टाटा की औद्योगिक सोच के पहले शिल्पकार थे बीजे पादशाह
बुर्जोर्जी जमास्पजी पादशाह का जन्म 7 मई 1864 को बॉम्बे में हुआ था। वे जमशेदजी टाटा के करीबी सहयोगी थे और 1894 में इंडियन होटल्स कंपनी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके योगदान में बैंक ऑफ...

टाटा की औद्योगिक सोच के पहले शिल्पकार बुर्जोर्जी जमास्पजी पादशाह को माना जाता है। उनका जन्म 7 मई 1864 को बॉम्बे में हुआ था। वे टाटा साम्राज्य की नींव रखने वाले जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सबसे करीबी और भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाते हैं। उनका संबंध नवसारी के एक व्यापारिक परिवार से था, जो घोड़े व्यापार जैसे व्यवसायों में संलग्न था। बाल्यावस्था से ही वे जमशेदजी टाटा के संरक्षण में पले-बढ़े और यही संबंध आगे चलकर एक साझे सपने में बदल गया, जिसने भारत के औद्योगिक भविष्य की नींव रखी। पादशाह का टाटा समूह से जुड़ाव 1894 में हुआ, जब उन्होंने इंडियन होटल्स कंपनी की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
यह प्रयास आगे चलकर बॉम्बे में स्थित भव्य और ऐतिहासिक ताज महल होटल की स्थापना में परिणत हुआ। उन्होंने भारतीय स्वामित्व वाले बैंक की परिकल्पना कर उसे प्रचारित करने में भी निर्णायक भूमिका निभाई। इसके परिणामस्वरूप 1905 में बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई, जो उस समय भारत में आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक था बंगलुरु में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना, जो जमशेदजी एन. टाटा की दूरदर्शी कल्पना थी। उन्होंने 1911 में इस संस्थान की स्थापना को मूर्त रूप देने में सहायता की। वे टाटा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट (1910) से भी गहराई से जुड़े थे। उनका स्थायी योगदान भारतीय इस्पात उद्योग में निहित एक ऐसी औद्योगिक उपलब्धि है, जो उनकी दूरदृष्टि और प्रतिबद्धता का जीवंत प्रतीक मानी जाती है। 20 जून 1941 को उनका निधन हो गया।
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