झारखंड के आदिवासी वोटर किसका देंगे साथ, पांच सालों में कई दिग्गज JMM से हुए अलग
- झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने तैयारी तेज कर दी है। सभी दल मतदाताओं को साधने में जुटे हैं। झारखंड में आदिवासी समुदाय सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने तैयारी तेज कर दी है। सभी दल मतदाताओं को साधने में जुटे हैं। झारखंड में आदिवासी समुदाय सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि जिस दल के साथ आदिवासी हैं, उसकी जीत की राह आसान हो जाती है। राज्य की 81 में से 43 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासियों की आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है। 43 में से 22 विधानसभा सीटें तो ऐसी हैं, जहां आधी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है।
आदिवासी समाज के लोगों के लिए जल-जंगल-जमीन और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे अहम हैं। इसे देखते हुए भाजपा, कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय पार्टियों ने इन मुद्दों को चुनावी एजेंडे में शामिल किया है। झारखंड में 27.5 प्रतिशत मतदाता हैं। कोल्हान में 14 में 10 सीटों पर आदिवासी निर्णायक स्थिति में हैं।
आदिवासी वोटर किसका देंगे साथ
भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों दलों को आदिवासी समाज का साथ मिल सकता है। भाजपा कई बार आदिवासी समाज के लिए अपनी योजनाओं के माध्यम से उनके विकास की बात करती रही है। इसके अलावा देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी जैसी हस्तियां आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भाजपा आदिवासी समुदाय पर विशेष ध्यान दे रही है और अपनी पकड़ को लगातार मजबूत कर रही है।
झामुमो भी कम नहीं
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी आदिवासी समाज से आते हैं। जब वे जेल गएं तो उनके समर्थकों का आरोप था कि भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को साजिश के तहत फंसाकर जेल भेजा। इस बात को विपक्षी दलों ने भी मुखरता से उठाया था। भावनात्मक तौर पर आदिवासी समाज के लोग हेमंत सोरेन की पार्टी के साथ खड़े हो सकते हैं। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गहरा असर है।
कई दिग्गज JMM से हुए अलग
पिछले पांच सालों में झामुमो के कई कद्दावर नेता हेमंत सोरेन से अलग हो चुके हैं। इस लिस्ट में शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और चंपाई सोरेन शामिल हैं। दूसरी तरफ, आदिवासी समाज के कई बड़े चेहरे भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें कद्दावर नेता बाबूलाल मरांडी का नाम भी शामिल है। यह झामुमो के लिए पूरी तरह अनुकूल स्थिति नहीं है।