बोले बोकारो: आधे लोग मछली से जुड़े और आधे दिहाड़ी मजदूरी पर हो गए निर्भर
बोकारो के मछुआरा समाज के आधे लोग मछलियों से जीविका कमाते हैं, जबकि आधे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। नदी और तालाबों में मछलियों की कमी के चलते पारंपरिक जीविकोपार्जन पर संकट है। सरकार की उपेक्षा और नए लोगों...
मछुआरा समाज से जुड़े आधे लोग मछलियों से जीविकोपार्जन कर रहे हैं, जबकि आधे लोग दिहाड़ी मजदूरी का काम कर रहे हैं। बताया कि पहले की भांति अब नदी तालाब में मछली नहीं मिलते हैं। नदी में मछली नहीं पनप रहे हैं। लोगों ने बताया कि तालाब व बंद खदान आदि जगहों में जाल से मछली पकड़ते हैं और अपना जीवकोपार्जन चलाते हैं बोकारो विधानसभा क्षेत्र में इस समाज की आबादी लगभग 25000 है। आज उनके पास ना तालाब है, ना ही मछली पालन की कोई अन्य सुविधाएं। इससे इस समाज के लोगों को अपनी पारंपरिक जीविकोपार्जन की पद्धति को बचाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। बोकारो के मछुआरा समुदाय के लोग सरकार की उपेक्षा से पीड़ित है। सरकार की ओर से किसी भी जाति के लोगों को प्रशिक्षण देकर फिशरमैन की उपाधि दिए जने से, यह समाज नाराज हैं। इनका कहना है कि पारंपरिक रूप से जातिगत डीएनए से निपुण समाज को दरकिनार किया जा रहा हे। इसके जगह पर प्रमाणपत्र देकर नये लोगों को मछुवारा की उपाधि दी जा रही है। ऐसे में हमारे समाज के लोग स्वयं को उपेक्षित महसूस करते है। यह सरासर नाइंसाफी है। सरकार को इस पर पुर्नविचार करना चाहिए। मत्स्य कारोबार से जुड़े लोगों ने कहा सरकार सिर्फ मछुआरे के लिए योजना बनाती है लेकिन योजना धरातल पर उतारने के लिए कोई ठोस कार्य नहीं कर रही है। जिस कारण मछुआरे की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। कहा झारखंड बनने के बाद अगल अगल दलों की सरकार के समक्ष मछुआरा समुदाय के उत्थान की मांग की गई। कई बार सुविधाओं को लेकर सरकार को मांग पत्र भी सौंपा गया। लेकिन हमारी जीविका सुधारने के लोकर कोई भी ठोस और कारगर कदम नहीं उठाया गया। जिस कारण मछुआरा समुदाय के लोग आज भी अपने अधिकार को लेकर संघर्ष करने को मजबूर है।
गोताखोर के तौर पर पारंपरिक मछुआरों को मिले प्रथमिकता : केवट व मल्लाह समाज लोगों ने बताया कि हमारे पूर्वज ने शुरू से जलक्रीड़ा में महारत दिखाई है। पंचौरा में दामोदर नदी पर स्थित बरुवा घाट है। जहां किसी सैलानी के डूबने पर मछुआरा समाज ही सबसे सक्रिय भूमिका निभाता है। लेकिन, खिताब खेतको के गोताखोरों को दे दिया जाता है। पंचौरा के मछुआरा समाज के साथ कई बार ये अन्याय हो चुका है। कहा कि यहां के युवाओं को गोताखोर टीम में शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है। कहा हमें सिर्फ बाढ़ और बारिश के दिनों में नदी और जलाशयों के जलस्तर बढ़ने पर कुछ दिनों के लिए सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन समय बीत जाने के बाद सभी भुल जाते है।
