बोले पलामू-मानदेय-पहचान के संकट से जूझ रहे कलाकार
स्थानीय लोक कलाकारों ने प्रशासनिक और सामाजिक उपेक्षा के कारण अपनी समस्याएं साझा की। कलाकारों का कहना है कि सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है और उन्हें जीविकोपार्जन के लिए अन्य कामों की ओर...
मौसम के अनुरूप गीत-संगीत न सिर्फ मन को पुलकित करते हैं वरन इनके माध्यम से समाज को सकारात्मक संदेश देने की पुरानी परंपरा रही है। परंतु लोक कलाओं के प्रति बढ़ती प्रशासनिक, सामाजिक उदासीनता से लोक कलाकारों की साधना भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। सामाजिक रूप से भी लोक कलाकार पहचान के मोहताज होते जा रहे हैं। सरकार की ओर से भी सहयोग नहीं मिल रहा है। हिन्दुस्तान अखबार के बोले पलामू अभियान में स्थानीय लोक-कलाकारों ने अपना दर्द बयां किया। मेदिनीनगर। व्यक्ति अपने दैनिक गतिविधियों की थकान को दूर करने लिए अक्सर लोक-संगीत का आनंद लेता है। कुछ गुनगुना कर, कुछ सुनकर नई ऊर्जा हासिल करना चाहता है। लोक कलाकारों की लाइव प्रस्तुति अधिकांश लोगों को आकर्षित करती है। ऐसा अवसर सहजता से समाज में सुलभ होना चाहिए। लोक-सांस्कृतिक विरासत को बचाकर रखने वाले कलाकारों ने कहा कि यह स्थिति उपेक्षा के कारण पैदा हो रही है। बीते कुछ सालों से लोक कलाकारों की उपेक्षा चिंतित करने वाली है। कला के क्षेत्र में संपन्न होने के बावजूद जीविकोपार्जन के लिए कलाकारों को दूसरे कार्यों की ओर मुड़ने की बाध्यता है। छोटे, मध्यम और बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन बंद हो गया है। इससे कलाकार परेशान हैं।
कलाकारों ने कहा कि सरकार और प्रशासन स्तर से लोककला को बढ़ावा देने के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है। लोककला और संस्कृति कलाकारों के कारण जिंदा है। परंतु बढ़ते दवाव के कारण लोककलाएं खत्म होती जा रही है। पहले अक्सर प्रत्येक गांव में अच्छे गाने वाले और विभिन्न वाद्य यंत्र बजाने वाले लोगों की बड़ी संख्या होती थी। कोई ढोलक, कोई हारमोनियम, कोई तबला, कोई एकतारा बजाने में माहिर होता था तो कोई विभिन्न लोकगीतों के गायन में गुणी होता था। अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में गांव के लोग इन्हें बड़े चाव से सुनते थे। समय के साथ लोक कलाकारों की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ और विशिष्ट गुण वाले कलाकारों को जिला मुख्यालय के बड़े मंचों पर भी बुलाया जाने लगा। परंतु हाल के दशकों में इसमें उदासीनता का माहौल है।
लोक कलाकारों और लोक कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया शनि परब, सुबह सवेरे, कोयल महोत्सव जैसे कार्यक्रम बीते दिनों की बात हो गए। इन कार्यक्रमों में स्थानीय कलाकारों को उचित मंच मिलता था जहां वे अपनी प्रस्तुति देकर अपने आप को निखार पाते थे। लोक कलाकारों को अपनी आवाज और वाद्य यंत्रों की उत्कृष्टता को दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए रेडियो और दूरदर्शन का साथ मिलता था, जहां लोग विभिन्न वाद्य यंत्रों में निपुणता और प्रस्तुति देने वाले कलाकारों की टीम से अवगत होते थे। इसके कारण अपने गांव, समाज और जिला मुख्यालय में उनकी प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती थी। शनि परब, सुबह सवेरे जैसे साप्ताहिक कार्यक्रम से जहां एक ओर युवा और नवोदित कलाकारों को मंच मिलता था तो दूसरी ओर उन्हें आर्थिक सहायता भी मिल जाती थी। साथ ही अपनी कलाओं को और निखारने के लिए वे प्रोत्साहित होते थे। सरकार की उदासीनता के कारण सन 2019 के बाद रेडियो और दूरदर्शन में कार्यक्रम बंद हो गए। उसमें संलग्न