कूनो में अब करिये चीतों का दीदार, चीता सफारी के लिए प्लान तैयार; रोमांच होगा मजेदार
उन्होंने कहा कि चीता सफारी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार भी सृजित होंगे। तैयारियां चल रही हैं। 150-180 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
अगर आपको वन्य जीवों में दिलचस्पी है और आप देश में चीतों का दीदार करना चाहते हैं तो आपका यह इंतजार जल्द खत्म हो सकता है। जी हां, अब कूनो नेशनल पार्क में चीता सफारी को लेकर प्लानिंग की जा रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कूनो नेशनल पार्क के नजदीक सेसियापुरा इलाके में चीता सफारी को लेकर योजना बनाई जा रही है। चीता सफारी के अलावा बिग कैट्स में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को यहां उनके बारे में खास जानकारियां भी दी जाएंगी। न्यूज एजेंसी 'ANI' से बातचीत में प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव ने कहा कि प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है। उन्होंने कहा कि चीता सफारी से पर्यटकों को फायदा मिलेगा और इससे रोजगार के साधन भी पनपेंगे। यहां आपको याद दिला दें कि पिछले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया से आए चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। पर्यावरण मंत्रालय ने प्रोजेक्ट चीता को लेकर सैसापुरा में कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किये हैं।
एसपी यादव ने कहा, 'हम चीता सफारी शुरू करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा एक बेहतरीन लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर खोलने की भी योजना है। इसके अलावा स्किल अपग्रेडेशन सेंटर खोलने की भी योजना है और इस दिशा में कार्य भी किये जा रहे हैं।' उन्होंने कहा कि चीता सफारी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार भी सृजित होंगे। तैयारियां चल रही हैं। 150-180 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
इसके अधार पर मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीता सफारी बिग कैट्स को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का बेहतरीन जरिया होगा और पर्यटक गाड़ी में बैठ कर इन चीतों को देख सकेंगे। अधिकारी ने बताया कि चीतों के लिए म्यूजियम का निर्माण नहीं किया जाएगा। लाइब्रेरी में चीतों से जुड़ी किताबें होंगी। भारत में चीतों की जनसंख्या बढ़ाने के उद्देश्य से कूनो नेशनल पार्क में चीतों को लाया गया था। चीतों के आने से देश के इकोसिस्टम में सुधार होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों के विलुप्त होने से भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब हुई थी और उसे ठीक करने के लिए चीतों का यहां आना जरूरी था।
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