Fitness Tips: 40 के बाद रहना है मजबूत तो इन एक्सरसाइज को करें रूटीन में शामिल
40 के बाद शरीर में मजबूती और स्ट्रेंथ चाहिए तो इन तीन तरह की एक्सरसाइज को अपने डेली रूटीन में जरूर शामिल कर लें। खासतौर पर महिलाओं के लिए ये एक्सरसाइज बेहद जरूरी हैं।
40 की उम्र पार होने के साथ ही शरीर में ताकत कम महसूस होने लगती है। जिसकी मुख्य वजह हड्डियों की कमजोरी होती है। जिसकी वजह से अक्सर रोजमर्रा के काम करने या फिर भारी सामान उठाने में दिक्कत महसूस होती है। अगर शरीर के बैलेंस और स्टैबिलिटी को बनाए रखना चाहते हैं तो 40 के बाद इन एक्सरसाइज को अपने रूटीन में जरूर शामिल कर लें। जिससे शरीर की स्ट्रेंथ 40 के बाद भी बरकरार रहेगी।
40 के बाद इन एक्सरसाइज से करें स्ट्रेंथ मजबूत
स्क्वाट्स
फिटनेस एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्क्वाट्स करने से कई सारी मसल्स ग्रुप पर एक साथ असर होता है। जिससे शरीर को फंक्शनल स्ट्रेंथ मिलती है और ये फंक्शनल स्ट्रेंथ रोजाना के काम चलने फिरने, सीढ़ी चढ़ने, किसी भी सामान को उठाने के लिए जरूरी होती है। स्क्वाट्स करने से शरीर को बैलेंस करने और स्थिर करने में मदद मिलती है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ अक्सर लोग लड़खड़ाकर गिर जाते हैं। जो हड्डियों के टूटने की वजह बन जाता है और फ्रैक्चर पड़ जाता है।
डेडलिफ्ट
डेडलिफ्ट एक्सरसाइज महिलाओं और पुरुषों दोनों के शरीर की स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है। इस एक्सरसाइज की मदद से बैक पेन, पोश्चर की गड़बड़ी को सही करने में मदद मिलती है। साथ ही ये हाथों की पकड़ को भी मजबूत बनाता है। जो उम्र बढ़ने के साथ ढीली पड़ जाती है। महिलाओं में 40 के बाद बोन डेंसिटी कम होने लगती है। ऐसे में डेड लिफ्ट करने से हड्डियों का घनत्व बढ़ता है और ऑस्टियोपिरोसिस जैसी समस्या नही होती है।
डेड लिफ्ट करने का तरीका
डेड लिफ्ट करने के लिए सबसे कमर से आगे की तरफ झुकें।
कमर को बिल्कुल सीधा करें और फिर जमीन पर रखे भार को उठाएं।
हालांकि इस एक्सरसाइज को बिना किसी फिटनेस एक्सपर्ट की देखरेख के बगैर नहीं करना चाहिए।
पुशअप्स
पुशअप्स अपर बॉडी पार्ट्स की मजबूती के लिए बेस्ट एक्सरसाइज है। इससे चेस्ट, कंधे, कलाईयों के साथ ही कोर को भी मजबूती मिलती है। पुशअप्स को अपने फिटनेस लेवल के हिसाब से किया जा सकता है। जिसमे वाल पुशअप्स बिगिनर्स के लिए सही है तो वहीं जमीन पर पूरे शरीर को उठाते हुए करना हाई फिटनेस लेवल दिखाता है। पुशअप्स करने से कॉर्डियोवस्कुलर फिटनेस को बेहतर करता है। जिससे हार्ट डिसीज का खतरा कम होने लगता है।
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