घर की थाली में कितना है पोषण? जानें आप कहां कर रहे हैं गलती
- क्या पेट भरना और भरपूर पोषण लेना एक बात है? नहीं। लेकिन घर के खाने के मामले में हम मान लेते हैं कि पेट भरकर खाने से सेहत बन ही जाएगी। पर, विशेषज्ञों की राय इससे इतर है। सेहतमंद भोजन के लिए क्या-क्या जरूरी है, बता रही हैं स्वाति शर्मा
घर के बड़े-बूढ़ों को आपने अकसर यह कहते सुना होगा कि घर का खाना खाओ, घर के भोजन से बीमारी नहीं होती है। और तो और अगर आप डाइटीशियन या डॉक्टर के पास जाएं तो वे भी घर के भोजन पर ही जोर देते हैं। और यह सही भी है। घर का भोजन ही सबसे बेहतर होता है। इसमें मां के प्यार के साथ आपकी सेहत का ख्याल रखने की कोशिश भी की जाती है। भोजन को तैयार करते समय साफ-सफाई, गुणवत्ता हर चीज का ख्याल रखा जाता है ताकि स्वाद मिलने के साथ सेहत से भी समझौता न हो। माना कि घर की थाली में प्रोसेस्ड फूड नहीं होता, प्रिजर्वेटिव्स नहीं होते, खराब तेल नहीं होता, लेकिन क्या कभी गौर किया है कि उन लोगों को भी पाचन संबंधी समस्याएं होने लगती है, जो केवल घर का ही खाना खाते हैं। इतनी सावधानी के बाद भी ऐसी समस्या क्यों? न्यूट्रीशनिस्ट मोनिका वासुदेव कहती हैं कि भोजन घर का पका होना जरूरी है, लेकिन हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि वह सेहतमंद भी हो। दोनों अलग बातें हैं। बहुत सारे घरों में आज भी सेहतमंद भोजन नहीं बनता, वहां केवल स्वाद का ख्याल रखा जाता है। ऐसे में डायबिटीज, हाइपरटेंशन, मोटापा और पेट की अन्य समस्याएं सामने आने लगती हैं। जरूरी है कि थाली में फाइबर, विटामिन, प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों का संतुलन हो और लोगों को आहार का सही तरीका भी पता हो, तभी आपका घर का भोजन सेहतमंद होगा।
बाहरी भोजन की दखलंदाजी
कई बार कुछ खास तरह की रेसेपी तैयार करने में हम बाहरी भोजन का सहारा लेने लगते हैं। जैसे बाहर का बना अदरक-लहसुन पेस्ट, क्रीम, प्यूरी वगैरह। हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि इस तरह के बाहरी भोजन में प्रिजर्वेटिव्स का इस्तेमाल होता है। इसलिए इनसे बचने की जरूरत है। इस तरह की चीजें घर पर आसानी से तैयार की जा सकती हैं, इसलिए बाहर से इन्हें लेने से बचें। इसी तरह बाहर का अचार, दही वगैरह भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनके अलावा कई बार हम बाहर से फ्रोजन फूड लाकर उन्हें अपनी रेसेपी का हिस्सा बना लेते हैं। फ्रोजन फूड यूं ही सेहत के लिए खराब माने जाते हैं, उन्हें घर की रेसेपी में शामिल करके हम उन्हें गुणकारी नहीं बना सकेंगे, बल्कि इससे हमारी घर की थाली की गुणवत्ता से समझौता होने लगेगा।
भोजन के तरीके में गड़बड़ी
क्या भोजन का काम केवल पेट भरना है? नहीं, यह हमारे शरीर के सुचारू संचालन के लिए भी जिम्मेदार होता है। और इसी कारण भोजन का तरीका भी पूरी तरह वैज्ञानिक है। यही कारण है कि फूड साइंस एक पूरा अलग विषय है। आपको भोजन के सही तरीके के लिए फूड साइंस नहीं पढ़ना पड़ेगा। बस, कुछ सामान्य बातें हैं जिनको अपनाकर आप भोजन से पोषण प्राप्त कर सकती हैं। मोनिका कहती हैं कि भोजन और पानी साथ नहीं होना चाहिए। दोनों के बीच कुछ समय का अंतराल रखना जरूरी है। साथ ही भोजन करने से पहले उसे पाचन के लिए तैयार करना भी जरूरी है। इसके लिए सलाद की एक प्लेट का सेवन भोजन से आधा घंटा पहले ही कर लें। हम अकसर भोजन के साथ दूध या फल लेते हैं, ऐसा करना भी पूरी तरह गलत है। दूध को अकेले ही पीना चाहिए। वहीं फल या जल्दी पचने वाली चीजों को देर से पचने वाली चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए। इस कारण किसी भी चीज का पोषण शरीर को नहीं पहुंचता और खाना सड़ने लगता है। आहार का तरीका हमेशा पिरामिड आकार में होना चाहिए। जिसमें सुबह के नाश्ते की मात्रा सबसे ज्यादा और रात के खाने की मात्रा सबसे कम होनी जरूरी है। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि कौन-सा पोषक तत्व कब लेना है, जैसे प्रोटीन रात में नहीं लिया जाता और दो तरह के कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन एक साथ नहीं लेने चाहिए।
