Hindi Newsझारखंड न्यूज़Athletes in trouble: Athlete Roopas dreams collided with Gurbats stone

मुश्किल में खिलाड़ी : गुरबत के पत्थर से टकराकर टूट गए एथलीट रूपा के सपने 

रूपा के सपने बड़े थे। वह एक एथलीट के तौर पर देश-दुनिया में पहचान बनाना चाहती थी, लेकिन गुरबत के पत्थर ने उसके सपने चूर कर दिए। अब वह दूसरों की सेहत संवारने में जुटी है।  रांची के एक जिम में...

rupesh लोहरदगा दीपक मुखर्जी, Tue, 2 June 2020 04:39 PM
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रूपा के सपने बड़े थे। वह एक एथलीट के तौर पर देश-दुनिया में पहचान बनाना चाहती थी, लेकिन गुरबत के पत्थर ने उसके सपने चूर कर दिए। अब वह दूसरों की सेहत संवारने में जुटी है। 

रांची के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर अपना परिवार पाल रही है। सरकार और समाज ने उसके सपनों को जरूरी पंख दिए होते शायद उसकी परवाज आज एथलेटिक्स की दुनिया देख रही होती।

लोहरदगा- गुमला जिला सीमा पर स्थित भरनो प्रखंड के दाढा भड़गांव गांव की रूपा कुमारी डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो की उभरती सितारा थी।  उसने कई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा और क्षमता का लोहा मनवाया। बीएन जलान कॉलेज, सिसई में पढ़ते हुए 2013 से 2017 तक लगातार रांची यूनिवर्सिटी की विभिन्न इंटर कॉलेज स्पर्धाओं में कई पदक जीते। 2015 पटियाला में हुई अंतर विश्वविद्यालय चैम्पियनशिप में रांची यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया। कोलकाता के साल्ट स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भी भागीदारी कर झारखंड का गौरव बढ़ाया। लेकिन इसके बाद घर की परिस्थितियां क्या बिगड़ी, रूपा से उसका खेल ही छूट गया। खेल की दुनिया से खुद को किसी तरह जोड़े रखने की कोशिश में उसने पटियाला से छह सप्ताह का स्पोट्र्स कोचिंग एनआईएस सर्टिफिकेट प्राप्त किया। लेकिन तब भी बात नहीं बनी। उसे खेल की दुनिया में न कोई नौकरी मिली, न सपनों को परवान चढाने का कोई जरिया।

रूपा जब काफी छोटी थी तभी पिता केश्वर पासवान का निधन हो गया था : रूपा जब काफी छोटी थी तभी उसके पिता केश्वर पासवान का निधन हो गया था। दो भाई और चार बहनों में सबसे छोटी रूपा के सपनों को पूरा करने में इसके बड़े भाई ने काफी सहयोग किया। मां ने भी विपरीत परिस्थिति में अपनी बेटी के हौसले को उड़ान देने का भरसक प्रयास किया, पर जैसे-जैसे रूपा को ट्रेनिंग-डाइटिंग आदि के टास्क मिलते गए, पैसे की तंगी होती गई। आखिरकार सपने ने दम तोड़ दिया। इसके बाद वह अपने घर से करीब 60 किमी  दूर रांची में रहकर रोजगार की तलाश करने लगी। अंतत: जिम में ट्रेनर बनना स्वीकार किया, लेकिन लॉकडाउन में वह भी बंद हो गया। फिर आजीविका का संकट खड़ा हो गया। रूपा कहती है कि स्वस्थ योद्धा राष्ट्र को विजयी बनाते हैं। आरोग्य के लिए स्वास्थ्य शिक्षा आवश्यक है। यह सब खेल व व्यायाम से ही संभव है। सरकार खिलाड़ियों के लिए भी कुछ करे ताकि भविष्य खतरे में न पड़े।  

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