Hindi Newsझारखंड न्यूज़President Draupadi Murmu said that he has a deep connection with Jharkhand

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बोलीं, मैं ओडिशा की लेकिन खून झारखंड का; सुनाई दादी की कहानी

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु झारखंड में मिले सम्मान और प्यार से इतनी अभिभूत हुईं कि उन्होंने इस राज्य के साथ अपना नाता भी बता दिया। खूंटी में कहा कि मैं ओडिशा की हूं लेकिन मेरा खून झारखंड का है।

Suraj Thakur अखिलेश सिंह, खूंटीFri, 26 May 2023 08:41 AM
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु झारखंड में मिले सम्मान और प्यार से इतनी अभिभूत हुईं कि उन्होंने इस राज्य के साथ अपना नाता भी बता दिया। उन्होंने गुरुवार को खूंटी में कहा कि मैं ओडिशा की हूं लेकिन मेरा खून झारखंड का है। मेरी दादी जोबा मांझी की ससुराल के गांव की रहनेवाली थी। झारखंड के इस दौरे में राष्ट्रपति की वाणी, व्यवहार और स्मृति में झारखंड के साथ उनके आत्मीय संबंध साफ दिखाई पड़े। खूंटी में जनजातीय समुदाय की महिलाओं और बालिकाओं से खुलकर मिलने के बाद उन्होंने यह कहने में तनिक भी गुरेज नहीं किया कि इन महिलाओं में उन्हें अपनी झलक दिखाई पड़ती है। उनकी यही साफगोई, सरलता और निश्छलता, उनके व्यक्तित्व और पद की गरिमा को असीम ऊंचाई प्रदान करता है। ग्रामीण अंचल की रहनेवाली महिलाएं साधारण वेश-भूषा और रहन-सहन की आदी हैं। छल-कपट से कोसों दूर महिलाएं दिल खोलकर एक-दूसरे से मिलती हैं। खूंटी में जब महामहिम महिलाओं, युवतियों से मिल रहीं थी, ऐसा ही दृश्य दिखाई दे रहा था।

राज्यपाल के रूप में लंबा समय व्यतीत किया
महामहिम ने झारखंड में छह साल से ज्यादा वक्त राज्यपाल के रूप में व्यतीत किया है। वह झारखंड के गांव-गांव घूमी हैं। उनके स्मृति पटल में जनजातीय समुदाय की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निक्की प्रधान, सलीमा टेटे, दीपिका कुमारी से लेकर पद्मश्री छुटनी देवी और जमुना टुडू, जैसी शख्सीयत आज भी विराजमान हैं। उनके योगदान और नाम लेकर महामहिम ने यहां के लोगों के साथ अपने आत्मीय जुड़ाव का ईमानदार प्रकटीकरण किया। प्रांतों की भौगोलिक दीवार से इतर भाषा, संस्कृति, भावना और खून के संबंधों को गहराइयों को थामे महामहिम ने बिना संकोच बोल गईं- मैं ओड़िशा की रहनेवाली, पर मेरा खून झारखंड का।

दादी 5 किमी दूर ले जाती थीं महुआ चुनने
राष्ट्रपति ने बताया कि उनकी दादी उन्हें पांच किमी दूर महुआ चुनने ले जाती थी। कभी खाना नहीं होता तो महुआ उबाल कर खाती। आज उसी महुआ से केक व कई खाद्य उत्पाद बन रहे हैं। महिलाएं अब केवल धान की खेती पर निर्भर नहीं हैं। उन्हें भी आगे बढ़ने का जुनून हैं। उन्हें केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। ये शुरुआत है, भले देर से ही है। लेकिन सब अच्छा ही होगा। सरकार 100 कदम आगे बढ़ेगी तो हमे भी 10 कदम बढ़ाना होगा।

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