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आपका प्यार कहीं बन न जाए बच्चे की तरक्की में फंदा, समय रहते उठाएं सही कदम

  • बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए माता-पिता का साथ सबसे जरूरी है। पर, जब यह सुरक्षा का यह घेरा अति में तब्दील हो जाए, तो यह कई तरह से नुकसानदेह साबित हो जाता है। कैसे बच्चे की परवरिश में इस मामले में संतुलित रवैया अपनाएं, बता रही हैं स्मिता

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 24 Jan 2025 04:00 PM
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आपका प्यार कहीं बन न जाए बच्चे की तरक्की में फंदा, समय रहते उठाएं सही कदम

इन दिनों ऐसी खबरों की भरमार है, जिनमें बड़े-बड़े संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे जीवन के छोटे-मोटे संघर्ष के आगे हार जाते हैं। वे व्यवहारिक ज्ञान के अभाव में अपने जीवन और रिश्ते में सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। व्यक्तित्व विकास के लिए माता-पिता का सुरक्षात्मक घेरा तो जरूरी है, लेकिन एक सीमा तक ही, ताकि व्यक्ति को बचपन में खुद की गलतियों से सीखने का अवसर भी मिल सके। मनस्थली की संस्थापक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर बताती हैं, ‘माता-पिता का अति सुरक्षात्मक घेरा या ओवर प्रोटेक्टिव परवरिश के लिए प्रचलित शब्द है, हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग। ऐसे माता-पिता यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके बच्चे शारीरिक या भावनात्मक रूप से कभी आहत न हो पाएं। इसके लिए वे बच्चों के लिए जरूरत से पहले ही खुद सारी सुविधा उन्हें मुहैया करा देते हैं। वे हमेशा अपनी निगरानी में बच्चों को रखते हैं। किसी भी तरह का निर्णय लेने या कोई नया काम करने का उन पर प्रतिबंध लगाते हैं। जब ये बच्चे बड़े होते हैं और उन्हें दुनिया का सामना करना पड़ता है, तो उनमें हर तरह की स्किल का जबरदस्त अभाव होता है। इस परवरिश का बच्चे पर क्या नकरात्मक असर होता है, आइए जानें:

आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में कमी

डॉ. ज्योति कपूर बताती हैं, ‘माता-पिता के अति-सुरक्षात्मक घेरे से बच्चों में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में जबरदस्त कमी आ जाती है। दुनिया का सामना करने के लिए हर व्यक्ति अपने हुनर का इस्तेमाल करता है। अति-सुरक्षात्मक घेरा यह हुनर विकसित नहीं होने देता है।’ इसके कारण व्यक्ति में लचीलेपन और आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।

उग्र व्यवहार और अवसाद के शिकार

ऐसे बच्चे बड़े होने पर बहुत अधिक भावुक हो जाते हैं। उनसे यदि कोई काम नहीं हो पाता है, तो उन्हें अवसाद होने लगता है। वे या तो उग्र व्यवहार करने लगते हैं या फिर उदासीन हो जाते हैं।

असुरक्षा का भाव

इस तरह के बच्चों में ना सुनने की आदत विकसित नहीं हो पाती है। इससे उन्हें बहुत अधिक असुरक्षा का भाव होता है। वे ऐसा चाहते हैं कि दूसरे लोग हमेशा उन्हें पसंद करें।

हमेशा दबाव में रहना

अत्यधिक सुरक्षात्मक माता-पिता के बच्चे अपने पूरे जीवन में दबाव में रहते हैं। बड़े होने पर वे डरपोक, निर्णय लेने में असमर्थ व्यक्ति बन जाते हैं।

कैसे सुधारें अपना तरीका

पहले कदम से लेकर पहला स्कूल डांस तक, आपका बच्चा जीवन में ढेर सारी नई चीजें आजमाएगा। आपको उन्हें कुछ नया और रोमांचक करने के इन पहले अवसरों से डराना नहीं चाहिए। सुरक्षा का ख्याल रखना जरूरी है, लेकिन अपने मन से डर को निकाल दें और बच्चे को नई-नई चीजें और अनुभव आजमाने दें।

उनसे रोजमर्रा के काम की अपेक्षा करना जरूरी है। अपने बच्चे के साथ कुछ उचित नियम और सीमाएं निर्धारित जरूर करें। तभी वे बड़े होने पर चुनौतियों का सामना कर पाएंगे। जब बच्चे स्कूल से घर आने के रास्ते में समस्याओं का सामना करते हैं, तो वे उनसे निपटना भी सीखते हैं। यदि आप हर छोटी समस्या पर भी उनकी मदद करेंगी तो उसका मुकाबला करना नहीं सीख पाएंगे।

हर बच्चे में कुछ खास होता है। अपने बच्चे के उस खास स्किल को पहचानें और उसे निखारने में मदद करें।

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