डेम बनने से कई प्रकार की मछलियों की प्रजाति हुई लुप्त : मछुआरा समुदाय के लोगों ने कहा कि जैसे-जैसे नदियों में डेम बनता गया। समुद्री मछलियों की विभिन्न तरह की प्रजाति विलुप्त होती गई। आज तो एक नदी में सैंकड़ों जहग पर चेकडेम व डेम का निर्माण हो चुका है। इस कारण समुद्र से नदियों में आने वाली अधिकांश प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। अब जो भी मछलियां बाजार में उपलब्ध है, वो पारंपरिक मछलियां नहीं है। वहीं, पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश से आने वाली अधिकांश मछलियां ताजी नहीं होती। ऐसे में पारंपरिक मछलियों के बचाने की दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस बाबत कई बार मामले को लेकर सरकार से मांग भी की गई है। लेकिन मांगों पर विचार नहीं किया गया है।
दामोदर नदी को कैमिकल व ब्लास्टिंग ने किया खराब
ग्रामीणों ने बताया कि दामोदर नदी पर मछली मारने की नियत से लोगों ने ब्लास्टिंग करना शुरू कर दिया है। साथ ही कैमिकल का छिड़काव कर मछलियों को मार दिया जाता है। हालांकि इसके बाद मात्र 10-15 फीसदी ही मछलियां पकड़ में आती है। जबकि बाकी मछलियां 1-2 दिन बाद नदी की धारा में बह जाती है या पत्थरों के बीच फंसकर दफ़न हो जाती है। ऐसी स्थिति पर सरकार और जिला प्रशासन को विचार करने की जरूरत है।
मछली पालन बढ़ाये विभाग
मछुआरों ने कहा कि बोकारो के डैम व बड़े तालाबों को चिन्हित कर मत्स्य विभाग को केज व्यवस्था लागू करनी चाहिए। मछुआरा जाति के युवाओं को इस व्यवस्था से जोड़ कर बोकारो को मत्स्य उत्पादन में डेवलप करने की आवश्यकता है। इसमें जहां बोकारो मत्स्य पालन में आत्मनिर्भर बनेगा, वहीं यहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा।
रोजगार घटने से घटा मछली का कारोबार
सेक्टर थर्ड स्थित थाना मोड़ मछली पट्टी के व्यवसायियों ने बताया कि विगत 7-8 वर्षों से बाजार लगातार डाउनफॉल में है। पहले की अपेक्षा बीएसएल व एचएससीएल में कामगारों की संख्या घटना, सबसे बड़ा कारण है। लोगों के हाथ में रोजगार नहीं है। शाम 5-6 बजे के बाद मंडी की बाजार बंद हो जाती है। सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही बाजार सिमट कर रह गया है। इस मछली बाजार को विकसित करने की दिशा में जिला प्रशासन और बोकारो इस्पात प्रबंधन को विचार करना चाहिए। यह मछली बाजार कई दशकों से बोकारो में मछलियों की जरूरत को पूरा करता है।
मछुआरे के विकास को लेकर सरकार से बात की जाएगी। इस समाज के लोगों के उत्थान को लेकर सरकार की जो भी योजना है उसे लागु किया जाएगा। -श्वेता सिंह,विधायक बोकारो
सुझाव
1. मछुआरा जाति के लोगों का मूल्यांकन परंपरागत आधार पर किया जाना चाहिए।
2. मछलियों की विलुप्त होती प्रजातियों को पुनर्जीवित करना जरूरी।
3. जिला में गोताखोर टीम में मछुआरा जाति के लोगों की बने टीम।
4. पानी में मछली मारने के लिए ब्लास्टिंग व कैमिकल छिड़काव पर लगे रोक।
5. मछुआरा जाति के युवाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था करे सरकार।
शिकायतें
1. मछुआर समाज को आज तक परंपरागत आधार पर परिभाषित नहीं किया गया है।
2. कई डैम व चेकडैम बनने से समुद्र से नदियों में मछलियों की प्रजातियां हो रही विलुप्त।
3. गोताखोरी में सबसे माहिर जाति होने के बावजूद किया जाता है दरकिनार।
4. ब्लास्टिंग व कैमिकल डाल कर मछली मारने की नई प्रथा बढ़ी परेशानी।
5. ाभी जाति के युवाओं को प्रशिक्षण कर सरकार बढ़ा रही चुनौती।
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