Lok sabha Result 2019: कांग्रेस को जनाधार बढ़ाना होगा
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए नए सिरे से अपना जनाधार खड़ा करने की कवायद में जुटना होगा। क्षेत्रीय दलों की नाराजगी का भय छोड़ कर प्रदेश में अति पिछड़ी जातियों, दलित, मुस्लिम समेत दूसरी...
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए नए सिरे से अपना जनाधार खड़ा करने की कवायद में जुटना होगा। क्षेत्रीय दलों की नाराजगी का भय छोड़ कर प्रदेश में अति पिछड़ी जातियों, दलित, मुस्लिम समेत दूसरी जातियों का नेतृत्व विकसित करना होगा।
प्रदेश में करीब तीन दशक से कांग्रेस हाशिए पर है। पार्टी का जनाधार लगातार घटता जा रहा है। संगठन की स्थिति बेहद खराब है। पार्टी प्रतिद्वंद्वी दलों की तरह जनाधार बढ़ाने की कवायद भी नहीं करती दिखती। मसलन भाजपा की प्रचंड जीत में अति पिछड़ी और दलित जातियों का खासा योगदान है। भाजपा लगातार इस वर्ग को जोड़ने की कोशिश करती रही। 2014 और 2017 के बाद मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा की यह कोशिश सफल रही। इसके उलट कांग्रेस में लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद तक पिछड़ी जाति विभाग के गठन का काम अधूरा ही रहा। सिर्फ बैठकें ही होती रहीं।
पार्टी के नेता स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस में जनाधार बढ़ाने की कवायद युद्धस्तर पर कभी नहीं चलती। मंडल-कमंडल के बाद राजनीति का स्वरूप और तौर तरीका बदला परन्तु कांग्रेस ने वक्त की जरूरत के मुताबिक बदलाव नहीं किया। नतीजा सामने है कि पार्टी का अपना बेस वोट बैंक नहीं बचा। मौजूदा लोकसभा चुनाव में गठबंधन दल के एक नेता जिलों में जब कांग्रेस के पक्ष में अपने वोट बैंक के बीच प्रचार करने पहुंचे तो स्थानीय स्तर पर उन्होंने कांग्रेस नेताओं से कहा कि मेरे समाज का कम-ज्यादा वोट तो मिल जाएगा लेकिन मेरे समाज का यह वोट कांग्रेस में प्लस होने का फायदा कैसे मिलेगा क्योंकि कांग्रेस का तो कोई वोट ही नहीं है।
तीन दशक में छिन्न-भिन्न हुआ कांग्रेस का वोट बैंक
प्रदेश में करीब तीन दशक पहले कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक था। सभी धर्म-जातियों का समर्थन था लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभार के साथ यह वोट बैंक छिन्न-भिन्न हो गया। कांग्रेस ने इसको रोकने की जमीनी स्तर पर कोई खास कोशिश भी नहीं की बल्कि पार्टी क्षेत्रीय दलों से गठबंधन की आस में समय काटने लगी। क्षेत्रीय दलों को खुश रखने की हर तरह की कोशिश में पार्टी का नुकसान ज्यादा और फायदा कम हुआ। पार्टी नेता बताते हैं कि गठबन्धन के पैरोकार ज्यादातर बड़े नेता होते हैं जो अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन की पैरवी करते है जबकि पार्टी का बड़ा वर्ग हमेशा इसका विरोध करता है। इसका उदाहरण राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की चुनाव से पहले लखनऊ में हुई बैठकों में भी खुल कर सामने आया था जब कार्यकर्ताओं ने उनसे गठबंधन न करने की मांग की थी।
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