एक इंच भी जमीन नहीं दी, फिर भी 22 लोगों ने पा ली नौकरी, 29 साल बाद मिली सजा
- रांची के पिपरवार क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के एवज में फर्जी तरीके से सीसीएल में नौकरी देने से जुड़े 29 साल पुराने मामले में शुक्रवार को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा की अदालत ने 22 अभियुक्तों को दोषी करार कर 3-3 साल कैद की सजा सुनाई। आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है…
रांची के पिपरवार क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के एवज में फर्जी तरीके से सीसीएल में नौकरी देने से जुड़े 29 साल पुराने मामले में शुक्रवार को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा की अदालत ने 22 अभियुक्तों को दोषी करार कर 3-3 साल कैद की सजा सुनाई। सजा पाने वाले सभी लोग ऐसे हैं, जिन्होंने एक इंच जमीन दिए बिना अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज जमा कर नौकरी पाई थी।
यह फर्जीवाड़ा साल 1998 में उस समय उजागर हुआ, जब वास्तविक हकदार अधिग्रहित जमीन के कागजात लेकर नौकरी मांगने पहुंचे थे। इसके बाद सीबीआई ने 18 अगस्त 1998 में प्राथमिकी दर्ज की थी। सीबीआई ने पांच साल बाद जांच पूरी करते हुए 3 मई 2003 को चार्जशीट दाखिल की थी। सीबीआई की ओर से लोक अभियोजक खुशबू जायसवाल ने अदालत में पक्ष रखा था।
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सीसीएल मुख्यालय रांची को नौकरी संबंधी प्रस्ताव भेजा गया था। इसके बाद सीसीएल में साल 1995 में पहली बार 14 और दूसरी बार 4 लोगों को जमीन के एवज में नौकरी दी गई। इसके बाद साल 1996 में 10 लोगों को नौकरी दी गई। यानी कुल 28 लोग अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी कागजात पर सीसीएल में नौकरी पाने में सफल हुए थे। जांच के दौरान सीबीआई ने तीन को वादामाफ गवाह बनाया था। एक का केस बंद किया गया था।
सीसीएल के तत्कालीन जीएम, उनके बेटे समेत इन्हें सजा
अदालत ने सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह और उनके बेटे प्रमोद कुमार सिंह समेत मनोज कुमार सिंह, कृष्ण नंद दुबे, मुरारी कुमार दुबे, मनोज पाठक, प्रमोद कुमार, दिनेश रॉय, ललित मोहन सिंह, संजय कुमार, मनदीप राम, बैजनाथ महतो, हेमाली चौधरी, बिनोद कुमार, जयपाल सिंह, बिपिन बिहारी दुबे, बंसीधर दुबे, निरंजन कुमार, अजय प्रसाद, केदार प्रसाद, परमानंद वर्मा और गुरुदयाल प्रसाद के खिलाफ तीन-साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने हरिद्वार सिंह पर 58 हजार और अन्य 21 अभियुक्तों पर 8-8 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। वहीं दो आरोपी एमके सिन्हा एवं दशरथ गोप को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।