क्या लगातार पार्टनर से झगड़ा करते हैं? तो संभल जाएं, बच्चों पर होता है ये निगेटिव असर
किसी भी जोड़े के बीच कभी-कभार होने वाली तकरार आम बात है। पर, अगर पति-पत्नी अकसर ही लड़ते-झगड़ते रहते हैं, तो इसका बच्चों की जिंदगी और कोमल मन पर गहरा असर पड़ता है, बता रही हैं मोनिका शर्मा
आप पति-पत्नी भी क्या बात-बात में लड़ते-झगड़ते रहते हैं? सलीके से बात करना क्या आप भूल चुके? कहीं आपका बच्चा भी काफी समय से शांत तो नहीं रहने लगा है या फिर उसे कुछ ज्यादा ही गुस्सा तो नहीं आने लगा है? अगर इन सभी सवालों का जवाब हां है तो यह आपके लिए अलार्म से कम नहीं है। जरूरत है कि समय रहते आप दोनों अपने स्वभाव में जरूरी बदलाव लाएं वरना आप दोनों की लड़ाई का गलत असर बच्चे पर पड़ने लगेगा।
मुमकिन है कि जब घर में दो लोग हैं तो उनकी राय और सोच-विचार भी अलग होंगे। लेकिन अपनी अलग राय और सोच-विचार को बरकरार रखते हुए भी एक-दूसरे का साथ अच्छे से निभाया जा सकता है। रिलेशनशिप एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट डॉ. अनु गोयल का कहना है, ‘पति-पत्नी दोनों अलग-अलग पृष्ठभूमियों से होते हैं तो ऐसे में दोनों के बीच विचारों का मतभेद होना स्वाभाविक भी है। लेकिन असल बात यह है कि जब वे दोनों लड़ें तो वे दोनों सहमति या असहमति के साथ किसी नतीजे पर जरूर पहुंचें। माता-पिता इस बात का भी खास ख्याल रखें कि ये बहस या लड़ाई हर दिन न हो। साथ ही बच्चों के सामने हम वैसा ही व्यवहार करें, जैसा कि हम आगे चलकर अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं।’
कई बार छोटे बच्चे अपनी मीठी बोली में कई गलत शब्द भी बोल देते हैं, जिन्हें हम उस समय हंस कर टाल देते हैं। लेकिन यह बात टालने लायक नहीं, बल्कि गौर करने लायक है। माना जाता है कि बच्चा सबसे पहले अपने घर से सीखता है। ऐसे में अगर बच्चे के सामने दिन-रात लड़ते हुए माता-पिता हों तो निश्चित तौर पर बच्चा भी यही सब सीखेगा। बहस और लड़ाइयां तनाव की वजह से होते हैं। लेकिन ऐसे में बच्चों के सामने एक-दूसरे पर चीखना बच्चों के लिए भी सही नहीं है। आजकल बच्चे तर्क-विर्तक भी करने लगे हैं। अगर आप चाहती हैं कि आपके बच्चे का स्वस्थ सामाजिक और मानसिक विकास हो तो उसके सामने सही तरीके से अपना पक्ष या बात रखें न कि दूसरे पर अपनी बात मनवाने के लिए दबाव बनाएं। कभी भी अपनी बातों का पक्ष लेने के लिए बच्चे को ‘मैं सही हूं या गलत’ नहीं पूछना चाहिए। इससे बच्चे के मस्तिष्क पर काफी दबाव बना रहता है। माता-पिता में से किसी एक का पक्ष लेने और दूसरे को गलत ठहराने के कारण उसके दिल में ग्लानि भी पैदा हो सकती है। इसीलिए बच्चे को आपसी लड़ाई से दूर रखने की कोशिश करें, न कि खुद उसके दिल से दूर हो जाएं। बच्चों पर अभिभावक की लड़ाई का क्या असर पड़ता है, आइए जानें:
कम आयु के बच्चों या शिशुओं पर
छोटे बच्चे जहां माता-पिता की बातों को नहीं समझ सकते, वहीं वे आपकी भावनाओं को बखूबी समझते हैं। जिन परिवारों में माता-पिता अकसर आपस में लड़ते रहते हैं, वहां बच्चे पहले रोकर फिर शांत हो जाते हैं। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि अब मम्मी-पापा अलग हो जाएंगे और हमारे साथ नहीं रहेंगे। साथ ही वे काफी असुरक्षित भी महसूस करने लगते हैं। कई बार बच्चों के खेलने-कूदने व उछल-कूद में भी आपको कमी देखने को मिलेगी। साथ ही वे स्कूल या अन्य जगहों पर भी जाना नहीं चाहते।
बड़ी आयु के बच्चों पर
बड़ी आयु के बच्चों से अकसर माता-पिता लड़ाई में उनका पक्ष लेने की अपेक्षा रखते हैं। ऐसी कई बार वे ग्लानि से भर आते हैं और इस लड़ाई के लिए खुद को जिम्मेवार समझते हैं। कभी-कभी इसके उलट स्थिति भी देखने को मिलती है, जिसमें बच्चा किसी एक का पक्ष लेकर बाद में उनसे अपनी कई बातें मनवा लेता है। जिन बच्चों के अभिभावक हमेशा आपस में लड़ते रहते हैं, वे खुलकर किसी के सामने नहीं आते, अंदर ही अंदर अपने गुस्से को पालते रहते हैं और अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते हैं।
कैसे करें इस स्थिति का सामना?
आज हर व्यक्ति की अपनी जगह और पहचान है, लेकिन माता-पिता को अपने अहम को दरकिनार करते हुए, बच्चों पर ध्यान देना चाहिए।
आप लड़ें, लेकिन अपनी लड़ाई का नतीजा सहमति या असहमति में जरूर निकालें।
बच्चों को अपनी लड़ाई का हिस्सा न बनाएं।
अगर पति-पत्नी किसी बात पर सहमत नहीं हैं तो बच्चे के सामने ही एक-दूसरे की बेइज्जती न करें। ’अपशब्द या नकारात्मक प्रभाव छोड़ने वाली भाषा का प्रयोग न करें। ’एक-दूसरे के साथ चीख-चिल्लाकर बात न करें।
सबसे अहम आप खुद एक-दूसरे का ध्यान रखेंगी तो बच्चे का ध्यान आप दोनों मिलकर रख ही लेंगे।
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