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न करें बच्चों की हर फरमाइश पूरी, ऐसे करें जिद्दी बच्चों को डील

  • बाल मन चंचल होता है, जो हर वक्त कुछ नया मांगता रहता है। कम मिले तो वह लालसा में रहता है और ज्यादा मिले तो जिद और क्रोध से भर सकता है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी होती है कि बच्चों की मांग और उसकी पूर्ति के बीच सटीक तालमेल बैठाकर रखा जाए। कैसे साधें यह संतुलन, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 7 March 2025 04:43 PM
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न करें बच्चों की हर फरमाइश पूरी, ऐसे करें जिद्दी बच्चों को डील

बच्चे की मांग पूरी न कर पाने पर दिल दुखता है। पर, आपका दिल तब और ज्यादा दुखेगा, जब आपका लाडला बात-बात पर अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए जिद करने लग जाए। अब आप सोच रही होंगी कि भला यह क्या बात हुई? क्या बच्चे की कोई भी मांग पूरी ही न करें? ऐसा बिल्कुल नहीं है। बच्चे की मांग को सुनना, उसे खुश रखना यकीनन माता-पिता की ही जिम्मेदारी और दायित्व होता है। पर, यहां इस बात पर गौर करना होगा कि यह भी माता-पिता की ही जिम्मेदारी है बनती है कि बच्चे की मांग और उसकी त्वरित पूर्ति उसे जिद्दी और क्रोधी न बना दे। लिहाजा, बच्चों की मांग और उनको पूरा करने के बीच सटीक तालमेल बिठाना बेहद जरूरी है। इसके लिए आपको बदलते जमाने और जरूरतों को समझना होगा। कल से आज की तुलना करने से बचना होगा। आज की जरूरतों को समझते हुए बच्चे की मांग की उपयोगिता, उसकी सार्थकता को समझते हुए उसे पूरा करना है या नहीं इस बात का निर्णय लेना होगा। बच्चे की मांग के विकल्पों पर भी गौर करना होगा ताकि न तो आपका लाडला वंचित रहे और न ही जिद्दी होने पाए।

करें बड़ी खुशियों में निवेश

बच्चे को खुश करने की कोशिश मत कीजिए। जी, सही पढ़ा आपने। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि बच्चों की छोटी-बड़ी हर मांग को झट से पूरा करके आप उन्हें फौरी खुशी तो दे देती है, पर उसके परिणाम घातक हो सकते हैं। जानकारों की मानें तो अभिभावकों के ऐसा करने से बच्चों की मांगों में इजाफा होता है और वह जिद्दी बनते हैं। बेहतर होगा कि आप अपनी आदत में सुधार करें और बच्चे की जरूरत को पूरा करें मांग को नहीं। यानी अभी की खुशी के बजाय बच्चे को आगे की खुशी मुहैया करवाएं।

बाजार को न होने दें हावी

बाजार हमारे दिलो-दिमाग पर हावी है। हम विज्ञापनों से प्रभावित होकर अकसर अपने बच्चों के लिए गैजेट्स या डिजिटल गेम घर ले आते हैं कि इनसे हम अपने बच्चों को बेहतर सिखा पाएंगे। पर, ऐसा हो जरूरी नहीं है। तमाम गैजेट्स की तुलना में दादा-दादी की कहानियां, परंपरागत खेल से बच्चे ज्यादा सीखते हैं। अध्ययन बताते हैं कि बच्चों के लिए परंपरागत खेल ज्यादा बेहतर हैं। महंगे खिलौने बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता बढ़ाने में मदद नहीं करते बल्कि बच्चों का इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से अधिक जुड़ाव उनके बोलने और भाषा के विकास में बाधा बन सकता है। यह बच्चों में मोटापे का कारण भी बन सकता है। बच्चों को आउटडोर गेम्स से जरूर जोड़ें।

करें बच्चे से बात

बातचीत से हर समस्या का समाधान निकलता है। बच्चे की मांग और उसकी पूर्ति के प्रश्न में भी आपसी बातचीत निर्णायक साबित हो सकती है। बच्चे से पूछिए कि भला उसे वह चीज क्यों चाहिए, जिसकी वह मांग कर रहा है? कहीं उसकी मांग सिर्फ दिखावा करने के लिए तो नहीं? बच्चे को समझने की कोशिश कीजिए कहीं उसकी मांग सिर्फ इसलिए तो नहीं कि आप उसको वक्त नहीं दे पा रहीं और वह उस खालीपन को भरने के लिए मांग कर रहा हो। बच्चे के साथ वक्त गुजारना शुरू कीजिए। आप और वह दोनों ही एक-दूसरे को समझ पाएंगे।

हर मांग न करें पूरी

जो आपके साथ हुआ वो बच्चे को न सहना पड़े। अकसर अभिभावक यही सोच रखते हैं। शायद आप भी कुछ ऐसा ही सोचती होंगी। अगर हां, तो हो सकता है कि यह आपके बच्चे की आदत बिगाड़ रहा हो। इस बाबत कंसल्टेंट साइकैट्रिस्ट डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि बच्चे की जरूरतों को पूरा करते वक्त आपके जेहन में होना चाहिए कि उनकी इच्छा की पूिर्त उतनी ही हो, जितना उनके लिए जरूरी है। मांग की पूर्ति की सीमा का निर्धारित होना जरूरी है। ऐसा करना अभी से शुरू कर दीजिए ताकि वो चीजों की अहमियत को समझ सकें।

खोजें विकल्प

कुछ भी नया खरीदने से पहले उसके विकल्पों के बारे में भी जानकारी जरूर कर लें। बच्चे से पूछें और जानें कि क्या वह चीज किराये पर या उधार मिल सकती है? क्या उस चीज को या उस जैसी चीज को घर पर जुगाड़ से बनाया जा सकता है?

करें खुद से सवाल

बच्चा है, तो वह जिद नहीं करेगा तो क्या हम आप करेंगे? उसकी जिद से हारने या उसे मानने के पहले खुद से कुछ सवाल पूछ लीजिए कि जिद में मांगी गई चीज वह कितनी प्रयोग में लाएगा? वह उसकी उपयोगिता है या विलासिता? आप उसके लिए जितना धन खर्च कर रही हैं वह उचित है या नहीं? अगर आपको अपने सवालों के जवाब अपने मनमाफिक मिलते हैं, तब आप अपने लाडले की मांग को द्धआप बेशक पूरा करें।

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