कलाकार या तो अपने बदौलत कुछ कर रहे है या बहुत सारे दूसरे कार्यों में संलग्न हो गए। पलामू के गांवों के अशांत माहौल में अब सकारात्मक बदलाव आया है और पुन: लोकसंगीत के लिए जगह मिलने लगी है। परंतु समुचित प्रोत्साहन नहीं मिलने से अपेक्षित माहौल नहीं बन पा रहा है। वाद्य यंत्र में निपुण होने के बाद सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए लोक-कलाकार दूसरे कार्यों में संलग्न नहीं हो रहे हैं। परंतु प्रोत्साहन और स्थानीय स्तर पर अवसर नहीं मिलने के कारण परेशानी बढ़ती जा रही है। नियमित साधना के लिए जिले में लोककला केंद्र जैसे कोई सेंटर विकसित नहीं किए गए हैं। मासिक प्रोत्साहन राशि भी नहीं मिलती है। इससे कलाकारों की उदासीनता बढ़ती जा रही है।
प्रस्तुति: आनंद
विलुप्त हो रहीं जिले की लोक-कलाएं
जिले में प्रत्येक सप्ताह छोटे स्तर पर और प्रत्येक महीना बड़े स्तर पर लोककला विषयक कार्यक्रम कराया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता देते हुए सहभागी बनाने की आवश्यकता है। पलामू में भी झुमर, करमा, होली, चैता, सोहराई, सरहुल, पवरिया आदि संगीत-नृत्य का खूब प्रचलन रहा है। परंतु जिले के आधुनिक विकास की दौड़ में पारंपरिक लोक-कला विलुप्त होती जा रही है। अन्य राज्यों में अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए कई पहल किए जा रहे हैं। झारखंड में भी सरकार स्तर पर ऐसी पहल होनी चाहिए।
लोक कलाकारों को मिलना चाहिए अवसर
लोक कलाओं के संरक्षण और विकास के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन के स्तर से अधिक से अधिक अवसर विकसित करना चाहिए। साथ ही लोक कलाकारों को मानदेय और प्रोत्साहन राशि देकर प्रोत्साहित करना चाहिए। वर्तमान समय में आम लोगों, राज्य सरकार और प्रशासन स्तर पर लोक कलाकार अनदेखी का सामना कर रहे हैं। इसके कारण लोक कलाकारों के समक्ष परिवार चलाना भी बहुत मुश्किल हो गया। वे कला-संस्कृति की साधना व संरक्षण छोड़ दूसरी ओर मुड़ने के लिए बाध्य हो रहे हैं। ताकि अपना और परिवार का भरण-पोषण कर सकें।
पढ़ाई का विषय भी हो लोककला
झारखंड के सरकारी व निजी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में लोककला विषय को मुख्य विषय के रूप में महत्व नहीं दिया जा रहा है। इसके कारण विद्यार्थियों में लोक का प्रारंभिक प्रशिक्षण भी नहीं मिल रहा है। समाज में भी लोककलाओं की साधना खत्म होती जा रही है। इससे लोक-कलाकारों का प्रारंभिक विकास नहीं हो रहा है। सरकार को लोककला विषय को भी पाठ़्यक्रम में शामिल करना चाहिए। इससे लोककला की सांस्कृतिक विरासत भी बचेगी।
लोककला संस्कृति केंद्र बने
जिला प्रशासन लोक-कलाकारों आम लोगों से भी कम आंकती है। सभी कलाकार सांस्कृतिक विरासत को बचाने में विशेष योगदान दे रहे है। सरकार और प्रशासन को कैंप लगाकर लोक कलाकारों की व्यतिगत और सामाजिक समस्याओं को दूर करने की पहल करनी चाहिए। साथ ही जिला मुख्यालय में लोक-कला सांस्कृतिक केंद्र भी विकसित करने की जरूरत है। इसके अलावा लोककलाकारों के सम्मान को चोट नहीं पहुंचे, इस दिशा में भी पहल की आवश्यकता है।
शिकायतें और सुझाव
1. कलाकारों को सरकार से मासिक मानदेय, प्रोत्साहन भत्ता जैसा कुछ भी नहीं मिलता है। गंभीर आर्थिक संकट है।
2. लोक-कला केंद्र जैसे केंद्र जिले में विकसित नहीं किए गए हैं। इससे कलाकारों को अभ्यास का अवसर नहीं मिलता है।
3. स्कूल, कॉलेज और विविं में संगीत शिक्षा की घोर कमी है। इससे विद्यार्थियों को प्रारंभिक शिक्षा नहीं मिल पाती है।
4. स्थानीय लोक महोत्सव जैसे कार्यक्रम नहीं कराए जा रहे हैं। इससे प्रोत्साहन नहीं मिलता।
