बिना वेतन 7 साल से बच्चों को पढ़ा रहीं दिव्यांग पारा शिक्षिका सुनीता, सिस्टम को रहम नहीं
हजारीबाग की दिव्यांग आदिवासी पारा शिक्षिका सुनीता को देखकर आपके मन भी यह सवाल उठेगा कि हमार सिस्टम ही पंगु हो गया है। उसका सात साल से मानदेय रोक दिया गया है। पर वह रोज पढ़ाने आती है।
हजारीबाग की दिव्यांग आदिवासी पारा शिक्षिका सुनीता को देखकर आपके मन भी यह सवाल उठेगा कि हमार सिस्टम ही पंगु हो गया है। उसका सात साल से मानदेय रोक दिया गया है। पर वह रोज पढ़ाने आती है इस उम्मीद से कि एक दिन उसकी बात सुनी जाएगी।
7 वर्षों से शिक्षिका को नहीं मिला वेतन
जिले के कटकमसांडी प्रखंड के नव प्राथमिक विद्यालय तोरार की आदिवासी दिव्यांग महिला पारा शिक्षिका मानदेय के लिए सात वर्षो से मानदेय नहीं मिला है। इसके लिए वह लगातार गुहार लगा रही है। इसे लेकर सांसद भी कई बार पत्र लिख चुके है। बावजूद इसके इस आदिवासी दिव्यांग महिला को मानदेय नहीं मिला। बताया जाता है कि दोनो पैरो से लाचार आदिवासी महिला सुमित्रा कुमारी का चयन चार नवंबर 2004 में बतौर पारा शिक्षिका एनपीएस तोरार में हुआ। उस समय वह मैट्रक पास थी और इस योग्यता के आधार पर ही चयन हुआ। बाद में उसे योग्यता बढ़ाने को कहा गया। सुमित्रा कुमारी ने हिन्दी विद्यापीठ देवघर से साहित्यभूषण की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास कर ली।
2016 से ही शिक्षिका का मानदेय रोका गया
इंटरमीडिएट के समकक्ष होता है। सुमित्रा कुमारी ने बताया कि तत्कालीन बीइइओ ने चार नवंबर 2015 को पत्र देकर शैक्षणिक प्रमाण पत्र मांगा गया। अचानक फरवरी 2016 से मेरा मानदेय रोक दिया गया। जांच के नाम पर सात साल से अधिक समय से मेरा मानदेय रोक दिया गया है। मानदेय के नाम पर सिर्फ आश्वासन दिया जा रहा है। कहा कि मेरा सर्टिफिकेट सही है।
इसके बाद भी मानदेय रोके जाने से मेरी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है। मेरा दोनो पैर नही है। इसके बाद भी मैं रोज स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ाती हूं। कटकमसांडी प्रखंड के बीइइओ नागदेव यादव ने कहा कि पारा शिक्षिका को जनवरी 2016 तक मानदेय मिला है। मानदेय क्यों रोका गया, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। एक दो दिनों में इस मामलें की पड़ताल करने के बाद बता पाएंगे।