बच्चों को इन 4 चीजों में जरूर दें आजादी, तभी बन पाएंगे एक सफल और कॉन्फिडेंट इंसान
बच्चे आगे चलकर एक कॉन्फिडेंट और सफल इंसान बनें इसके लिए उनकी परवरिश में बैलेंस बनाना बहुत जरूरी है। यानी थोड़ी सी सख्ती के साथ-साथ उन्हें कुछ चीजों में खुलकर आजादी देना भी जरूरी है।

बच्चों की परवरिश करना बिल्कुल भी आसान काम नहीं। खुद पैरेंट्स भी अपनी इस पेरेंटिंग जर्नी से काफी कुछ नया सीखते हैं और बच्चों की लाइफ पर तो इसका गहरा असर होता ही है। दरअसल आगे चलकर बच्चे की पर्सनेलिटी कैसी होगी, ये काफी हद तक उसकी परवरिश पर ही निर्भर करता है। जहां ज्यादा स्ट्रिक्ट माहौल में बड़े हुए बच्चे अक्सर डरपोक, डब्बू और मेंटली वीक होते हैं तो वहीं कुछ ज्यादा ही छूट देने पर बच्चे बिगड़ैल और जिद्दी स्वभाव के भी बन जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सही बैलेंस ले कर चला जाए ताकि बच्चा एक कॉन्फिडेंट और मेंटली स्ट्रांग इंसान बने। इसके लिए आपको थोड़ी सख्ती के साथ-साथ उसे कुछ मामलों में पूरी आजादी देना जरूरी है। आइए जानते हैं जीवन के वो कौन से क्षेत्र हैं जिनमें बच्चों को आजादी देना बेहतर है।
खुलकर कहने दें उसे अपने मन की बात
बच्चों का स्वाभाव काफी जिज्ञासु होता है। वो हर एक चीज के बारे में जानना चाहते हैं और अपने आसपास की चीजों को ले कर उनके मन में तरह-तरह की बातें भी आती हैं। अपनी इन बातों को वो अक्सर पैरेंट्स के साथ शेयर करने की कोशिश करते हैं। इस दौरान कई पैरेंट्स बच्चों को डांटकर चुप कर देते हैं या उनकी बात सुनने में कोई भी इंटरेस्ट नहीं दिखाते। बच्चे के बड़े होने पर भी पैरेंट्स का ये रवैया कायम रहता है और वो उसे अपनी बात रखने ही नहीं देते। इससे बच्चों का कॉन्फिडेंस भी कम होता है और वो दूसरों के सामने खुद को ठीक से जाहिर भी नहीं कर पाते।
बच्चों को दूसरों से घुलने-मिलने की दें आजादी
कई पैरेंट्स अपने बच्चों के लिए कुछ ओवर प्रोटेक्टिव होते हैं। ऐसे में वो उन्हें किसी से भी ज्यादा घुलने-मिलने नहीं देते। घर पर कोई मेहमान या रिश्तेदार आए हों, तो बच्चे को रूम में भगा दिया जाता है। वो वहीं उसे आसपास के बच्चों या लोगों से बातचीत करने की भी आजादी नहीं होती। इसके चलते बच्चा लोगों से घुलना मिलना भी नहीं सीख पाता और उसमें लोगों से बातचीत करने का लहजा और कॉन्फिडेंस भी डेवलप नहीं हो पाता। इसलिए बच्चे को लोगों से बातचीत करने के प्रेरित करें और उन्हें ज्यादा से ज्यादा सोशल एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट कराएं।
लेने दें खुद से जुड़े कुछ डिसीजन
बचपन से ही बच्चों को अपने कुछ डिसीजन लेने के लिए प्रेरित करें। बच्चा छोटा है तो उसे अपने स्कूल से जुड़े कुछ फैसले लेने दें। जैसे- स्कूल में किन एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करना है, ये बच्चे को अपने इंटरेस्ट के मुताबिक डिसाइड करने दें। आप उन्हें मोटिवेट कर सकते हैं या अपनी सलाह दे सकते हैं लेकिन उनपर अपना डिसीजन थोपने से बचें। इसके अलावा बच्चे पर करियर से जुड़े अपने फैसले बिल्कुल भी ना थोपें। उनके साथ बैठें और उनकी बात सुनें-समझें और तब उसके बाद कोई फैसला लें।
गलती करने की होगी आजादी तभी कुछ नया सीखेंगे बच्चे
बच्चों को गलती करने की भी थोड़ी बहुत आजादी तो मिलनी ही चाहिए। अब इसका मतलब यह कतई नहीं है कि बच्चा कोई काम बिगाड़ रहा है तो उसे बिगाड़ने दें। इसका सीधा मतलब है कि अगर बच्चा कोई काम पहली बार कर रहा है तो उसे खुद करने दें। इस दौरान वो कुछ गलतियां कर सकता है लेकिन जबतक वो गलतियां नहीं करेगा तब तक कुछ नया सीख भी नहीं पाएगा। इसके साथ ही जब बच्चा कोई काम खुद करेगा तो उसके अंदर एक अलग लेवल का कॉन्फिडेंस निकल कर आएगा।
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