1. कलाकारों को सरकार स्तर से मासिक मानदेय देने और न्यूनतम ब्जाज पर लोन की सुविधा मिलनी चाहिए।
2. सरकार संचालित शनि परब, सुबह सबेरे, जैसे कार्यक्रम को तत्काल शुरू करना चाहिए ताकि प्लेटफार्म मिल सके।
3. स्कूल, कॉलेज और विवि में संगीत मुख्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। इससे प्रशिक्षन प्राप्त हो सकेगा।
4. जिला मुख्यालय में प्रत्येक सप्ताह लोक महोत्सव के आयोजन की व्यवस्था हो।
लोक कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जिले में कोई आवंटन नहीं है। सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने के लिए सरकार का कोई आदेश भी प्राप्त नहीं है। इसके कारण जिला कला-संस्कृति विभाग कोई भी पहल करने को लेकर सक्षम नहीं है। सेवाराम साहू, जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी
लोक कलाकारों के सर्वांगीण विकास के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। साथ ही बंद हो चुके शनि परब, सुबह सवेरे, कोयल महोत्सव आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम को फिर से शुरू करने और स्थानीय कलाकारों को मौका देने की पहल करना जरूर चाहिए। आशुतोष पांडेय, निदेशक सुर संगम कला केंद्र
पलामू के बच्चों एवं बच्चियों के लिए जिला प्रशासन को विशेष पहल करनी चाहिए। उन्हें उचित मंच की समुचित व्यवस्था हो ताकि वे विकास कर सकें।
सुजीत कुमार
सरकारी स्तरों पर लोक कलाकारों को कोई सपोर्ट नहीं किया जाता है। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद जिला प्रशासन पैसों के लिए बार-बार उन्हें दौड़ाती है।
राजा सिन्हा
कला में क्षेत्र में विशिष्ट गुण होने के बावजूद वरिष्ठ कलाकारों ने स्थानीय शहर में रहना पसंद किया। उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए। पहल करना जरूरी है। क्यूम रूमानी
पिछले कुछ वर्षों से बंद हो गए रेडियो और दूरदर्शन के कार्यक्रम को पुन: शुरू करना चाहिए ताकि कलाकार अपना प्रदर्शन की जीवंत रख सके। और परेशानी न हो।
राम किशोर पांडेय
संगीतज्ञों को प्रतिष्ठा बचाने के लिए लगातार प्रयास करना पड़ रहा है। जिला प्रशासन के साथ आम लोग भी कलाकारों को विशेष तवज्जो नहीं दे रहे हैं जो मिलना चाहिए।
रमेश कुमार पाठक
लोक-संस्कृति के कलाकारों के लिए समय-समय कैंप लगाकर उनकी समस्याओं को सुलझाया जाना चाहिए। साथ ही उन्हे प्रोत्साहित करना चाहिए। रितिक राज
कलाकारों को मेहनत के हिसाब से मानदेय नहीं मिलता है। सरकार को कलाकारों को प्रतिमाह एक मानदेय भी सुनिश्चित करना चाहिए।
अली राजा पप्पू
युवा लोक कलाकारों को मंच प्रदान किया जाए, उन्हें सामाजिक और जिला प्रशासन से प्रेरित किया जाना अति-आवश्यक है ताकि वो अपने क्षेत्र में बेहतर कर सके।
अदनान काशिफ
जिला प्रशासन और राज्य सरकार कलाकारों को प्रमोट करें। सुगम संस्कृत, शनि परब जैसे कार्यक्रम का आयोजन पुन: शुरू करने की जरूरत है।
श्याम किशोर पांडेय
लोक-संगीत विधा के पुराने वाद्यों को बचाना आवश्यक है। इनके उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम करने की जरूरत है। प्रोत्साहन नहीं मिलने से कला विलुप्त हो रही है। पवन कुमार शर्मा
विभिन्न कार्यक्रमों में स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा होती है, यह कतई उचित नहीं है। प्रशासन को स्थानीय लोक कलाकारों को प्राथमिकता देना चाहिए।
सुमन मिश्रा
स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालयों में संगीत को एक प्रमुख विषय के रूप में शुरू किया जाए। संगीत को बचाने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है।
श्रवण कुमार मेहता
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