कहीं आपके बच्चे में तो नहीं आ गई असुरक्षा की भावना, रखें इन बातों का ध्यान
- माता-पिता बच्चों के लिए जो सबसे ज्यादा जरूरी काम कर सकते हैं, वह है उन्हें सुरक्षित महसूस कराना। सुरक्षा का भाव बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के साथ उन्हें जिंदगी जीने का सही तरीका सिखाने में मददगार होता है। कैसे अपने बच्चे को दें सुरक्षित बचपन, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी
आपका बच्चा क्या अचानक से शांत हो गया है? क्या आप उसके मूर्ड ंस्वग्स से परेशान हैं और कारण समझ नहीं पा रहीं? या अपने बच्चे के व्यवहार में आप बदलाव महसूस कर रही हैं? इन सभी सवालों के जवाब अगर हां हैं तो यकीनन इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। मुमकिन है कि आपका लाडला सामान्य से हटकर कुछ महसूस कर रहा हो। ऐसे में यह जरूरी है कि आप उसे और उसकी जरूरत को समझें। हो सकता है कि आपका बच्चा भावनात्मक असुरक्षा के भाव से दो-चार हो रहा हो। ऐसे में आपको समझना और जानना होगा कि बच्चे की विभिन्न आवश्यकताओं में से एक है, सुरक्षा और विश्वास की भावना। इसकी पाठशाला आप अपने घर पर ही शुरू कर सकती हैं, जिसके घेरे में रहकर बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है। माता-पिता और उसके शिक्षकों का व्यवहार, स्नेह, मार्गदर्शन बच्चे को न सिर्फ सुरक्षित महसूस कराता है बल्कि उसके नजरिये और सोच को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है। लिहाजा, जरूरी है कि आप छुटपन से ही अपने बच्चे को सुरक्षा की भावना का अहसास करवाएं।
क्यों जरूरी है यह भाव?
सवाल उठता है कि भला क्यों बच्चों को सुरक्षा की भावना की जरूरत होती है? जानकार बताते हैं कि सुरक्षा की भावना न मिलने पर बच्चों पर ढेरों नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। उनमें व्यवहारिक खामियां आती हैं, जैसे वह क्रोधी हो सकते हैं या फिर एकदम शांत। मुमकिन है कि ऐसे बच्चे को अपनी भावनाओं को समझने, उन्हें व्यक्त करने और लोगों से जुड़ने में परेशानी का अनुभव हो। इसकी वजह से बच्चे में मूर्ड ंस्वग की समस्या भी हो सकती है यानी सुरक्षा के भाव का सीधा असर बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ता है।
बच्चों को समझना है जरूरी
हर बच्चा अलग होता है। उसकी जरूरतें और प्रतिक्रिया देने के तरीके अलग हो सकते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि आप अपने बच्चे के बर्ताव पर नजर रखें। उसके व्यवहार में आने वाले छोटे-छोटे बदलावों पर ध्यान दें । इस बाबत मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं र्कि ंचता, तनाव या थकान के लक्षणों को भांपना आसान नहीं होता। कई बार उसे हम आम व्यवहार समझकर नजरअंदाज कर जाते हैं। ऐसे में माता-पिता के लिए जरूरी हो जाता है कि वह अपने लाडले के व्यवहार को समझें और जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ से परामर्श लें।
एक-सी रखें दिनचर्या
एक निर्धारित दिनचर्या पूर्वानुमान देती है। यह तरीका आपके बच्चे को सुरक्षित महसूस करने में मददगार साबित हो सकता है। खाना, सोना, खेलना सरीखे कामों के लिए एक दिनचर्या बनाइए। जिससे बच्चे को मालूम होगा कि आगे क्या होने वाला है। यह बच्चे में स्थिरता व विश्वास को बढ़ाने में मददगार होगा।
सिखाएं स्वीकारना
बच्चा शांत दिखे तो उससे बात करें। घुमाकर उससे बातें करने से बेहतर होगा कि आप सीधे, खुलकर और आसान शब्दों में उससे बात करें। ऐसा करने से आप दोनों के रिश्ते में भी मजबूती आएगी। बच्चे की जिज्ञासाओं पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया देने की जगह उसके सवालों के जवाब देने का प्रयास करें। उनके बेबाक सवालों पर असहज होने की जगह उनकी उम्र के हिसाब से सवालों का जवाब देने की कोशिश कीजिए। उन्हें सहज रखिए। आपका यह बर्ताव बच्चे को अपनी परेशानियों को आप से साझा करने के लिए प्रेरित करेगा।
