हाद्रपीठ के रूप में जाना जाता है देवघर
हाद्रपीठ के रूप में जाना जाता है देवघर हाद्रपीठ के रूप में जाना जाता है देवघर - देवी सती का हृयद गिरा था पावन धरा पर - शिव और शक्त्ति के मिलन का अनूठा
देवघर राकेश कर्म्हे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा वैद्यनाथ की पावन भूमि को यूं तो विश्वभर में जाना जाता है लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि यह वही पवित्र स्थल है जहां शिव और शक्त्ति का मिलन स्थल है। एक साथ ज्योतिर्लिंग और शक्त्ति कहीं और देखने को नहीं मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवघर में शिव से पहले शक्त्ति का वास है। इक्यावन शक्त्तिपीठों में इसे हाद्रपीठ के रूप में जाना जाता है। इसे चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव देवी सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, उस वक्त भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से देवी सती का हृदय देवघर में ही गिरा था। मान्यता के अनुसार उस अंग का यहां देवताओं द्वारा विधि-विधान पूर्वक अग्नि संस्कार किए जाने के कारण ही इसे चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि आज भी यहां की मिट्टी खुदाई करने पर अंदर से राख निकलता है। कहा यह भी जाता है कि सती का हृदय स्थल गिरने वाले स्थान पर ही बाबा वैद्यनाथ की स्थापना की गई है। यहां के श्मशान को भी महाश्मशान का दर्जा दिया गया है। तंत्र मार्ग में देवघर को काफी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। जानकारों की मानें तो यहां कोई भी तांत्रिक अपनी साधना पूरी नहीं कर सका है। मां काली के महान उपासक बामा खेपा सहित कई महान तांत्रिकों के देवघर में तंत्र साधना के लिए पहुंचने के प्रमाण भी मिलते हैं लेकिन किन्हीं की भी साधना यहां पूरी नहीं हो सकी। शक्त्तिपीठ होने के कारण ही इसे भैरव का स्थान भी माना गया है। शारदीय नवरात्र में यहां की पूजा व्यवस्था भी बिल्कुल अलग होती है। बाबा मंदिर प्रांगण स्थित माता जगतजननी और भगवान महाकाल मंदिर में महापंचमी तिथि से ताड़ के पत्ते से गहवर बनाकर विशेष पूजा की जाती है। वहां विधि-विधान के अनुसार कलश स्थापन से लेकर बलिदान तक होता है। वहीं शारदीय नवरात्र की महापंचमी तिथि से लेकर विजया दशमी तक बाबा मंदिर प्रांगण स्थित माता काली, माता पार्वती और माता संध्या मंदिर का पट आम भक्तों के लिए बंद रहता है।
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