भगवान की भक्ति निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए: प्रभांजनानंद शरण
झरिया प्रतिनिधिझरिया प्रतिनिधि भगवान की भक्ति निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए। माया मोह कपट को त्याग कर निर्मल मन से भगवान का सेवा करने से संसार के सारे
झरिया। भगवान की भक्ति निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए। माया मोह कपट को त्याग कर निर्मल मन से भगवान का सेवा करने से संसार के सारे सुख अपने आप मिल जाता है। जैसे पिता का सारा धन संतान के लिए होता है। उक्त बातें झरिया अग्रसेन भवन में खड़कड़िया परिवार द्वारा आयोजित श्री मद भागवत कथा के सातवें दिन शनिवार को कथा वाचक पूज्य श्री प्रभांजनानंद शरण जी महाराज ने कही। भागवत कथा मात्र श्रवण करने से जीवन और मृत्यु दोनों सुधर जाते है। सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कथा के दौरान महाराज ने कृष्ण के 16108 विवाह और सुदामा की मित्रता का वर्णन किया। कहा कि मित्रता नि:स्वार्थ होता है। परंतु आज कल लोग श्री कृष्ण रूपी मित्र चाहते है। सुदामा जैसा कोई नहीं चाहता। जबकि सुदामा ही महल मिलने के बाद भी कुटिया में बैठकर भगवान श्री कृष्ण को याद करते रहे। भगवान का प्राप्ति केवल एक साधन है भगवान नाम जाप अधिक से अधिक करना चाहिए। राजा परीक्षित मोक्ष प्राप्त के साथ कथा विश्राम किया गया। मौके पर ललित अग्रवाल, धर्मेंद्र अग्रवाल, रामचंद्र अग्रवाल, अरुण अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, वीरेंद्र, संजय, विकास, रतन, प्रकाश, मोनू, ज्योति, नरेंद्र, सज्जन, तरुण, तपन, संजय, देवांश, विनीत, अरुण, डैनी, दीपू , निखिल, राहुल सहित काफी संख्या में समाज के लोग मौजूद थे।
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