विलंब से ग्रेच्युटी भुगतान पर नियोक्ताओं को दस फीसदी ब्याज देना होगा : हाईकोर्ट
टाटा स्टील के कर्मचारी ने विलंब पर दस फीसदी ब्याज मांगा था, टाटा स्टील ने ब्याज देने से इनकार कर दिया था, श्रम न्यायाधिकरण ने भी दस फीसदी ब्याज देने क
रांची। विशेष संवाददाता झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि किसी कर्मचारी को समय पर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया जाता है, तो नियोक्ता को दस प्रतिशत ब्याज देना होगा। ब्याज की गणना उस तिथि से की जाएगी, जिस तिथि से कर्मचारी को ग्रेच्युटी का भुगतान करना है। टाटा स्टील की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की अदालत ने यह फैसला सुनाया।
टाटा स्टील ने अपने कर्मचारी को समय पर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया था। इसके बाद कर्मचारी ने ग्रेच्युटी की राशि पर दस फीसदी ब्याज के लिए आवेदन दिया। कर्मचारी ने केंद्र सरकार की उस अधिसूचना का हवाला दिया जिसमें ग्रेच्युटी भुगतान नहीं किए जाने पर दस फीसदी साधारण ब्याज देने की बात कही गयी है। टाटा स्टील लिमिटेड प्रबंधन ने जब ब्याज का भुगतान नहीं किया तो कर्मचारी ने उप श्रमायुक्त के पास आवेदन दिया। उप श्रमायुक्त ने 19.08.2021 को प्रबंधन को ग्रेच्युटी की राशि 10,67,308 पर दस फीसदी साधारण ब्याज का भुगतान करने का आदेश टाटा स्टील प्रबंधक को दिया।
प्रबंधन ने इसके खिलाफ अपील की। अपीलीय न्यायाधिकरण ने 14.3.2023 को आदेश जारी कर श्रमायुक्त के दस फीसदी ब्याज देने का आदेश बरकरार रखा। इसके बाद प्रबंधन ने हाईकोर्ट मे याचिका दायर की।
टाटा स्टील की ओर से अदालत को बताया गया कि ग्रेच्युटी की देय राशि पर 10% की दर से ब्याज का भुगतान करने का निर्देश अधिनियम 1972 की धारा 7 (3-ए) के प्रावधान के विपरीत है, क्योंकि अधिकतम ब्याज 10% की दर से दिया जा सकता है। दस फीसदी ब्याज अधिकतम है। इससे कम का ब्याज भी दिया जा सकता है। दस फीसदी ब्याज को अनिवार्य नहीं माना जा सकता। ब्याज की दर की गणना छह या सात फीसदी भी की जा सकती।
कर्मचारी की ओर से अदालत को बताया गया कि केंद्र सरकार की 01.10.1987 की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से ब्याज दर 10% निर्धारित की गई है। इसमें स्पष्ट आदेश है कि सरकार को अधिसूचना जारी करनी है।
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने माना कि अपीलीय प्राधिकारी का 10% की ब्याज दर बरकरार रखना सही है। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के 01.10.1987 की अधिसूचना का हवाला दिया, जो कि 1972 के अधिनियम की धारा 7 (3-ए) के तहत जारी एक वैधानिक अधिसूचना है। अपीलीय प्राधिकारी के आदेश में हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार किया और टाटा स्टील की याचिका खारिज कर दी।
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