झारखंड में लॉकडाउन के बाद खुले उद्योगों की रफ्तार है धीमी
अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद सूबे में बड़े उद्योग धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहे हैं। हालांकि अब तक उनके उत्पाद की मांग पहले की तरह नहीं हो सकी है। इसके कारण उत्पादन पर भी असर पड़...
अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद सूबे में बड़े उद्योग धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहे हैं। हालांकि अब तक उनके उत्पाद की मांग पहले की तरह नहीं हो सकी है। इसके कारण उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। इसके बावजूद रांची के एचईसी और बोकारो के स्टील प्लांट उम्मीद जगा रहे हैं। वहां उत्पादन अपनी रफ्तार पकड़ चुका है और उनके उत्पाद की मांग देश-विदेश में पहले की तरह बनी हुई है। पेश है झारखंड में बड़े उद्योगों की हालत पर एक रिपोर्ट।
एचईसी में उत्पादन ने पकड़ी रफ्तार: देश के मातृ उद्योग और रांची स्थित भारी इंजीनियरिंग लिमिटेड में उत्पादन रफ्तार में हैं। लॉकडाउन के पहले जनवरी और फरवरी में एचईसी में हर माह आठ करोड़ का उत्पादन हो रहा था। लॉकडाउन वन के बाद जब उद्योगों को चलाने की अनुमति मिली तो शुरु में सिर्फ 33 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम लिया जा रहा था। इसरो और रक्षा मंत्रालय के उपकरणों की आपूर्ति को प्राथमिकता दी गयी। अप्रैल माह के अंत में ही इसरो को जरूरी उपकरणों की आपूर्ति की गयी। अप्रैल और मई माह में एचईसी का उत्पादन करीब सात करोड़ का रहा है। जून में इसमें और इजाफा होने की संभावना है। एचइसी के पास 900 करोड़ से अधिक कार्यादेश हैं और नए कार्यादेश भी मिल रहे हैं।
अरविंद मिल में हो रहा 10 फीसदी उत्पादन: अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद भी झारखंड की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में उत्पादन पटरी पर नहीं आ रहा है। रांची स्थित अरविंद स्मार्ट मिल में अभी उत्पादन पूरी क्षमता का मात्र 10 फीसदी हो रहा है। कोरोनाकाल से पहले यहां हर महीने एक लाख पीस कपड़े तैयार होते थे। अभी यह आंकड़ा महज 10 हजार पीस प्रति महीने का है। टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज से जुड़े सूत्र बताते हैं कि उत्पादन के पटरी पर नहीं आने का कारण ऑर्डर नहीं होना है। अरविंद मिल से ड्रेस का अधिकतर निर्यात अमेरिका और यूरोपीय देशों में होता है। वहां शोरूम बंद हैं। बाजार बंद होने के कारण निर्यातक इकाइयों के पास ऑर्डर कम हंै। भारत के देसी बाजार में भी तेजी नहीं है।
टाटा मोटर्स में मात्र 20 प्रतिशत हो रहा उत्पादन : कोरोना संकट से पहले से ऑटोमोबाइल सेक्टर आर्थिक मंदी की चपेट में था। टाटा मोटर्स भी इससे अछूती नहीं थी। कोरोना संकट ने स्थिति को और गहरा दिया था। जून से टाटा मोटर्स में उत्पादन शुरू हुआ है। इसके बावजूद प्रतिदिन 300-350 वाहनों का निर्माण करने वाली टाटा मोटर्स के जमशेदपुर प्लांट में अभी रोजाना मात्र 60-70 वाहनों का ही निर्माण हो रहा है। टाटा मोटर्स को जून में करीब 2000 के करीब वाहनों के ऑर्डर मिला है। ऑर्डर कम होने की वजह से स्थायी, बाईिसक्स और ठेका कर्मचारियों समेत करीब 3500 कर्मचारी ही अभी काम कर रहे हैं। इनमें करीब 300 बाईिसक्स कर्मचारी हैं। वैसे कंपनी में 5400 स्थायी, 3700 बाईिसक्स और 5000 ठेका कर्मचारी हैं।
बीसीसीएल का खनन अभी तक प्रभावित : धनबाद के सबसे बड़े उद्योग कोलियरी में लॉकडाउन के बाद अनलॉक में खनन जारी है मगर उत्पादन पूरा नहीं हो पा रहा है। कोयले की मांग में कमी के कारण कोयला कंपनी बीसीसीएल प्रभावित है। रोज एक लाख टन कोयला उत्पादन करने वाली बीसीसीएल 50 हजार टन से कम कोयला निकाल रही है। रोज 21-22 रैक कोयले का डिस्पैच होता था, जो 10 रैक तक आ गया है। लाकडाउन के दौरान तीन-चार रैक तक डिस्पैच हो रहा था। अब स्थिति कुछ सुधरी है। वर्तमान में बीसीसीएल के कोयले का स्टिक दो मिलियन टन से ज्यादा हो गया है। बारिश का भी कोयला उत्पादन पर असर नजर आ रहा है। आगे पावर प्लांट की मांग बढ़ने से स्थिति सुधरेगी।
