बिना कुछ छिपाए हर बात आपसे साझा करेगा बच्चा, अपनाएं ये ट्रिक्स
- अपने बच्चे को बेहतर तरीके से समझना चाहती हैं? मुश्किल बातचीत के लिए सुरक्षित और भरोसे से भरा माहौल बनाना चाहती हैं? इसके लिए बच्चे से भावनात्मक जुड़ाव विकसित करना जरूरी है। कैसे भावनाओं के स्तर पर अपने बच्चे से जुड़ें, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी
आपका बच्चा या आप एक-दूसरे को नहीं समझ पा रहीं? गुजरते वक्त के साथ आपको अहसास हो रहा है कि बच्चा आप से दूर हो रहा है? अगर हां, तो अभी भी वक्त है। देर न हो, उसके पहले आपको अपने लाडले की ओर कुछ कदम बढ़ाने होंगे। आपको बच्चे के साथ अपना भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाना होगा, जिसके लिए आपको अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। बच्चे को सुनना और समझना होगा। एक बेहतर माहौल बनाना होगा, जिसमें भरोसा हो और हिचक की कोई जगह न हो। इसके लिए आपको आपसी संवाद से लेकर व्यवहार तक में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे ताकि आप और आपका बच्चा एक बेहतर जुड़ाव और लगाव महसूस कर सकें। आप जो उसे सिखाना चाहती हैं,वह उसे सीख सके।
व्यक्तित्व के हिसाब से करें संवाद
हर बच्चा अलग होता है। तो अलग-अलग स्वभाव, उम्र के बच्चों के साथ एक-सा व्यवहार कैसे ठीक होगा? आपका पड़ोसी अपने बच्चे के साथ जैसा बर्ताव करता है, वह आपके बच्चे पर भी सटीक बैठे जरूरी नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने लाडले के स्वभाव को समझें। वह शांत है या चंचल। वह बार-बार कहने पर सुनता है या फिर एक बार में ही बात समझ जाता है। उसे बात तजुर्बे के बाद समझ आती है या वह चीजों को जल्दी भांप लेता है। एक बार आप बच्चे के स्वभाव के हिसाब से उससे संवाद करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने लगीं तो यकीन मानिए आप आसानी से उससे जुड़ पाएंगी।
सुनना आएगा काम
सुनना, वह भी बिना किसी प्रतिक्रिया दिए। यह तरीका भी बच्चों के साथ एक कनेक्ट बनाने में आपके लिए फायदेमंद रहेगा। इसमें आपको बच्चों के सिर्फ शब्दों को नहीं सुनना है बल्कि उसके पीछे के भावों को भी महसूस करना है। उसके बाद ही प्रतिक्रिया देनी है। जैसे अगर वह कहता है कि छुट्टी के वक्त उसके साथ कोई नहीं खेलता। तो आप उसके भाव को समझें कि वह अकेला महसूस कर रहा था और उसको जाहिर भी करें। आपका ऐसा करना उसको अहसास कराएगा कि आप उसकी बात समझ रही हैं। साथ ही यह तरीका आपके बच्चे को अपने तर्जुबे से खुद के मनोभावों को पहचाने की समझ भी देगा।
किस्से लाएंगे जुड़ाव
हम अनुभवों से सीखते हैं। तो बच्चों को भी वैसा ही करने दें। उनके आसपास के अनुभवों से उनमें न सिर्फ भावनात्मक समझ आएगी बल्कि वह अपने विचारों को ज्यादा प्रभावी ढंग से रख पाएगा। इसके लिए आप रोज उनकी दिनचर्या में कहानी सुनने और सुनाने को समय को जगह दे सकती हैं। आप उससे पूछ सकती हैं कि पूरे दिन का सबसे अच्छा हिस्सा क्या था और क्यों? इससे बच्चे चीजों पर गौर करना और साथ ही स्पष्ट तरीके से खुद को व्यक्त करना सीखेंगे।
बोलने दें मन की बात
बच्चा बोला नहीं कि आपने उसकी बात काट दी। भला ऐसे कैसे आप अपने लाडले के साथ कनेक्ट कर पाएंगी। मुमकिन है कि उसे आपकी सलाह की आवश्यकता हो, पर उसे अपनी बात कहने दीजिए। उसे उस विषय को पूरी तरह से समझने और अपने विचार साझा करने दीजिए। इससे बच्चे को इस बात का भरोसा होगा कि वह खुलकर आपसे बात कर सकता है। तुरंत प्रतिक्रिया देने से बेहतर होगा कि सही मौके और तरीके से बच्चे को गाइड करें। अपना तरीका ऐसा रखें कि बच्चे को किसी भी तरह का दबाव या नियंत्रण महसूस न होने पाए।
मुश्किल बातों को बनाएं आसान
बच्चे और उनके सावल खत्म नहीं होते। कई बार अनजाने में वह कुछ ऐसा पूछ जाते हैं, जिनका जवाब या उसको समझाने का तरीका आपको नहीं सूझता। या फिर कई बार बच्चे माता-पिता की प्रतिक्रिया के डर से सवाल पूछने से डरते हैं। तब आप क्या करती हैं? जवाब न देकर उसे टाल देती हैं या फिर गुस्सा करती हैं। अगर आप ऐसा करती हैं तो यह तय कि आप अपने लाडले से कभी भी भावनात्मक स्तर पर जुड़ नहीं पाएंगी। ऐसे में बच्चा दूसरे तरीकों से जानकारी जुटाने का काम करने लग जाएगा। डांट के डर से वह चीजों कोछिपाने लग जाएगा, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस बाबत मनोचिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं कि कुछ भी गलत नहीं होता। गलत होता है, तो आपका रिएक्शन। किसी भी बात के लिए जजमेंटल न हों। बच्चे की जिज्ञासा का सामान्य व्यवहार के साथ समाधान करें। उससे उस मुद्दे पर चर्चा करें और सटीक जानकारी दें। वह असहज दिखे तो उससे सवाल करें और बिना किसी पूर्वाग्रह के उसका जवाब दें। साथ ही बच्चे को हमेशा सटीक जानकारी दें। आपके द्वारा दी गई अधूरी या फिर गलत जानकारी आप पर उसके विश्वास को कम कर जाती है और वह भविष्य में सही जानकारी के लिए और रास्ते चुनता है, जो उसको भ्रामक जानकारी भी दे सकते हैं। हां, चाहे तो उसकी उम्र के हिसाब से तथ्य ज्यादा या कम कर सकती हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
बच्चों से सिर्फ वही वादे करें,जो आप पूरा कर सकती हैं। ऐसा न करना उसके भरोसे को कमजोर कर देगा। बच्चे की आलोचना या टिप्पणी उसके व्यवहार पर करें, उसके व्यक्तिव पर नहीं।
तारीफ करते वक्त उस व्यवहार का जिक्र करें जो आपको पसंद आया हो।
ऐसी भाषा का प्रयोग करें जो आपके बच्चे के लिए स्पष्ट और उसकी उम्र के हिसाब से सटीक हो।
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