14 साल में भी नहीं सुधर पाया झारखंड के इस विश्वविद्यालय का ग्रेड, संसाधनों की भारी कमी
कोशिश पर कोशिश और इसके बाद भी नतीजा सिफर। झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र चाईबासा में स्थित कोल्हान विश्वविद्यालय पर यह जुमला सटीक बैठता है। चाईबासा के कोल्हान विश्वविद्यालय का ग्रेड स्थापना के 14 साल
कोशिश पर कोशिश फिर भी नतीजा सिफर, झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र चाईबासा स्थित कोल्हान विश्वविद्यालय के साथ है। चाईबासा के कोल्हान विश्वविद्यालय का ग्रेड स्थापना के 14 साल बाद भी नहीं सुधर पाया है। विश्वविद्यालय की स्थापना 2009 में आदिवासी बच्चों को उनके घर में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से हुई थी। कोल्हान प्रमंडल मुख्यालय चाईबासा में इस विश्वविद्यालय की स्थापना यह सोचकर की गई थी कि यह जमशेदपुर से भी नजदीक होगा और मनोहरपुर कुमारडुंगी के उन क्षेत्र के बच्चों का नया भविष्य बढ़ेगा, जहां नेटवर्क के लिए कई किमी दूर जाना पड़ता है। हालांकि विश्वविद्यालयों के मूल्यांकन की सबसे बड़ी इकाई नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) ने इस विश्वविद्यालय को सी ग्रेड से ज्यादा लायक नहीं समझा है।
80 हजार विद्यार्थी और एक भी प्रोफेसर नहीं
80 हजार विद्यार्थियों वाले इस विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है। 14 साल बाद भी यह जरूरत के अनुरूप संसाधनों का जुगाड़ नहीं कर पाया है। हैरानी की बात यहां एक भी प्रोफेसर का नहीं होना है। कॉलेजों और विश्वविद्यालय को मिलाकर 250 करीब शिक्षक तैनात हैं। इनमें से भी अधिकांश अगले साल यानी 2023 तक सेवानिवृत्त हो जाएंगे। कुल मिलकर विश्वविद्यालय में शिक्षकों के आधे से अधिक पद खाली हैं। इसका सबसे प्रमुख कारण झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की ओर से वर्ष 2008 के बाद विश्वविद्यालय में शिक्षकों की बहाली न होना है।
कॉलेजों का बुरा हाल
कोल्हान विश्वविद्यालय में पीजी विभाग की स्थिति कुछ हद तक ठीक है लेकिन कॉलेजों का बुरा हाल है। अधिकांश कॉलेजों में तो कई विषयों की पढ़ाई शिक्षकों की कमी के कारण ही अटकी हुई है। संस्कृत जैसे महत्वपूर्ण विषयों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है। कुछ कॉलेजों को मिलाकर संयुक्त कक्षाओं के परिचालन की योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई है। यही हाल हिन्दी, अंग्रेजी के साथ अन्य विषयों का है।
13 साल में दूसरी बार पीएचडी प्रवेश परीक्षा, रिजल्ट पेंडिंग
कोल्हान विश्वविद्यालय में शोध का बुरा हाल है। 13 साल में विश्वविद्यालय सिर्फ दो बार पीएचडी की प्रवेश परीक्षा आयोजित करा सका है। दूसरी बार यह प्रवेश परीक्षा पिछले वर्ष आठ माह की तैयारी के बाद दिसंबर में हुई थी लेकिन परिणाम अब तक लटका है। शिक्षकों की कमी से शोध कार्य करने वाले विद्यार्थियों को अपने गाइड के लिए लंबी जद्दोजहद करनी पड़ी है, क्योंकि हर शिक्षक के पास ज्यादा दबाव है।
नहीं मिल रहे अधिकारी
इतना ही नहीं कोल्हान विश्वविद्यालय में अधिकारियों के विभिन्न पदों के लिए लंबे समय से विज्ञापन निकाले जाने के बाद भी नए अधिकारी नहीं मिल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि शोध और शिक्षण कार्य में गहरी अभिरुचि वाले शिक्षक आना नहीं चाहते हैं। इसी कारण विश्वविद्यालय प्रबंधन के पास वर्षों से कार्यरत पुराने अधिकारियों को सेवा विस्तार देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
हर साल दो करोड़ का नुकसान
नैक से ए और बी ग्रेड मिलने वाले विश्वविद्यालय को हर साल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से शोध एवं अन्य कार्यों के लिए दो करोड़ का अनुदान मिलता है। कोल्हान विश्वविद्यालय इस राशि से अछूता है। नैक की टीम ने जब इस साल 23 से 25 जनवरी तक केयू का निरीक्षण किया तो विश्वविद्यालय टीम को संतुष्ट नहीं कर पाया। भवन को चमकाने की तमाम कवायद धरी रह गई। अब विश्वविद्यालय ने एक बार फिर नैक के समक्ष मजबूत संरचना को आधार बनाकर ग्रेड पर विचार करने का आवेदन किया है लेकिन गुजांइश कम ही नजर आती है।