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गर्भनिरोधक गोलियां क्या वाकई हैं नुकसानदेह? अर्ली मेनोपॉज के पीछे डॉक्टरों ने बताई ये वजह

हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन

Manju Mamgain हिन्दुस्तानFri, 7 March 2025 01:14 PM
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गर्भनिरोधक गोलियां क्या वाकई हैं नुकसानदेह? अर्ली मेनोपॉज के पीछे डॉक्टरों ने बताई ये वजह

एक हालिया अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में गर्भनिरोधक गोलियों की बिक्री में कमी आ रही है। टेक्सास क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी में हुए शोध में शामिल महिलाओं ने माना कि पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया में लगातार गर्भनिरोधक दवाइयों के साइड इफेक्ट से संबंधित खबरें पढ़ने के बाद उन्होंने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया। इस अध्ययन में शामिल महिलाओं में साराह ई हिल भी थीं, जिन्होंने कहा कि बारह साल पिल्स लेने के बाद जब मैंने गर्भनिरोध के दूसरे तरीके अपनाए तो मुझे लगा जैसे मुझे अपने आपसे आजादी मिल गई है। कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स को लेकर सबसे अधिक आलोचना इस बात की होती है कि इससे मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचता है, मूड स्विंग का खतरा रहता है और महिलाओं के प्रजनन पर प्रभाव पड़ सकता है। इस अध्ययन में शामिल डॉक्टर ओल्गा पीटर का कहना है, ‘1960 में अमेरिका में जब कॉन्ट्रेसेप्टिव गोलियां बाजार में आईं, देखते-देखते युवतियों में बेहद लोकप्रिय हो गईं। एक साल में इसके दो करोड़ से अधिक ग्राहक बन गए। स्त्रियां इसे अपनी यौन आजादी से जोड़कर देखने लगीं। इस दवाई के कुछ साइड इफेक्ट थे, पर आने वाले सालों में इन्हें दूर भी कर लिया गया।’ उनका मानना है कि सोशल मीडिया पर इन पिल्स के विरुद्ध लिखे जाने की वजह से इनकी खपत में लगातार कमी आ रही है। इस अध्ययन में शामिल 52 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें अनचाहे गर्भ से आजादी से ज्यादा अपनी मानसिक सेहत प्यारी है।

मेनोपॉज अब पैंतीस से पहले

दस साल से कम उम्र की बच्चियों को पीरियड शुरू हो जाना अब आम बात है। डॉक्टर जीवनशैली, खानपान और तनाव को इसकी वजह बता रहे हैं। उसी तरह अब मेनोपॉज की उम्र भी घट कर तीस से पैंतीस हो रही है। वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में हाल में हुए एक शोध के अनुसार लगभग पचास प्रतिशत महिलाओं को अर्ली मेनोपॉज हो रहा है। इस शोध में 4500 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। तीस साल से चालीस साल के बीच की इन महिलाओं में से 56 प्रतिशत महिलाओं को या तो मेनोपॉज हो चुका था या होने के कगार पर था। इस शोध में शामिल डॉक्टर जैनिफर पायने कहती हैं, ‘हॉट फ्लेश की दिक्कत पहले महिलाओं को पैंतालीस साल के आसपास शुरू होती थी। हमारे शोध में शामिल 62 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें यह दिक्कत शुरू हो चुकी है। ’ शोध में पाया गया कि तनाव, प्रोसेस्ड खानपान और मोटापा इसकी प्रमुख वजहें हैं।

पीएम का सोशल मीडिया आज संभालेंगी महिलाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि महिला दिवस के दिन उनका सोशल मीडिया अकाउंट देश की कुछ सफल महिलाओं के हाथ में होगा। ये अपनी तरह से देश की तमाम महिलाओं को इस दिन की शुभकामना देने का उनका मंतव्य है। दरअसल प्रधानमंत्री मानते हैं कि महिलाएं जिस तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और इसके जरिये आशावादी सोच और मंच खड़ा कर रही हैं, वो इस समय की जरूरत है। तो यह देखना दिलचस्प होगा कि हमारी प्रतिनिधि महिलाएं इस खास दिन देश को प्रधानमंत्री के जरिये क्या कहना चाहेंगी?

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