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आस पास घिरे हैं निगेटिव लोग? जानें अपनी सोच और जिंदगी को कैसे सकारात्मक बनाने का तरीका

  • दुनिया में हर तरह की सोच वाले लोग हैं। नकारात्मक लोगों से घिरे होने के बावजूद अपनी सोच और जिंदगी को कैसे सकारात्मक बनाए रखें, बता रही हैं स्वाति गौड़

Avantika Jain हिन्दुस्तानSat, 16 Nov 2024 08:10 AM
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शनल साइंस फाउंडेशन के मुताबिक दिन भर में हमारे मन में जितने विचार आते हैं, उसमें से 80 प्रतिशत नकारात्मक होते हैं। इतनी नकारात्मकताओं के बीच भी हम अपनी सकरात्मक सोच के बल पर जिंदगी के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर ही लेते हैं। वैसे भी कहते हैं कि अच्छी सोच जीवन में सकारात्मकता को बढ़ाती है, इसलिए हमेशा बेहतर संभावनाओं के बारे में ही सोचना चाहिए। ये भी कहा जाता है कि हमारी सोच पर हमारी संगत का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हमेशा अच्छे और सकारात्मक विचारों वाले लोगों के साथ ही रहना चाहिए। असल में हमारे आस-पास हर विचारधारा के लोग होते हैं। कुछ लोग जीवन के प्रति इतना नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं कि उन्हें दुनिया में सिवाय बुराई और कमियों के कुछ नजर ही नहीं आता है। ऐसे लोग हमेशा नाराज और शिकायत करते रहते हैं। इनके साथ समय बिताने का अर्थ अपनी ऊर्जा व्यर्थ करना होता है। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोग भी होते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ अच्छा तलाश लेते हैं। ऐसे लोग हमेशा आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। हालांकि आपको हमेशा सिर्फ अच्छा सोचने वाले लोग ही मिलें, यह तो संभव नहीं है। पर, दूसरों की नकारात्मकता से आप खुद को जरूर बचा सकती हैं:

सीमाएं तय करना है जरूरी

अकसर महिलाओं के ऊपर परिवार और समाज की अपेक्षाओं का इतना भारी दबाव होता है कि वह चाह कर भी खुद को व्यक्त नहीं कर पाती हैं। कभी परिवार की खुशी तो कभी समाज में मर्यादा बनाए रखने का दबाव उन्हें वह सब बर्दाश्त करने को भी मजबूर कर देता है, जो वह नहीं करना चाहती हैं। इससे ना केवल उनकी मानसिक शांति भंग होती है बल्कि जीवन के प्रति उत्साह भी खत्म होने लगता है। इसलिए अपनी सीमाएं निर्धारित करना बहुत जरूरी है। यदि कोई दोस्त या रिश्तेदार हमेशा उलाहना देने वाली या दुख भरी बातें ही करता है, तो उनसे मिलना-जुलना सीमित ही रखें। याद रखिए, हम किसी से बेहतर और ऊर्जावान महसूस करने के लिए मिलते हैं। लेकिन सामने वाला व्यक्ति यदि हर समय ही नकारात्मक बातें करे, तो उससे किनारा कर लेने में ही भलाई है।

बनें संवेदनशील

अपनी मानसिक शांति बनाए रखने का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आप दूसरों की समस्याओं को लेकर असंवेदनशील बन जाएं। कभी-कभी सामने वाला वास्तव में बहुत कठिन हालातों से गुजर रहा होता है और किसी सहारे की तलाश में होता है। इसलिए संवेदनशील बनिए, ताकि संकट में पड़े किसी व्यक्ति से असभ्य व्यवहार करने के बजाय आप उसकी परेशानी को समझ सकें। आपका सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार आपकी मानसिक शांति बरकरार रखते हुए सामने वाले के लिए भी सहारे का काम करेगा।

संजोएं अपनी ऊर्जा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए समाज से अलग-थलग होकर रहना मुमकिन नहीं है। परिवार से लेकर जानकारों तक में कोई ना कोई ऐसा जरूर होता है, जिससे आपके विचार नहीं मिलते हैं। यदि आपका भी कोई ऐसा जानकार है जो हमेशा नकारात्मक बातें करता है, लेकिन आप उससे संबंध खत्म नहीं कर सकतीं, तो भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोगों से पूरी तरह नाता तोड़ने की बजाय मिलना कम कर दें। नकारात्मक लोग आपकी ऊर्जा को अपने विचारों से हानि पहुंचा सकते हैं। ऐसे लोगों से मिलने के बाद बेहद थका हुआ और निस्तेज महसूस होता है। इससे बचने के लिए जहां तक संभव हो सिर्फ किसी पारिवारिक या सामाजिक समारोह में ही ऐसे लोगों से मिलें।

सुनने की आदत डालें

एक अच्छा श्रोता संवेदनशील होते हुए भी अपनी मानसिक शांति बनाए रख सकता है। जब भी किसी से बात करें तो बिना बीच में बोले पूरी तसल्ली से सामने वाले की बात सुनें। लेकिन ऐसा करते समय स्वयं भी सचेत रहें क्योंकि आपको सामने वाले व्यक्ति की बात तो सुननी है, लेकिन उसके प्रभाव में नहीं आना है। बातचीत के दौरान अचानक अपनी प्रतिक्रिया देना सामने वाले को और ज्यादा परेशान कर सकता है। जबकि सिर हिलाना, आंखों में देखकर बात करना और सकारात्मक शब्दों का इस्तेमाल सामने वाले व्यक्ति को विश्वास दिलाता है कि आप उसकी परेशानी समझ रही हैं। याद रखिए, आपके व्यवहार में ठहराव ही आपकी मानसिक शांति को बनाए रखने की चाबी है।

कोई शौक अपनाएं

तनाव से दूर रहने और मानसिक सुकून के लिए कुछ ऐसा करें, जिससे आपको खुशी मिले। बागवानी करना, सैर पर जाना, अपनी पसंद का संगीत सुनना, डांस करना डायरी लिखना या कोई किताब पढ़ने जैसा आप कुछ भी ऐसा कर सकती हैं, जिससे आपको खुशी का अनुभव हो। अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्राणायाम करना एक ऐसा प्रभावशाली तरीका है जो विपरीत परिस्थितियों में भी आपके मन को शांत रखेगा।

(वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ अमिता पुरी से बातचीत पर आधारित)

आजमाएं ये भी

बिना पूरी बात जानें किसी के प्रति अपनी राय ना बनाएं।

यदि बात बहस में बदल रही हो तो अपना ध्यान किसी और काम में लगाने का प्रयास करें।

दूसरों की आलोचना करने से बचें।

पीठ पीछे किसी की चुगली ना तो सुनें और ना ही उसका हिस्सा बनें।

बात को तूल देने के बजाय उसके समाधान के बारे में विचार करें।

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