विपरीत आहार का सेवन
आयुर्वेद में कुछ आहार को साथ खाने में प्रतिबंध लगाया गया है। इन्हें विपरीत आहार कहते हैं। संभव है कि दो अलग आहार पोषण से भरे हों और सेहत के लिए बेहद लाभकारी हों। लेकिन अगर इनका सेवन एक साथ किया जाए तो इनके परिणाम विपरीत मिल सकते हैं और आपको कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। दूध के साथ दही, नमक, मूली, इमली, खरबूज, बेल, नरियल, नीबू, अनार, गुड़, सत्तू, मछली वगैरह का सेवन मना है। दही के साथ खीर, पनीर, खीरा, करेला, भिंडी, खरबूज लेना मना है। खीर के साथ कटहल, खटाई, सत्तू लेना मना है। शहद के साथ घी, गर्म पानी, तेल, अंगूर, मूली खाना मना है। इस तरह ऐसे कई मेल हैं, जिनका सेवन आपको खतरे में डाल सकता है। साथ ही मौसम, स्थान, शारीरिक अवस्था, दोषों के आधार पर भी कुछ आहार को विपरीत आहार माना गया है।
स्वाद-स्वाद में
कई लोगों का मनना है कि घर पर ही बाहर जैसा भोजन बना लिया जाए, तो स्वाद की संतुष्टि भी हो जाएगी और भोजन से नुकसान भी नहीं होगा। ऐसा मानना एक हद तक तो सही है, लेकिन अगर वाकई बाहर जैसे भोजन को तैयार करने की जुगत लगाई जाए तो आपकी घर की थाली भी सेहत पर भारी पड़ सकती है। घर के भोजन में अगर नमक, मैदा, चीनी या तेल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है तो वह भी उतना ही हानिकारक है, जितना बाहर का भोजन। साथ ही एक ही तेल को बार-बार इस्तेमाल करने से वह ट्रांस फैट में तब्दील हो जाता है और गंभीर समस्याओं को निमंत्रण देने लगता है। इसलिए स्वाद पर नियंत्रण भी जरूरी है। घर की थाली सेहत से भरी होनी ज्यादा जरूरी है। इसके लिए पराठे पर अलग से मक्खन लगाने से बचें, सब्जी में अलग से घी न डालें, रोज तला भोजन खाने से बचें और चीनी और नमक की मात्रा घटाते जाएं। खासतौर पर इन्हें अलग से लेने से तो बचें ही। मैदे से जितना हो सके बचें और अगर कभी स्वाद में ऐसा कुछ बनाया भी है, तो मात्रा में संतुलन रखें। स्वाद-स्वाद में ज्यादा खाने से बचें। इस तरह के भोजन को पचाने के लिए भोजन के आधे घंटे बाद गुनगुना पानी पिएं और ग्रीन टी पीकर डिटॉक्स करने की कोशिश करें।
पकाने के तरीके का प्रभाव
पोषण का कितना नुकसान हुआ है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी खाद्य पदार्थ को कैसे और कितनी देर पकाया गया है। ज्यादा पकाने से पोषण का ज्यादा नुकसान होता है। सबसे बेहतर है, उबला भोजन। इसके बाद भुना भोजन और अगर आप तला भोजन चाहती हैं तो तेल की मात्रा कम रखते हुए स्टर फ्राई को सही माना गया है। डीप फ्राई और देर तक तलना भोजन को हानिकारक बना देता है। इसके अलावा भोजन को पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाला बर्तन भी उसकी गुणवत्ता में योगदान देता है। लोहे, पीतल और मिट्टी का पात्र भोजन को पकाने के लिए सबसे अच्छे माने गए हैं, वहीं एल्युमिनियम और नॉनस्टिक सबसे खराब पात्र माने जाते हैं। भोजन को पकाने के लिए वनस्पति घी और रिफाइन को हानिकारक माना जाता है। तेल को ज्यादा गर्म करने का भी नकारात्मक असर पड़ता है।
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