बनें रोल मॉडल
बच्चे गीली मिट्टी से होते हैं। वह आपको देखकर सीखते हैं। आप अपने बच्चों को कुछ ऐसा नहीं सिखा सकतीं, जो आप नहीं करतीं। माता-पिता के तौर पर यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने लाडले के लिए एक अच्छा रोल मॉडल बनें, उन्हें यह सिखाएं कि अपनी भावनाओं को कैसे संभालना है। उन्हें स्वस्थ तरीके से अपने गुस्से और हताशा को नियंत्रित करना सिखाएं। बकौल स्मिता, आप उन्हें अपने या अपनों के उदाहरण देकर भी भावनाओं पर नियंत्रण करना सिखा सकती हैं। यदि आप अपने बच्चे की नकारात्मक भावनाओं या अभिव्यक्ति से उत्तेजित हो जाती हैं, तो बेहतर होगा कि खुद को शांत करके ही उसे संभालें।
बनाएं सशक्त
बच्चे में सुरक्षा की भावना को बढ़ाने के लिए उसे शारीरिक, मानसिक, समाजिक हर तरीके से सशक्त बनाने के जिम्मेदारी आपकी है। उन्हें मजबूत बनाइए ताकि वह खुद की हिफाजत खुद से कर सकें। उन्हें समय-समय पर बातों-बातों में आत्मरक्षा के गुर सिखाइए। उन्हें अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में भी खुलकर बताएं। उन्हें खुद खेलने, दोस्त चुनने आदि की आजादी दीजिए। विषम परिस्थितियों से उन्हें अपने तरीके से निपटने दीजिए। उन्हें भरोसा दिलाइए कि आप उनके साथ हैं।
निर्धारित कीजिए अपनी सीमाएं
हर बच्चा माता-पिता के लिए हमेशा बच्चा ही रहता है। पर, उसे बच्चा समझने की गलती मत कीजिए और अपनी सीमाओं को जांचती रहिए। उसकी सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। आपको समझना होगा कि बच्चों को जरूरत से ज्यादा सुरक्षा देना उनकी तनाव प्रबंधन की क्षमता को कम करने का काम करेगा। साथ ही उनकी आप पर निर्भरता को बढ़ा देगा। उन्हें चुनौतियों का सामना करने दें। उन्हें अपने अनुभवों से सीखने का मौका जरूर दें। जरूरत पड़ने पर आप सलाहकार की भूमिका में रह सकती है।
गलतियों से सीखने दें
वो कहते हैं न असफलता, सफलता की सीढ़ी होती है। तो, अपने बच्चे को भी वह सीढ़ी चढ़ने का मौका जरूर दीजिए। उन्हें गलतियां करने और उनसे सीखने की आजादी दीजिए। पर, हां उन्हें इस बात का अहसास कराती रहिए कि आप उनकी मदद के लिए हमेशा मौजूद हैं और आपको उन पर भरोसा है। परर्, ंजदगी की जंग के लिए उन्हें खुद से तैयार होना होगा।
रिश्तों को दें महत्व
परिवार से हमें प्यार, अपनापन, जुड़ाव, सुरक्षा मिलती है। परिवार की वजह से हम अकेला महसूस नहीं करते। रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए एक साथ समय बिताइए। त्योहारों को एकजुट होकर मनाइए। अपने बच्चों को दूसरों की रुचियों में दिलचस्पी लेना सिखाइए। एक-दूसरे को प्राथमिकता देना भी सिखाना होगा।
साथी के साथ अपना रिश्ता बनाएं सुखद
माता-पिता का आपसी रिश्ता बच्चों पर गहरा प्रभाव डालता है। लिहाजा, बच्चे की नजरों में माता-पिता के रिश्ते का अच्छा होना और भी जरूरी हो जाता है। कई बार गुस्से में बच्चों के सामने बहस हो जाती है और कुछ देर बाद अहसास होता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। ऐसे में आपको अहसज होने की जरूरत नहीं है। यह भी उनके लिए एक सबक साबित हो सकता है। उन्हें यह भी समझना होगा कि संघर्ष भी एक सामान्य मानवीय भावना है। संघर्ष से बचने के बजाय, उन्हें दिखाएं कि संघर्ष को सम्मानपूर्वक कैसे खत्म किया जाए। उन्हें अपनी भावना सामने रखने का महत्व सिखाएं और हर समय खुश रहने के मिथक को दूर करें। साथी के साथ अपने झगड़े के बाद असहज होने या उसे छिपाने के बजाए बच्चे को संघर्ष के बाद बातचीत, माफी मांगना, माफ करना सरीखी बातों को सीखने दीजिए। अगर कभी बच्चों के सामने ऐसी स्थिति आ भी जाए तो बेहतर होगा कि बच्चों को यह दिखाइए कि कैसे आप मन-मुटाव को सुलझाती हैं।
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