दिवाली के अगले दिन गायों के पैरों तले खुद को रौंदवाने की परंपरा, जुड़ी है यह मान्यता
गांव के महेश अग्रवाल बताते हैं कि जब गाय हमारे ऊपर से गुजरती है तो हमें फूल सा महसूस होता है। हम 5 दिन पहले से ही मंदिरों में रहते हैं, गाय का दूध पीते हैं और कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में बड़नगर रोड स्थित एक गांव भीड़ावद मैं वर्षों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है। चार हज़ार की आबादी वाले इस गांव में दीपावली के दूसरे दिन दर्जनों लोग मन्नत लेकर आते हैं और जमीन पर लेट जाते हैं। फिर उनके ऊपर दर्जनों से अधिक गायों को छोड़ दिया जाता है। दर्जनों गाय जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर से गुजर जाती हैं। इस मंज़र को देखने के लिए हर साल इस गांव में हजारों लोग जमा होते हैं। गांव में ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं लेकिन यहां के बुजुर्ग हों या जवान सभी इसे देखते हुए बड़े हुए हैं। इस गांव और आसपास के इलाकों के वो लोग यहां आते हैं जिन्हें मन्नत मांगनी होती है या जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है।
वो दीपावली के पांच दिन पहले ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ देते हैं और यहां माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगते हैं। दिवाली के अगले दिन फिर ये मेला लगता है। जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है वो गायों के सामने जमीन पर लेट जाते हैं। इस साल भी गांव के सात लोगों ने मन्नत मांगी थी जिन लोगों की मन्नत पूरी हो गई वह गांव के रास्ते पर लेट जाते हैं फिर उनके ऊपर से गायों को गुजारा जाता है।
भीड़ावद गांव के सुरेश सिसोदिया बताते हैं कि परंपरा वर्षों से चली आ रही है गांव के लोग भेरू पढ़ते हैं, मन्नत मांगते हैं और मंदिरों में रहते हैं। आज तक किसी प्रकार की कोई हानि नहीं हुई है। गांव के महेश अग्रवाल बताते हैं कि जब गाय हमारे ऊपर से गुजरती है तो हमें फूल सा महसूस होता है। हम 5 दिन पहले से ही मंदिरों में रहते हैं, गाय का दूध पीते हैं और कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे आगे भी चलाते रहेंगे।
रिपोर्ट, विजेन्द्र यादव, उज्जैन
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