बीएसएल में लॉकडाउन के बाद उत्पादन बढ़ा : बोकारो स्टील प्लांट में लॉकडाउन के बाद प्रोडक्शन में इजाफा हुआ है। अनलॉक के बाद सात हजार टन हॉट मेटल का उत्पादन हो रहा है, जबकि लॉकडाउन के दौरान ढई हजार टन उत्पादन हो रहा था। जुलाई में हॉट मेटल की डिमांड को देखते हुए बंद पड़े ब्लास्ट फर्नेश नंबर तीन को चालू किया जाएगा। इसके बाद प्रतिदिन 12 हजार टन हॉट मेटल का उत्पादन होगा। राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय बाजार में बीएसएल स्टील की डिमांड जबरदस्त है। चाइना व अन्य देशो से बीएसएल को 1 लाख 80 हजार टन स्टील की आपूर्ति का आर्डर मिला है। प्रबंधन इसके लिए प्रोडक्शन बढ़ा रहा है। माल डिस्पैच भी हो रहा है। इलेक्ट्रोस्टील प्लांट में भी उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। प्लांट में फिलहाल उत्पादन 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक किया गया है। उत्पादित माल की डिमांड के अनुसार सप्लाई की जा रही है।
अभी उबर नहीं सके हैं कोयलांचल के उद्योग : धनबाद कोयलांचल के उद्योग लॉकडाउन इफेक्ट से अब तक उबर नहीं सके हैं। एसीसी की सिंदरी सीमेंट फैक्ट्री को छोड़ दें तो बाकी औद्योगिक क्षेत्र में सन्नाटा है। हार्डकोक उद्योग में नाम मात्र की यूनिट ही चालू हो पाई हैं। जो उद्योग चालू हुए हैं, वह भी क्षमता का 30- 40% तक ही काम कर रहे हैं। निर्माण क्षेत्र में सीमेंट की मांग बढ़ रही है। एसीसी सीमेंट कारखाने में लाकडाउन के दौरान ही 22 अप्रैल से उत्पादन शुरू हुआ। अप्रैल और मई तक सात हजार टन प्रतिदिन उत्पादन होता था। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ तब सिर्फ दो सौ मजदूरों से काम लिया जाता था। वर्तमान में 9000 हजार टन प्रतिदिन उत्पादन होता है। पांच सौ मजदूर काम करते हैं। दूसरी तरफ हार्डकोक उद्योग को एक तो कोयले की आपूर्ति नहीं हो रही तो दूसरी तरफ मांग में भी कमीहै। धनबाद जिले में 120 हार्डकोक यूनिट हैं, जिनमें से मात्र 17 चल रही हैं। हार्डकोक उद्योग में 50 हजार मजदूरों को रोजगार मिलता था, अभी लगभग पांच हजार मजदूरों को ही काम मिल रहा है।
रिफैक्ट्री पर भी असर, कुछ खुली तो कुछ बंद हैं : धनबाद में लॉकडाउन से क्षेत्र की रिफैक्ट्रीज में भी कामकाज प्रभावित है। कुछ खुले तो कुछ बंद हैं। पंचेत के उद्यमियों ने बताया कि सरिया कारखाने के लिए बीपी सेट (बोटम पोरिंग) उत्पादन करनेवाली रिफैक्ट्रियों की स्थिति बदतर हो गई है। कच्चा माल नहीं मिल रहा है। रिफैक्ट्रियों को कच्चा माल बंगाल से उपलब्ध होता है, जो लॉकडाउन के बाद से प्रभावित है। वैसै चिरकुंडा क्षेत्र दुधिया पानी इलाके की कुछ रिफ्रैक्ट्रीज खुल गई हैं, लेकिन पहले वाली स्थिति नहीं है।
टाटा स्टील में एक-दो माह में बढ़ेगा उत्पादन : टाटा स्टील की मासिक उत्पादन क्षमता 8 से 8.5 लाख टन है। वर्तमान में करीब 75 प्रतिशत यानी लगभग 6 से 6.5 लाख टन उत्पादन हो रहा है। इसके लिए अभी 90 प्रतिशत कर्मचारी काम कर रहे हैं। टाटा स्टील में 13500 स्थायी और 25000 ठेका कर्मचारी हैं। कंपनी को बड़ी मात्रा में विदेशी ऑर्डर मिले हैं। इसलिए जुलाई या अगस्त से कंपनी में पूरी क्षमता और मैनपावर के साथ उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।
एंसीलरियों में काफी कम है काम : अनलॉक-1 में टाटा मोटर्स में उत्पादन शुरू होने के बावजूद आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की करीब 700 एंसीलरियों को पार्याप्त ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है। ये सभी एंसीलरियां टाटा मोटर्स पर निर्भर हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़ी इन एंसीलरियों में एक शिफ्ट के लायक भी काम नहीं है। अभी तक एंसीलरियों को उनकी क्षमता की तुलना में 10 से 15 प्रतिशत ही काम मिल पाया है।