दूसरों के मुताबिक जिंदगी जीने में हो सकती है परेशानी, एक्सपर्ट से जानें अपनी शर्तों पर कैसे जिएं

  • दूसरों के मुताबिक अपनी जिंदगी जीने से गुस्सा व परेशानी के अलावा आपको कुछ और नहीं मिलेगा। जिंदगी आपकी है, इसे अपनी शर्तों पर जिएं। क्यों? बता रही हैं स्वाति गौड़

Avantika Jain लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 27 July 2024 12:26 PM
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स्वभाव से बेहद दयालु और शांत मीरा हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती हैं। चाहे घर हो या ऑफिस, वह कभी किसी के काम को मना नहीं करती है, लेकिन अपनी इस आदत की वजह से अकसर उसे परेशानी भी उठानी पड़ जाती है। दरअसल, उसका संकोची स्वभाव ही उसे उलझन में डाल देता है। लोगों का ध्यान इस तरफ जाता ही नहीं कि वह भी एक इंसान है और उसकी भी भावनाएं हैं। नतीजतन, मीरा ज्यादातर समय काम और अपेक्षाओं के बोझ के तले ही दबी रहती है। क्या आपको भी ऐसा लगता है कि आपको ना कहने में संकोच का अनुभव होता है और आप किसी को भी नाराज नहीं करना चाहती हैं? पर, आपके अच्छे और दयालु स्वभाव की वजह से लोग फायदा उठा रहे हैं? दूसरों के प्रति प्रेम और दोस्ताना व्यवहार रखना अच्छी बात है, लेकिन जब आपकी अच्छाई ही परेशानी का सबब बनने लगे तो सावधान हो जाना चाहिए।

सीमाएं तय करना सीखें

बहुत से लोगों की आदत सबको खुश रखने की होती है। इसलिए वह सबकी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। हालांकि ऐसा करने में कोई भी बुराई नहीं है,लेकिन जब यह आदत उनकी मानसिक शांति भंग करने लगती है तो दिक्क्त हो जाती है। पर अपनी सहमति जताने की आदत आपके महत्व को कम करने लगती है। इससे आप अपने विचार खुल कर व्यक्त कर ही नहीं पाते और सामने वाला स्वत: ही उसे आपकी रजामंदी समझने लगता है। लेकिन ऐसा ना हो, इसके लिए अपनी सीमाएं निर्धारित करना जरूर सीखें। तय करें कि किन बातों को लेकर आप सहज हैं और यदि किसी मुद्दे पर सहमति ना बने तो शालीनता और स्पष्टता से अपनी बात कहने की आदत डालें। ऐसा करने से लोग आपको और आपके विचारों को गंभीरता से लेना शुरू कर देंगे।

स्वयं को दें महत्व

कोई व्यक्ति हमारे साथ किस तरह का व्यवहार करता है, यह हम जाने-अनजाने हम ही तय करते हैं। दूसरों की खुशियों और जरूरतों का ध्यान रखना अच्छी बात है, लेकिन हमेशा ही ऐसा करना आपके महत्व को कम करने लगता है। याद रखिए, यदि आप खुद को गंभीरता से नहीं लेंगी तो सामने वाला भी आपको अहमियत नहीं देगा। इसलिए खुद को किसी से कमतर कभी मत समझिए और अपने लिए अलग से समय निकलाना शुरू कीजिए। सीधी सी बात है कि एक हरा-भरा पेड़ ही दूसरों को छाया दे सकता है, इसलिए अपने मन की जरूर सुनें और थोड़ा समय अपने शौक पूरे करने के लिए भी निकालें।

मैं ही हूं का भाव

अकसर हम मान लेते हैं कि हमारे बिना कोई काम पूरा हो ही नहीं सकता या हमारे अलावा कोई अन्य फलां काम को ढंग से पूरा नहीं कर सकता है। लेकिन यह सिवाय एक भ्रम के कुछ नहीं है क्योंकि सच यही है कि कभी किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता है। हर काम की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेना असल में इस बात का सूचक है कि आप दूसरों की नजरों में अपने प्रति सम्मान देखने के इच्छुक हैं। लेकिन अपनी मानसिक शांति के लिए ऐसा भाव रखना ठीक नहीं है। जो लोग वास्तव में आपको प्रेम करते हैं, उनकी नजरों में अपनी अहमियत बनाए रखने के प्रयास करने की जरूरत पड़ती ही नहीं है। अच्छे बने रहने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आपकी अच्छाई कमजोरी ना लगने लगे, वरना लोग सिर्फ विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेंगे।

(मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हेमंत शर्मा से बातचीत पर आधारित)

अच्छा है ना कहना भी

बचपन से ही हमें दूसरों का सम्मान करना और बड़ों की बात मानना सिखाया जाता है। लेकिन जब आप बिना कुछ सोचे-समझे हर बात के लिए ही हां बोलने लगती हैं तो खुद के लिए समस्या को आमंत्रण देती हैं। मान लीजिए, आपने एक नए दफ्तर में काम करना शुरू किया है और सबसे मैत्रीपूर्ण व्यवहार स्थापित करना चाहती हैं। बेशक यह एक अच्छी बात है, लेकिन अपनी अच्छी छवि बनाने के प्रयास में यदि आप बॉस और अपने सहयोगियों के हर काम का जिम्मा अपने कंधों पर ढोना शुरू कर देंगी तो नाहक दबाव और तनाव में आ जाएंगी। आपकी हर काम को हां बोलने की आदत को लोग आपकी कमजोरी समझने लगेंगे। पहले अपने हिस्से का काम पूरा करें और फिर यदि समय बचे तो मदद का हाथ बढ़ाएं। लेकिन आपात स्थितियों में दूसरों की मदद से कभी पीछे ना हटें, फिर चाहे थोड़ी तकलीफ भी उठानी पड़े तो मुस्कुराते हुए उसे स्वीकार कर लें।

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