि भारत में बसाने के लिए कम उम्र के ऐसे चीतों को प्राथमिकता दी जाए जो ह्यूमन डिस्टर्बेंस यानी लोगों और गाड़ियों की आवाजाही के आदी हों।

विदेशी एक्सपर्ट टीम ने सरकार को चीतों को बसाने के लिए मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के अलावा अन्य स्थान चिह्नित करने की भी सलाह दी। हाल में सौंपी गई एक स्थिति रिपोर्ट में कहा कि चीतों की हैबिटैट एडॉप्शन संबंधी ये विशेषताएं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की निगरानी, ​​तनाव मुक्त पशु चिकित्सा और प्रबंधन हस्तक्षेप को सरल बनाने और पर्यटन को बढ़ाने में मदद करती हैं।

एक्सपर्ट्स ने कहा कि कूनो को पर्यटन के लिए खोला जाने वाला है और चीतों के मानव उपस्थिति के आदी होने से उद्यान को पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने में मदद मिल सकती है। कूनो में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों के दो समूह लाए गए हैं इनमें से ज्यादातर चीते मानव डिस्टर्बेंस के आदी नहीं हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि कम उम्र के वयस्क चीते नए माहौल में अधिक आसानी से ढल जाते हैं और अधिक उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर भी अधिक होती है। कम उम्र के नर चीते अन्य चीतों को लेकर ''अपेक्षाकृत कम आक्रामक'' व्यवहार दिखाते हैं, जिससे चीतों की आपसी लड़ाई में होने वाली मौत का खतरा कम हो जाता है।
विशेषज्ञों ने चीतों को बाहर से लाकर भारत में बसाने पर आने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए रेखांकित किया कि कम उम्र के चीते छोड़े जाने के बाद अधिक समय तक जीवित रहते हैं।

रिहैबिलिटेशन में इतनी मौत तो होनी ही थी: एक्सपर्ट्स

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की मौत की दर दुर्भाग्यपूर्ण है और इस कारण ये मुद्दा सुर्खियों में रहा है। लेकिन यह संख्या अभी भी रिहैबिलिटेशन यानी एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्टिंग में संभावित मौत के अनुमान से कम ही है।

एक्सपर्ट्स ने दक्षिण अफ्रीका में चीतों को बसाने की कोशिश के दौरान शुरुआत में हुई दिक्कतों पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि उसकी 10 में से नौ कोशिश असफल हो गई थीं। उन्होंने कहा कि इन अनुभवों के आधार पर वन्य चीता पुनर्वास एवं प्रबंधन की सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया।

कूनो की जगह कहीं और किया जाए शिफ्ट

रिपोर्ट में 'सुपरमॉम' के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। 'सुपरमॉम' दक्षिण अफ्रीका से लाई गईं ऐसी मादा चीतों को कहा जाता है, जो अधिक स्वस्थ और प्रजनन क्षमता के लिहाज से बेहतर होती हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लाए गए चीतों में से सात मादा हैं और उनमें से केवल एक के 'सुपरमॉम' होने की उम्मीद है। विशेषज्ञों ने भारतीय अधिकारियों को चीतों को दोबारा बसाने के लिए कूनो के स्थान पर अन्य स्थलों की पहचान करने की सलाह दी।

 मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में मार्च के बाद से नौ चीतों की मौत हो चुकी है, जिनमें छह वयस्क एवं तीन शावक शामिल हैं। बहुप्रतीक्षित 'प्रोजेक्ट चीता' के तहत, कुल 20 चीतों को दो दलों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से केएनपी में लाया गया था। चार शावकों के जन्म के बाद चीतों की कुल संख्या 24 हो गई थी लेकिन नौ चीतों की मौत के बाद यह संख्या घटकर अब 15 रह गई है।

 

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