श्राद्ध में जरूर करें महादेव के इस मंदिर के दर्शन, पितृदोष से मिलती है मुक्ति; माता सती से है जुड़ी है पौराणिक कथा
Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। आज हम आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जहां के दर्शन मात्र से ही पितृदोष दूर हो जाता है। यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। आप भी इस मंदिर के दर्शन करने जा सकते हैं।
पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस पवित्र पक्ष में पितर धरती पर आते हैं और श्रद्धा भाव के साथ श्राद्ध एवं तर्पण किए जाने पर, संतुष्ट होकर, ढेर सारा आशीर्वाद देते हुए अपने लोक को वापस चले जाते हैं। लेकिन कई बार किसी भूल-चूक की वजह से पितृदोष भी हो जाता है, जिसकी वजह से घर में कोई ना कोई परेशानी बनी ही रहती है। पितृदोष को दूर करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। भारत में कई ऐसे धार्मिक स्थल है जहां पर पितृ दोष को दूर करने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। इन्हीं धार्मिक स्थलों में एक है दक्षेश्वर महादेव मंदिर। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही पितृ दोष का साया दूर होता है। आईए जानते हैं इस मंदिर के बारे में जानते हैं।
उत्तराखंड में स्थिति है दक्षेश्वर महादेव मंदिर
शिवजी का पवित्र मंदिर 'दक्षेश्वर महादेव मंदिर', उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार के कनखल में स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर का नामकरण माता सती के पिता के नाम पर किया गया था। धार्मिक रूप से यह मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में आकर शिवजी के दर्शन करने से मन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और यदि किसी व्यक्ति के घर में पितृ दोष का साया है, तो यहां दर्शन करने मात्र से ही दोष का निवारण हो जाता है।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के पिता, दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवी-देवताओं, ऋषियों, और संतो को आमंत्रित किया था। इसके बाद यज्ञ की कथा में दक्ष ने शिव जी का काफी अपमान भी किया। इससे दुखी और क्रोधित होकर माता सती ने यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपनी जान दे दी। इस बात पर महादेव को बहुत ही गुस्सा आया और उन्होंने अपनी जटाओं से वीरभद्र को पैदा किया और उन्हें दक्ष का सिर काटकर यज्ञ को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देवी देवताओं ने शिव जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया लेकिन शिवजी का क्रोध शांत नहीं हुआ। महादेव के आदेश का पालन करते हुए वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति के सिर को धड़ से अलग कर दिया। फिर दक्ष ने अपने कटे हुए सिर के साथ शिवजी से माफी मांगी, तब जाकर शिवजी का क्रोध शांत हुआ। उन्होंने दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें जीवन दान दिया।
इसके बाद राजा दक्ष के आग्रह पर ही शिव जी ने उस स्थान को आशीर्वाद दिया कि वहां पर दक्षेश्वर महादेव के नाम से गंगाजल चढ़ाकर पूजा- अर्चना करने वाले व्यक्ति के मन की सभी मुरादे पूरी होगी। आगे चलकर इसी स्थान पर दक्षेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण हुआ। दुनिया के हर शिव मंदिर में शिव जी की प्रतिमा के साथ शिवलिंग की पूजा की जाती है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर शिवजी के साथ दक्ष प्रजापति के कटे हुए सिर की पूजा होती है।
(Image Credit: Kartikeysharmaks_Instagram)
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