नहीं पता चलते विटामिन डी के लक्षण, देर होने से पहले इन बातों का ध्यान दें
खेलने-कूदने की उम्र में बड़ी संख्या में हमारे बच्चे विटामिन-डी की कमी से जूझ रहे हैं। इस कमी का उनकी शारीरिक व मानसिक सेहत दोनों पर असर पड़ता है। कैसे इस पोषक तत्व की कमी से बचाएं, बता रही हैं शमीम खान
बचपन में हम घंटों घर के बाहर खेलते हुए गुजारते थे। पर, आज के बच्चों के लिए स्थिति ऐसी नहीं है। गैजेट्स की बढ़ती लत, फ्लैट कल्चर का बढ़ता चलन और एयर कंडीशनर के बढ़ते इस्तेमाल के कारण वे घर के भीतर कैद से हो गए हैं। इस सबका ना सिर्फ उनकी शारीरिक व मानसिक विकास पर असर पर असर पड़ा है, बल्कि यह बदलाव सीधे तौर पर उनके शरीर में एक जरूरी पोषक तत्व विटामिन-डी की कमी को भी बढ़ावा दे रहा है। अक्तूबर, 2022 में नेचर नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 करोड़, 19 लाख बच्चों में विटामिन-डी की कमी पाई गई है। 2 से14 साल के बच्चों में इसकी कमी के अधिक मामले सामने आए हैं। बच्चों में विटामिन-डी की कमी के बारे में पता लगाने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस कमी का कोई स्पष्ट लक्षण नजर नहीं आता। इसके दीर्घकालिक प्रभावों को देखते हुए माता-पिता को थोड़ा-सा भी संदेह होने पर भी तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। बच्चों में विटामिन-डी की कमी के कारण होने वाली परेशानियों को देखते हुए उन्हें घर से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करना बहुत जरूरी है।
क्या है विटामिन-डी की भूमिका?
विटामिन-डी हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। यह कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और रक्तचाप को भी नियंत्रित रखता है। विटामिन-डी के पांच रूप होते हैं: डी1, डी2, डी3, डी4, डी5। मानव शरीर के लिए विटामिन डी2 और डी3 सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, इन्हें संयुक्त रूप से कैल्सिफेरॉल कहा जाता है। विटामिन-डी2 (एर्गोकैल्सिफेरॉल) खाद्य पदार्थों में पाया जाता है और विटामिन- डी 3 (कोलेकैल्सिफेरॉल), हमारे शरीर में सूरज की किरणों के द्वारा बनता है। अगर हम डी 2 को खाद्य पदार्थों से प्राप्त कर लेंगे, तब सूरज की किरणों का थोड़ा-सा भी एक्सपोजर शरीर को डी 3 के निर्माण में सहायता कर सकता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसंधानकर्ताओं ने 2016 में एक अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार, हमारी त्वचा हमारी आवश्यकता का 90 प्रतिशत विटामिन-डी सूरज की किरणों से निर्मित कर सकती है।
विटामिन-डी की भूमिका
विटामिन-डी बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये हड्डियों और दांतों के विकास और सभी अंगों की सामान्य कार्यप्रणाली के लिए बहुत जरूरी है। विटामिन-डी की अत्यधिक कमी के कारण बच्चों और नवजात शिशुओं में रिकेट्स हो सकता है। इसमें हड्डियां मुलायम, कमजोर और विकृत हो जाती हैं। बढ़ते बच्चों में विटामिन-डी की कमी पैराथायरॉइड, टेस्टोस्टेरॉन और प्रोजेस्ट्रॉन जैसे हार्मोन के असंतुलन का खतरा बढ़ा देती है। लंबे समय तक विटामिन-डी की कमी कंकाल तंत्र की विकृति का कारण बन सकती है। इसकी कमी से छोटी उम्र में ही ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा भी बढ़ जाता है, जिसमें हड्डियां कमजोर और आसानी से टूटने वाली हो जाती हैं। विटामिन-डी की कमी के कारण बच्चों का मानसिक विकास भी सामान्य रूप से नहीं हो पाता है।
ये हैं कमी के लक्षण
बच्चों में विटामिन-डी की कमी के सबसे प्रमुख लक्षणों में से एक है रिकेट्स, जिसे मुड़ी हुई या विकृत टांगों के रूप में भी जाना जाता है। इसके शिकार बच्चों के लिए भागना या चलना मुश्किल हो सकता है। उन्हें शरीर में अत्यधिक कमजोरी महसूस हो सकती है। विटामिन-डी की कमी के अन्य लक्षण निम्न हैं:
• मांसपेशियों की कमजोरी या उनमें ऐंठन होना • विकास धीमा होना • इम्यूनिटी कमजोर होना • हड्डियों में दर्द • हड्डियों का मुलायम हो जाना (ऑस्टियोमलेशिया) • मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होना • अवसाद और मूड स्विंग्स
इनसे बढ़ता है खतरा
• सूरज की रोशनी में कम वक्त बिताना
• आउटडोर खेल कम खेलना
• संतुलित भोजन की कमी
• समयपूर्व जन्म
• फॉर्मूला मिल्क का सेवन
• मोटे बच्चों में भी विटामिन डी की कमी हो जाती है क्योंकि वसा कोशिकाएं शरीर को विटामिन-डी का इस्तेमाल करने से रोकती हैं
विटामिन-डी नहीं होगा कम
• बच्चे को रोज कम से कम 30 मिनिट धूप सेंकने दें
• उन्हें 1-2 घंटे घर से बाहर खेलने दें
• बच्चों को गैजेट्स से दूर रखें
• उनकी डाइट में विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे मछली, लिवर ऑइल, अंडे, दूध, मक्खन, पनीर, मशरूम, पालक, भिंडी आदि को शामिल करें
• तैलीय और मसालेदार भोजन से उन्हें दूर रखें।
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